Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | आत्मनिर्भरता के अर्थ और अनर्थ

आत्मनिर्भरता के अर्थ और अनर्थ

Share this article Share this article
published Published on May 18, 2020   modified Modified on May 19, 2020

-डाउन टू अर्थ,

महात्मा गांधी ने भारत के नीति निर्माताओं और सुधारकों को जंतर देते हुए कहा था कि - "... जो सबसे कमजोर और गरीब आदमी तुमनें देखा हो, उसे याद करो और अपने दिल से पूछो कि जो कदम उठाने का तुम विचार कर रहे हो, वह उस आदमी के लिए कितना उपयोगी होगा। क्या उसे कुछ लाभ पहुंचेगा ? क्या उससे वह अपने जीवन और भाग्य पर कुछ काबू रख सकेगा ? यानि क्या उससे उन करोड़ों लोगों को स्वराज्य मिल सकेगा, जिनके पेट भूखे हैं और आत्मा अतृप्त है ? " यह जंतर एक ऐसा सर्वकालिक सत्य है, जिसे विगत सात दशकों से लगातार खंडित किया जाता रहा है। कभी-कभी समाज के द्वारा और अकसर समाज के द्वारा चुनी हुई सरकारों के द्वारा भी। 

क्या आत्मकेंद्रित समाज और आत्ममुग्ध सरकार 'आत्मनिर्भरता' के सपने को सच कर सकती है ? इस बुनियादी प्रश्न का सार्वजनिक उत्तर है -नहीं। भारत जैसे देश में आत्मनिर्भरता का मार्ग महात्मा गांधी के जंतर से जनमता है। आत्मसम्मोहित - नीतियां, कानून, योजनाएं और घोषणाएं तो अब तक तो करोड़ों विपन्नों के इस देश में मील का पत्थर साबित नहीं हो सकी हैं। गरीबी रेखा के ऊपर और नीचे खड़े  तबकों के बीच का गहराता फासला अब तक गढ़े गए मार्गों की त्रासदी खुद बयां कर रही हैं। 

महात्मा गांधी आर्थिक स्वायत्तता या आत्मनिर्भरता को राजनैतिक स्वाधीनता की कुंजी कहते थे। उनका मानना था- भारत के निर्माताओं के सामने दो रास्ते हैं - अधिकाधिक उत्पादन और अधिकाधिक लोगों के द्वारा उत्पादन। पहला मार्ग एक नई आर्थिक गुलामी की ओर ले जाएगा और दूसरा - आर्थिक आत्मनिर्भरता के रास्ते हमें आगे बढ़ायेगा।

आजादी के बाद  प्रामाणित रूप से विशेषाधिकार  संपन्न निर्वाचित प्रतिनिधियों ने पहला मार्ग अपनाया और पूरा तंत्र उसके पीछे खड़ा हो गया। वंचित समाज जब तक कुछ समझ पाता, इससे पहले ही देश 70 बरस का सफर तय कर चुका है। देश के निर्माण का विशेषाधिकार, विपन्नों के हाथों से छिनता गया और निजी आर्थिक प्रतिष्ठानों पर अघोषित आर्थिक निर्भरता,  महामारी बन गई। एक ऐसी महामारी जिसका शिकार गरीबी रेखा के नीचे भौंचक खड़े हमारे अपने ही नये अर्थतंत्र के नये गुलाम हैं।

उन करोड़ों विपन्नों को किन्ही भी वायदों और कायदों में कोई भी नया नाम दिया जा सकता है,  लेकिन अर्थव्यवस्था में उन विपन्नों के परमार्थ का कोई मार्ग बनाने का अर्थ - तंत्र को एक सीमा तक बाजारीकरण के सम्मोहन से मुक्त करना ही हो सकता है। दुर्भाग्य से महात्मा गांधी का जंतर आज भी असरकारी और सरकारी विकास की कसौटी नहीं है, इसीलिये लगातार हम राज्यों के  संदिग्ध प्रयासों के आसान शिकार होते रहे हैं। और अब  वर्तमान संकट और महामारी के संक्रमणकाल में हमारी सदाशयता 'नएपन' के नए प्रतिमानों की तलाश में है, लेकिन  यदि जारी संक्रमणकाल के बाद भी कुछ नया नहीं हो सका - तो उस दुर्भाग्य के भागीदार हम स्वयं  होंगे। 

यह प्रश्न लाज़िमी ही है कि नयापन केवल अर्थतंत्र का होना चाहिए या उस पूरी व्यवस्था का जो समय से आगे चलने की आपाधापी में करोड़ों लोगों को भूखा पीछे छोड़ आई है। 

भारत में कम से कम अब तो 'हिन्द स्वराज' को उसका वह स्थान मिलना ही चाहिए, जो हम महात्मा गांधी के जीवनकाल में उसे नहीं दे पाए थे। आर्थिक स्वायत्तता का जो मार्ग ‘हिन्द स्वराज’ के माध्यम से महात्मा गांधी ने कही, आज लगभग सौ बरस बाद वह हमेशा से कहीं अधिक समसामयिक है। हिन्द स्वराज के बरअक्स पहले यह समझना जरूरी है कि हिंदुस्तान का अर्थ राज्यतंत्र नहीं, बल्कि वो करोड़ों किसान और मजदूर हैं जो राज्य और अर्थ तंत्र की बुनियादें हैं।

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


रमेश शर्मा, https://www.downtoearth.org.in/hindistory/economy/rural-economy/rhetoric-and-reality-of-self-reliance-71208


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close