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न्यूज क्लिपिंग्स् | चेतावनी : पटाखे बना सकते हैं दिल्ली को गैस चैंबर, खतरनाक पीएम 2.5 बढ़ने से बढ़ सकती हैं अतिरिक्त मौतें

चेतावनी : पटाखे बना सकते हैं दिल्ली को गैस चैंबर, खतरनाक पीएम 2.5 बढ़ने से बढ़ सकती हैं अतिरिक्त मौतें

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published Published on Nov 14, 2020   modified Modified on Nov 15, 2020

-डाउन टू अर्थ,

दिल्ली-एनसीआर समेत खराब वायु गुणवत्ता वाले शहरों में यदि कोविड महामारी के दौर वाली 2020 की दीपावली में भी अदालत व अन्य आदेशों का उल्लंघन करते हुए पटाखे दगाए या जलाए जाते हैं तो यह न सिर्फ शहरों को गैस चैंबर में बदल सकता है बल्कि अतिरिक्त मौतों का कारण भी बन सकता है।  

दीपावली में पटाखे जलाए जाने के दौरान कारण यह पाया गया है कि इससे हवा में खतरनाक पार्टिकुलेट मैटर 2.5 में कम से कम 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर बोझ बढ़ जाता है। जबकि वायु प्रदूषण में बढ़ोत्तरी बच्चे -बुजुर्ग और कमजोर लोगों के लिए भयंकर गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करने वाला हो सकता है। यही वजह है कि जीबीडी, 2017 के आंकड़ों के विश्लेषण में डाउन टू अर्थ ने बताया था कि हर तीन मिनट में पांच वर्ष से कम उम्र के एक बच्चे की मौत वायु प्रदूषण जनित निचले फेफड़ों के संक्रमण से हो रही है।   

ऐसे में इस वक्त दिल्ली और अन्य शहरों में पटाखों का अतिरिक्त प्रदूषण आम लोगों के लिए एक बड़ी परेशानी का सबब बन सकता है क्योंकि कई अस्पताल अब भी कोविड-19 को लेकर सीमित दायरे में काम कर रहे हैं और कई जगहों पर आईसीयू जैसे इमरजेंसी बेडों की किल्लत भी है।  

यह सर्वविदित और निर्विवाद है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अक्तूबर से जनवरी के बीच वायु गुणवत्ता में प्रदूषण अक्सर गंभीर और आपात स्तर या उसके आस-पास पहुंच जाती है। वहीं, दीपावली पर्व के दिन पटाखों का जलना वायु गुणवत्ता को बर्बाद करने में उत्प्रेरक का काम करता है।

वहीं, हवा में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 10 का सामान्य मानक 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और पीएम 2.5 का सामान्य मानक 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। जबकि 2019 की दीवाली के दिनों में दिल्ली में वायु गुणवत्ता में यह सर्वाधिक छह गुना, फिर बंग्लुरू में 2.2 गुना, कलकत्ता में 1.4 गुना, लखनऊ में 1.1 गुना अधिक बढ़ गया था।  

कई तरह के प्रदूषक हवा में मौजूद होते हैं, मसलन कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ), नाइट्रिक ऑक्साइड (एनओ), नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड (एनओटू), ओजोन (ओथ्री) आदि। इनमें सबसे खतरनाक बेहद महीन विविक्त कण (पार्टिकुलेट मैटर) 2.5 है जो कि हवा में तैरती हुई तरल बूंदकणों और ठोस स्वरूप का मिश्रण है। इसका व्यास (डायामीटर) 2.5 माइक्रोमीटर से भी कम होता है, जो कि बिना यंत्र आंखों से दिखाई नहीं दे सकता।

पीएम 2.5 सभी तरह के कंबस्टन, मोटर वाहन और पावर प्लांट और औद्योगिक गतिविधियों से पैदा होता है। हालांकि कुछ पटाखों से भी यह बहुत अधिक मात्रा में उत्सर्जित होता है। 

पीएम 2.5  प्रदूषक को सेहत के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है जो कि श्वसन तंत्र को गहराई तक प्रभावित कर सकता है। स्वास्थ्य पर इसका दुष्प्रभाव तात्कालिक रूप में भी दिखाई या महसूस हो सकता है मसलन, आंख, नाक, गला और फेफड़ों में असहजता, कफ, नाक बहना और सांसों का फूलना हो सकते हैं। इसके अलावा दीर्घ अवधि तक इसके जद मेंं रहने वालों लोगों को गंभीर श्वसन तंत्र की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां झेलनी पड़ सकती हैं। यह अस्थमा और दिल की बीमारियों का भी कारक बन सकता है। इसे यूनिट के हिसाब से पीएम 2.5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर कहते हैं। 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 09 नवंबर, 2020 को कोविड-19 और पटाखों के कारण और ज्यादा खराब होने वाली वायु गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए दिल्ली-एनसीआर समेत खराब वायु गुणवत्ता वाले शहरों में पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर रोक लगाने का आदेश भी दिया है। 

हाल ही में इंडियन चेस्ट सोसाइटी, लंग इंडिया ने शोध में बताया है कि छह ऐसे पटाखे हैं जो स्थानीय प्रदूषण तो करते ही हैं बल्कि उनसे पीएम 2.5 का इतना ज्यादा उत्सर्जन होता है कि वो आपके परिवार में बच्चों को मृत्यु तक या उसकी दहलीज पर भी पहुंचा सकते हैं। शोध के मुताबिक :

नाग गोली (स्नेक बार) देखने में जितनी छोटी है उतनी ही घातक है। इससे सबसे कम समय में सबसे ज्यादा पीएम 2.5 का उत्सर्जन होता है।  इससे 3 मिनट में 64,500 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पीएम 2.5 का उत्सर्जन होता है जो कि 464 सिगरेट के बराबर नुकसान देह है।
इसी तरह 1000 बार दगने वाली चटाई (गारलैंड) से  6 मिनट में 38,540 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पीएम 2.5 कणों का उत्सर्जन होता है जो कि 277 सिगरेट के बराबर नुकसान देह है। 
वहीं, फुलझड़ी (पुलपुल) से  3 मिनट में 28,950 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर 2.5 कणों का उत्सर्जन होता है जो कि 208 सिगरेट के बराबर नुकसानदेह है। 
छुरछुरिया (स्पार्कलर्स) के जरिए 2 मिनट में 10,390 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर 2.5 कणों का उत्सर्जन होता है जो कि  74 सिगरेट के बराबर नुकसानदेह है। 
इसके अलावा चकरी (ग्राउंड स्पिनर्स) से 5 मिनट में 9,490 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर 2.5 कणों का उत्सर्जन होता है जो कि 68 सिगरेट के बराबर नुकसानदेह है। 
सबकी पसंदीदा अनार (फ्लॉवर पॉट) से  3 मिनट में 4,860 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर 2.5 कणों का उत्सर्जन होता है जो कि 34 सिगरेट के बराबर नुकसानदेह है। 
पटाखों के इस खतरनाक उत्सर्जन का विज्ञान हमें आगाह करता है लेकिन कोविड-19 में यह और भी ज्यादा सचेत करने वाला है। क्योंकि केंद्रीय पृथ्वी मंत्रालय के अधीन सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) ने 12 नवंबर, 2020 को जारी विश्लेषण बताता है कि 2016 से लेकर 2020 तक दिल्ली की वायु गुणवत्ता का स्तर दीपावली के पांच दिन पहले से दीवाली के पांच दिन बाद तक बहुत खराब स्तर से गंभीर स्तर वाले प्रदूषण के बीच झूलती रहती है।

वहीं, गौर करने लायक है कि दीवाली के अगले ही दिन वायु गुणवत्ता स्तर बेहद गंभीर या जिसे हम आपात स्तर कहते हैं उसे छूने लगती है। वायु गुणवत्ता सूचकांक 500 से 700 तक के लेवल को भी पार करने लगता है। खासतौर से 2016 और 2018 में दीवाली के अगले दो रोज बेहद दमघोंटू रहे हैं। वहीं, 2017 और 2019 में हवा गंभीर स्तर पर पहुंची जरूर लेकिन वह इन दो वर्षों के मुकाबले काफी कम रही है। इस वर्ष सफर का अनुमान है कि दिल्ली का एक्यूआई दीवाली के दिन बढ़कर 300 से 400 के स्तर के बीच बना रह सकता है। 

हालांकि सफर ने अपनी चेतावनी में स्पष्ट किया है कि यदि स्थानीय स्तर पर थोड़ा भी उत्सर्जन होता है तो वह दीवाली के अगले दो दिन यानी 14 और 15 नवंबर को वायु गुणवत्ता को काफी खराब स्तर पर पहुंचा सकता है। 

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


विवेक मिश्रा, https://www.downtoearth.org.in/hindistory/pollution/air-pollution/warning-firecrackers-can-make-delhi-a-gas-chamber-increasing-dangerous-pm-2-5-may-increase-additional-deaths-74226


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