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न्यूज क्लिपिंग्स् | मिलावटी शहद ने मधुमक्खी पालकों की कमर तोड़ी

मिलावटी शहद ने मधुमक्खी पालकों की कमर तोड़ी

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published Published on Dec 11, 2020   modified Modified on Dec 11, 2020

-डाउन टू अर्थ,

“पिछले बीस-पच्चीस सालों से हम मधुमक्खी पालन का काम कर रहे हैं, लेकिन अब हमारी कमर टूट रही है। क्योंकि न तो सरकार और न ही कंपनियां, हमें इस काम में सहयोग कर रही हैं। वे बस हमारा शोषण कर रही हैं और हम इतने नीचे पायदान पर खड़े हैं कि उनका कुछ बिगाड़ भी नहीं सकते। यही कारण है कि हम सब अब थक-हार कर इस काम को ही छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं।” यह पीड़ा देश के लाखों मधुमक्खी पालकों में से एक उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के अरविंद सैनी की हैं।

वह कहते हैं कि कैसे हमारा गुजारा चले जब आज से दो दशक पहले तक एक मधुमक्खी के बॉक्स में 70 से 80 किलो शहद निकलता था, लेकिन अब यह घट कर लगभग 30 किलो पर आ गया है। इसका मुख्य कारण है पिछले दो दशकों में हमारे किसान खेतों में हाईब्रिड बीज बो रहे हैं। इससे फसल का उत्पादन तो अधिक हो जाता है लेकिन इन फसलों में निकलने वाले फूलों की आयु कम हो जाती है। वे दस से 15 दिन में ही खत्म हो जाते हैं। यही कारण है कि शहद का उत्पादन भी घट गया है।

यह स्थिति अकेले अरविंद के साथ ही नहीं है बल्कि सभी मधु पालकों के साथ हो रही है। अरविंद सैनी गुरुवार 10 दिसंबर को सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा आयोजित वेबिनार में अपनी बातें रख रहे थे।

सरहानपुर स्थित मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण संस्थान के अध्यक्ष तंजीम अंसारी कहते हैं कि मैं भी 25 साल से मधुमक्खी पालन का काम कर रहा हूं। इस कुटीर उद्योग बचाना ही होगा नहीं तो देशभर के लाखों हमारे जैसे लोग सड़क पर आ जाएंगे। वह अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि मैं 1989 में यह काम सीखा और तब से यह काम कर रहा हूं।

वह कहते हैं कि मुझे अच्छी से याद है कि जब सरकारें हमें कैसे कई प्रकार के मेले आयोजित कर प्रोत्साहित करती थीं। उन्होंने बताया कि मुझे अभी भी 1992 में दिल्ली में आयोजित “हनी फैस्टीवल” याद है। तब पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री बलराम जाखड़ ने इस मेले में आए थे और कहा था, “यदि देश में परागण की भरपूर मत्रा हो तो देश में कुल उत्पादन में लगभग दो लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त उत्पादन संभव होगा।”

अंसारी ने बताया कि देशभर के हमारे जैसे लाखों लोगों को सरकार ने हासिए पर रख छोड़ा है। वह सवाल उठाते हुए कहते हैं कि मुझे यह आज तक समझ नहीं आया कि जब एक ओर शहद का उत्पादन कम होते जा रहा है तो हमारे देश में शहद का निर्यात बढ़ कैसे रहा है या कंपनियां कहां से शहद ला रही हैं। इसका सीधा मतलब है कि वे सब चीनी घोल बेच रहे हैं।

वह कहते हैं कि 160 रुपए किलो शहद था, अब यह 80 रुपए हो गया है। यदि फसलों पर फूल आएंगे तो केवल हमारा ही लाभ नहीं होगा बल्कि फसल भी अधिक होगी। यह बात किसानों को समझ आनी चाहिए। लेकिन सरकार इस क्षेत्र में तो किसी प्रकार का जागरूकता अभियान चलाती ही नहीं। उनके वैज्ञानिक या कृषि विशेषज्ञ आज तलक तक हमारे पास नहीं आए किसी प्रकार शोध या जानकारी लेने। ऐसे में यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि सरकार का हमारे जैसे लोगों के प्रति कितनी बेरुखी है।

वह कहते हैं कि आज शहद की उत्पादन लागत में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है और लगातार बढ़ते ही जा रही है। क्योंकि पहले एक से दो बार ही माइग्रेशन से काम चल जाता है, अब चार से पांच बार यह काम किया जाता है। यदि सरकार किसानों को यह बात बताए कि तिलहनी और दलहनी फसलों में हाईब्रिड बीज का उपयोग न करें तो तो भी उनके उत्पादन को बढ़ाने में मधुमक्खी प्रमुख भूमिका निभाएंगी। यही नहीं, यदि आने वाले समय में यह खत्म हो गई हैं तो हमारा वर्तमान उत्पादन भी घट जाएगा।

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


अनिल अश्वनी शर्मा, https://www.downtoearth.org.in/hindistory/health/non-communicable-disease/adulterated-honey-harms-bee-keepers-74594


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