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न्यूज क्लिपिंग्स् | SC ने पूछा, पंजाब में सिख, कश्मीर में मुस्लिम अल्पसंख्यक कैसे?

SC ने पूछा, पंजाब में सिख, कश्मीर में मुस्लिम अल्पसंख्यक कैसे?

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published Published on Jan 19, 2016   modified Modified on Jan 19, 2016
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब में सिखों के अल्पसंख्यक दर्जे के मामले में केंद्र सरकार को पक्षकार बनाते हुए नोटिस जारी किया है। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी से सुनवाई में कोर्ट की मदद करने का आग्रह किया है। इसके अलावा वरिष्ठ अधिवक्ता टीआर अधिअर्जुना को न्यायमित्र (एमाइकस क्यूरी) बनाया गया है।

गंभीर मसला बताया

सोमवार को सुनवाई के दौरान जब एसजीपीसी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने बहस शुरू की तो पीठ ने कहा कि यह गंभीर मसला है। केंद्र सरकार इस मामले में पक्षकार ही नहीं है। एकतरफा सुनवाई लग रही है।

इसके बाद कोर्ट ने केंद्र को मामले में पक्षकार बनाते हुए नोटिस जारी किया। पीठ ने कहा कि यह मामला उसी तरह का है जैसे कि नगालैंड और मिजोरम में ईसाई व जम्मू-कश्मीर में मुसलमान हैं। इसके बाद कोर्ट ने मामले की सुनवाई चार सप्ताह के लिए टाल दी।

एसजीपीसी की दलील

पंजाब सरकार और एसजीपीसी ने दलील दी है कि हाई कोर्ट ने सिखों की जनसंख्या आदि के आंकड़ों पर विचार किए बगैर बिना किसी उचित आधार के फैसला दे दिया है। गुरुद्वारा एक्ट 1925 में सिखों की परिभाषा दी गई है। ऐसे में सिर्फ उस परिभाषा के आधार पर ही किसी को सिख माना जा सकता है।

उस परिभाषा के मुताबिक 10 गुरुओं में विश्वास करने वाले और गुरुग्रंथ साहिब में आस्था रखने वाले लोग ही सिख हैं। याचिका में कहा गया है कि एसजीपीसी के शिक्षण संस्थान सिर्फ पंजाब में नहीं हैं। इसके शिक्षण संस्थान हरियाणा, हिमाचल प्रदेश तथा केन्द्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में भी हैं।

यह है मामला

यह मामला पंजाब में सिखों के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर है। दिसंबर 2007 में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) द्वारा संचालित शिक्षण संस्थानों में दाखिले में सिख छात्रों को 50 फीसद आरक्षण देने की अधिसूचना रद कर दी थी।

हाई कोर्ट ने एक छात्र की याचिका पर अपने फैसले में कहा था कि पंजाब में सिख राजनीति और सत्ता में प्रभावशाली हैं। राज्य में सिखों को अल्पसंख्यक नहीं कहा जा सकता है। पंजाब सरकार और एसजीपीसी ने हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है।

मामला 2008 से अदालत में लंबित है। आजकल मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ मामले पर विचार कर रही है।

 


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