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न्यूज क्लिपिंग्स् | अमेरिका की यूज एण्ड थ्रो पॉलिसी से 3 बार जूझने के बाद अब अफगानिस्तान के आगे क्या बचा है

अमेरिका की यूज एण्ड थ्रो पॉलिसी से 3 बार जूझने के बाद अब अफगानिस्तान के आगे क्या बचा है

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published Published on Aug 15, 2021   modified Modified on Aug 16, 2021

-द प्रिंट,

तालिबान की फतह अवश्यंभावी दिख रही है. अफगानिस्तान पिछले एक-दो सप्ताह से दुनिया भर में सुर्खियों में, लेखों में छाया है. गौर कीजिए कि 90 फीसदी लेखों और बहसों में यही मुद्दा उठाया जा रहा है कि अमेरिका से लेकर भारत और चीन तथा बेशक पाकिस्तान आदि दूसरे देशों पर इसका क्या असर पड़ेगा. लेकिन जिस मुल्क, अफगानिस्तान और उसके चार करोड़ आवाम को सबसे ज्यादा तवज्जो और जज़्बाती मदद की जरूरत है उसके लिए कुछ नहीं सोचा जा रहा है.

है न हैरत की बात? नहीं, वास्तव में ऐसा नहीं है. अमेरिका ने अपने विशेष राजनयिक जल्मे खलीलजाद के न्यूनतम मुमकिन सौदे के विचार को जब लागू कर दिया तो तालिबान की फतह तो होना ही थी. न्यूनतम यों कि अमेरिका अपनी पीठ पर तालिबानी बुलेट के जख्म लिये बिना वापस लौट सका. अफगान लोग जाएं भाड़ में. लेकिन अब वह न्यूनतम भी अनिश्चित दिख रहा है क्योंकि वे तालिबान से अपील कर रहे हैं वे अमेरिकी दूतावास को बख्श दें.

खलीलजाद अफगानिस्तान के उत्तरी शहर मज़ार-ए-शरीफ में पैदा हुए और नूरज़ई कबीले के पख्तून हैं. उन्होंने अपने मुल्क के इतिहास, जातीय पहचान और अपने लोगों की किस्मत को अपनी उम्दा अमेरिकी शिक्षा-दीक्षा के चश्मे से देखने की कोशिश नहीं की है. वे जानते हैं कि उनके अफगान भाइयों की किस्मत में क्या बदा है, वही जो वे अपने मूल मुल्क के लिए छोड़कर अमेरिका लौट सकते थे- शाश्वत संघर्ष, अराजकता, इस्लामवाद की एक-न-एक छाया और आगे चलकर एक और युद्ध. इसलिए, यहां से निकल चलो. जैसा कि उन्होंने स्कूली छात्रों के सांस्कृतिक आदान-प्रदान की एक योजना के तहत अमेरिका रवाना होने वाले एक किशोर के रूप में किया था. स्मार्ट लोग इस मुल्क के लिए नहीं बने हैं.

अच्छी शिक्षा आपको बुद्धि तो दे सकती है, संवेदनशील नहीं बना सकती. आपको यह फितरत या तो खुदा से मिलती है या नहीं मिलती है. हकीकत यह है कि अफगानिस्तान में कई स्मार्ट लोग बचे हुए हैं. इसकी शानदार क्रिकेट टीम को ही देख लीजिए.

लेकिन अगर आप इसके इतिहास को जानते हैं और खलीलजाद की तरह इसके किसी हिस्से में रह चुके हों तो आप आसानी से संवेदनहीन बन जाएंगे. इसके पूरे इतिहास में या दो सदी पहले जब बड़ी ताकतों ने इसका पता लगा लिया और अपने भौगोलिक-रणनीतिक हितों के लिए इसकी भौगोलिक स्थिति के महत्व को समझा, तब से इस मुल्क और इसके लोगों के साथ संवेदन शून्य व्यवहार ही किया जा रहा है. साम्राज्यवादी ब्रिटेन के लिए यह एक ऐसा देश था जिसकी जरूरत उसे अपने और शक्तिशाली ज़ारशाही/स्टालिनवादी साम्राज्य के बीच एक ‘बफर’ देश के रूप में थी. उसने इस पर काबू करने की फौजी कोशिश की मगर शुरू में ही उसे झटका लगा, फिर भी वह कोशिश में जुटा रहा.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


शेखर गुप्ता, https://hindi.theprint.in/opinion/3-fates-await-afghanistan-as-us-breaks-it-for-3rd-time-in-40-yrs-afghans-have-say-in-none/233603/


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