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न्यूज क्लिपिंग्स् | बच्चों को वापस स्कूल भेजने को लेकर लगातार चिंता में हैं अभिभावक और इसकी वजह सिर्फ कोविड ही नहीं है

बच्चों को वापस स्कूल भेजने को लेकर लगातार चिंता में हैं अभिभावक और इसकी वजह सिर्फ कोविड ही नहीं है

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published Published on Nov 21, 2021   modified Modified on Nov 21, 2021

-द प्रिंट,

कोरोना महामारी के कारण उत्तर प्रदेश में लम्बे समय की स्कूल बंदी की वजह से छोटे छात्रों के लिए काफी अरसे तक चलने वाली वर्चुअल स्टडी के उपरांत सिंतबर महीने में शारीरिक उपस्थिति वाली कक्षाओं के दुबारा शुरू होने के बाद नोएडा के 10 वर्षीय छात्र जनमेजय सिंह ने सिर्फ 10 दिनों के लिए कक्षाओं में भाग लिया. साल के अंत में एक तीसरी कोविड लहर की आशंकाओं ने उसके माता-पिता – सुनीता और संतोष – को उसे स्कूल भेजने के प्रति फिर से अनिच्छुक बना दिया है.

पास ही के शहर दिल्ली में 12 साल की एक बेटी की अभिभावक स्मिता मोहन भी अपनी बच्ची को स्कूल भेजने से उतना ही डरती हैं. वे कहती हैं, ‘जिस तरह की भयावहता हम सभी ने दूसरी (कोविड) लहर में देखी है, वह हमें जीवन भर के लिए सतर्क रहने को मजबूर करने के लिए पर्याप्त है. मुझे अपने बच्चे के कुछ और महीनों के लिए ऑनलाइन कक्षाओं में ही भाग लेते रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता … मैं शहर (दिल्ली) में कोविड के मामलों पर दिवाली के बाद पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंतित हूं.‘

सिंह और मोहन ऐसे अकेले माता-पिता नहीं हैं जिन्हें इस बात का डर सता रहा है कि क्या अपने बच्चों को स्कूल भेजना सुरक्षित है? मौखिक रूप से प्राप्त कई साक्ष्य बताते हैं कि अभिभावक कोरोना महामारी के बाद से अभिभावक अपने बच्चों के स्वास्थ्य के बारे में अधिक सतर्क हो गए हैं, और स्कूल से उनकी अनुपस्थिति पहले की तुलना में अधिक आम बात हो गई है.

स्प्रिंगडेल्स स्कूल, दिल्ली की प्रधान अध्यापिका (प्रिंसिपल) अमीता मुल्ला वट्टल ने भी माना कि उन्होंने अपने बच्चों के स्वास्थ्य के बारे में अभिभावकों के बीच बढ़ती हुई चिंता को देखा है. वट्टल का कहना है की कोविड -19 के बाद बच्चों के माता-पिता बहुत अधिक सतर्क हो गए हैं … वे उन्हें हर चीज के डर से स्कूल भेजना बंद करना चाहते हैं, चाहे वह शहर में फैला डेंगू का प्रकोप हो, या बढ़ता वायु प्रदूषण.’

अभिभावकों से अपने डर को दूर करने और अपने बच्चों को स्कूलों में भेजने का आग्रह करते हुए, उन्होंने कहा, ‘उन्हें (अभिभावकों) को अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है और उन्हें यह महसूस करना होगा कि अगर लगातार ऐसे ही व्यवधान होता रहता है तो इस तरह की पढ़ाई से लंबे समय में बच्चों की सीखने की क्षमता प्रभावित होगी.’

दिल्ली में कक्षा 9-12 के छात्रों के लिए 1 सितंबर से और बाकी सभी कक्षाओं के लिए 1 नवंबर से स्कूल फिर से खुल गए हैं. कक्षाएं हाइब्रिड मोड में हैं, जिसका अर्थ है कि घर से अध्ययन करने के इच्छुक बच्चों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं जारी रहेंगीं.

हालांकि, दिल्ली सरकार द्वारा शहर में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक योजना तैयार करने वाली आपात बैठक के बाद सोमवार से राष्ट्रीय राजधानी में स्कूलों को फिर से एक सप्ताह के लिए बंद कर दिया गया था. दिल्ली हाल के वर्षों में यहां फैले सबसे खराब डेंगू प्रकोपों में से एक का भी सामना कर रही है – और इन्हीं सब वजहों का मिलाजुला प्रभाव सभी अभिभावकों द्वारा अपने बच्चों को स्कूलों में भेजने के प्रति अनिच्छा दिखाने में योगदान दे रहा है.

हालांकि, देश में दिल्ली ही अकेली ऐसी जगह नहीं है जहां बच्चों के अभिभावक इस तरह की चिंताएं प्रदर्शित कर रहे हैं. शिक्षाविदों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा सभी कक्षाओं और आयु समूहों के छात्रों के लिए स्कूलों में अतिशीघ्र वापसी का आग्रह किये जाने के बावजूद, देश के अन्य कई हिस्सों से भी बच्चों को स्कूलों से दूर रखे जाने की खबरें आई हैं.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


कृतिका शर्मा, https://hindi.theprint.in/india/parents-are-constantly-worried-about-sending-children-back-to-school-and-it-is-not-only-because-of-covid/251998/


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