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न्यूज क्लिपिंग्स् | एक अरब आबादी झुग्गियों में रहती हैं. क्या ये वायरस से बच पाएंगे?

एक अरब आबादी झुग्गियों में रहती हैं. क्या ये वायरस से बच पाएंगे?

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published Published on Apr 12, 2020   modified Modified on Apr 12, 2020

-न्यूजलॉन्ड्री,

हालांकि, पूरी दुनिया में कोविड-19 महामारी उन लोगों से फैली जो हवाई जहाज और लग्जरी क्रुज़ के खर्चे सहन कर सकते हैं, लेकिन अब यह वायरस सामाजिक रूप से अदृश्य और भुला दिए गए शहरी मलिन बस्तियों में रहने वालों को चुनौती दे रहा है.

मलिन बस्तियों में रहने वाले एक अरब लोगों की संयुक्त राष्ट्र ने जो परिभाषा दी है उसके मुताबिक, स्वच्छ पानी और स्वच्छता के अभाव, खराब गुणवत्ता वाले घर, बेहद भीड़ भाड़ और असुरक्षित स्थिति में रहने वाले.

संक्रामक रोग, महामारियां फैलने के लिए झुग्गी-बस्तियां आदर्श हैं. भारत में मुम्बई की धारावी, पाकिस्तान में कराची शहर का ओरंगी इलाका और मनीला के पयातास बस्ती में पहले ही कोविड-19 संक्रमण के मामले पाए जा चुके हैं. 2014-2016 में दक्षिण अफ्रीका में फैली इबोला महामारी भी लाइबेरिया, गिनीऔर सिएरा लियोन की बड़ी और घनी आबादी वाली झुग्गियों में बड़े पैमाने पर फैली थी.

महामारी के दौरान, मलिन बस्तियों के लोग स्वशन संबंधी संक्रमण के लिए सबसे असुरक्षित होते हैं मसलन इन्फ्लूएंजा और डेंगू जैसे संक्रमण. उदाहरण के लिए, 2018 में दिल्ली की एक रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया था कि व्यापक टीकाकरण और सामाजिक दूरी (घर में रहना, स्कूल बंद होना, बीमारों को अलग-थलग करना) के बावजूद भी झुग्गी बस्तियों में सामान्य रिहाइशी इलाके के मुकाबले इन्फ्लूएंजा से संक्रमित होने की दर 44 प्रतिशत ज्यादा थी.

मलिन बस्तियों में संक्रमण बढ़ने का एक प्रमुख कारण भीड़ भाड़ है: उदाहरण के लिए, दिल्ली की मलिन बस्तियों में जनसंख्या घनत्व, गैर-मलिन बस्तियां की तुलना में 10 से 100 तक गुना ज्यादा है और न्यूयॉर्क शहर में लगभग 30 गुना ज्यादा है.

बच्चों में स्वस्थ आहार की कमी और वयस्कों में गंभीर बीमारियों के चलते इन बस्तियों के लोग संक्रमण के प्रति और ज्यादा असुरक्षित होते हैं.

स्वच्छता सेवाओं की सीमित पहुंच एक और बड़ी समस्या है: मलिन बस्तियों में साफ-सुथरे टॉयलेट की बहुत कमी है, जिसके कारण कोरोना वायरस लोगों के मल के जरिए भी फैल सकता है. इसी तरह साफ पानी की उपलब्धता इन इलाकों की एक और बड़ी समस्या है जो किसी भी तरह के लॉकडाऊन यानी आवाजाही पर प्रतिबंध से और गंभीर हो जाता है.

घरों के भीतर वायु प्रदूषण इसे और बढ़ा देता है. लकड़ी और कोयले के चूल्हे पर खाना पकाने के कारण, कमरे बिना खिड़कियों वाले होने के चलते ताजी हवा की आवाजाही नहीं होती है. यह सांस संबंधी संक्रमण को बढ़ावा दे सकता है- इससे यहां रहने वालों में कोरोनावायरस संक्रमण तेजी से फैल सकता है.

लेकिन झुग्गी बस्तियों में महामारी के तेज़ प्रसार का सबसे महत्वपूर्ण कारण हाशिए पर पड़ी इस आबादी की सत्ताधारी अभिजात्य वर्ग द्वारा की गई उपेक्षा. रोगों के प्रसार को रोकने के लिए पूर्व में यहां बहुत कम प्रयास किया गया है. उदाहरण के लिए यहां कोरोना वायरस का टेस्ट नाममात्र का हुआ है.

यहां कोई भी क़दम उठाने से पहले उन पर गंभीरता से सोच-विचार की जरूरत है. झुग्गी वासियों की जरूरतों पर बारीकी से समझे बगैर उनके लिए सामाजिक दूरी, लॉकडाउन जैसे उपाय अव्यवहारिक हैं. सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर नीतियों को आकार देने की आवश्यकता है. इसी तरह का एक संगठन है स्लम ड्वलर्स इंटरनेशनल. जो दुनिया भर की झुग्गी-बस्तियों में रहने वालों का प्रतिनिधित्व करता है. यहां तक कि इसमें गिरोह भी शामिल हो सकते हैं. जैसे, ब्राज़ील की मलिन बस्ती में, कुछ गिरोहों ने कुछ झुग्गियों के प्रवेश द्वारों पर हाथ धोने के स्टाल लगा दिए हैं.

एक बार जब कोई महामारी झुग्गियों में पैर जमा लेती है तब लोग पहली गलती ये करते हैं कि प्रसार क्षमता को कम करके आंकते हैं. यह रवैया संक्रमण के प्रसार में तेल का काम करता है. उदाहरण के लिए, दिल्ली में शोधकर्ताओं ने बताया कि अगर झुग्गियों को नजरअंदाज कर दिया जाय तो शहर में संक्रमण दर का आंकड़ा 10 से 50 प्रतिशत कम दिखाई देता है जबकि टीकाकरण के प्रभाव का आंकड़ा 30 से 55 प्रतिशत तक बढ जाता है.

मलिन बस्तियों में संक्रमण की भयावहता को कम करके आंकने से उन्हें स्वास्थ्य संबंधी संसाधनों के बंटवारे में भी कम हिस्सा मिलेगा. एडवांस लाइफ सपोर्ट जैसे आईसीयू और वेंटिलेटर जैसी सुविधाएं मलिन बस्तियों में गंभीर कोविड-19 संक्रमित लोगों को शायद ही उपलब्ध हो पाएं.

इसके बाद बारी आती है वित्तीय मसले की. कोरोना वायरस संक्रमण का नाकारात्मक प्रभाव झुग्गी बस्तियों में रहने वालों की आर्थिक स्थिति पर बेहद बड़े पैमाने पर पड़ेगा. स्लम में रहने वाला एक बड़ा तबका असंगठित क्षेत्र में काम करता है जो कि लॉकडाउन के चलते पूरी तरह से खत्म हो जाएगा.

नई दिल्ली, मुंबई, केपटाउन, मनीला, कराची, रियो डी जनेरियो और नैरोबी आदि की झुग्गी बस्तियों में रहने वाली दिहाड़ी मजदूर आबादी का संघर्ष लॉकडाउन के कारण पहले ही तेज हो चुका है. ऐसे लोगों के लिए शेल्टर होम कोई विकल्प नहीं है.

ब्राजीली सरकार ने अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वालों की स्थिति का आकलन करते हुए एक इमरजेंसी प्लान बनाया है इसके तहत अगले 3 महीने तक 600 ब्राजीली रीस या 114 डॉलर हर व्यक्ति को देने का निर्णय लिया है. दिल्ली में, अधिकारियों ने नियोक्ताओं से मजदूरों का भुगतान करने और मकान मालिकों से लोगों को बाहर न निकालने की अपील की है. साफ तौर पर इससे और ज्यादा करने की जरूरत है.

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


ली डब्ल्यू रिले, ईवा राफेल, रॉबर्ट स्नाइडर, https://www.newslaundry.com/2020/04/11/coronavirus-slums-population-survival


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