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न्यूज क्लिपिंग्स् | प्रोफ़ेसर यशपाल हर बच्चे को समझ का चस्का लगा देना चाहते थे

प्रोफ़ेसर यशपाल हर बच्चे को समझ का चस्का लगा देना चाहते थे

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published Published on Nov 26, 2020   modified Modified on Dec 2, 2020

-सत्याग्रह,

24 जुलाई 2017 को जब प्रोफेसर यशपाल को आख़िरी बार देखा तो लगा कि जीवन से विदा लेते समय शायद उनको कोई पछतावा नहीं रहा होगा. इस शरीर ने और उसके हरेक अंग ने वह हर काम पूरी तरह कर लिया था जिसकी उससे उम्मीद थी. आंखों ने देखा और अंतरिक्ष की गहराइयों में झांककर कर दूर-दूर तक देखा, पैरों ने अनंत दूरियां तय कीं, हाथों ने ऐसी चीज़ें बनाईं जिन्हें बनाना मुश्किल था, उस वक्त जब हाथों और दिमाग के अलावा कल्पना को साकार करने के लिए बहुत कम बाहरी मदद मौजूद थी. दिमाग ने सोचा और खूब सोचा और कल्पना की छलांगें लगाईं. किसी भी अंग, किसी भी इंद्रिय को इसका अफ़सोस न होगा कि उससे कुछ काम लेना बाकी रह गया है, अभी और काश कि कुछ दिन और मिल जाते! लैटिन अमरीकी कवि हिमनेज़ की आदर्श मृत्यु का यह ख़याल उन्हें सामने निश्चल देखते हुए आता ही रहा.

प्रोफेसर यशपाल ने खूब सोचा और खूब काम किया और खूब कल्पनाएं कीं. वे उस दौर के वैज्ञानिक थे जब आप एक ही साथ वैज्ञानिक और कलाकार हो सकते थे. वैसे भी यशपाल का मानना था कि जैसे इंसान एक होता है, ज्ञान भी एक है. एक कलाकार को भाषा की संवेदना अगर नहीं तो उसके आविष्कारक होने में शक है. इसीलिए वे बार-बार यह कहते थे कि आईआईटी हो या और वैज्ञानिक शिक्षण संस्थान, उसमें समाज विज्ञान, साहित्य और कला का होना और बराबरी से होना ज़रूरी है. यह बात उलट कर भी कही जा सकती है.

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


अपूर्वानंद, https://satyagrah.scroll.in/article/108662/pratyashit-professor-yash-pal-life-and-work


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