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न्यूज क्लिपिंग्स् | इनडोर पाइप से पेय जल की आपूर्ति से किसे लाभ होता है? लैंगिक आधार पर विश्लेषण

इनडोर पाइप से पेय जल की आपूर्ति से किसे लाभ होता है? लैंगिक आधार पर विश्लेषण

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published Published on Feb 8, 2022   modified Modified on Feb 10, 2022

-आइडियाज फॉर इंडिया,

भारत में, घरों में इनडोर पाइप से पेय जल (आईपीडीडब्ल्यू) की आपूर्ति बहुत सीमित है, और महिलाओं पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि उन्हें बाहर से पानी लाने का बोझ उठाना पड़ता है। यह लेख 2005-2012 के भारत मानव विकास सर्वेक्षण डेटा का उपयोग करते हुए दर्शाता है कि परिवारों को इनडोर पाइप से पेय जल मिलने से रोजगार में- विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और गैर-कृषि रोजगार- दोनों के मामले में लैंगिक अंतर को कम करने में मदद मिल सकती है।

 

रोजमर्रा की जिंदगी में व्यक्तिगत और घरेलू उपयोग के लिए पानी के महत्व को तब सबसे स्पष्ट रूप से समझा जाता है जब किसी को यह आसानी से उपलब्ध नहीं होता और उसे इसके लिए इंतजार करना पड़ता है और/या इसे दूर से लाना पड़ता है। यह अनुत्पादक बोझ भारत में महिलाओं और बच्चों पर असमान रूप से डाला जाता है। सामाजिक रूप से पुरुषों को परिवार के कमाने वाले सदस्य की भूमिका में माना जाता रहा है और महिलाओं एवं बच्चों- विशेष रूप से लड़कियों को अक्सर घर के लिए पानी और जलाऊ लकड़ी लाना, साफ़-सफाई करना, खाना बनाना और घर का सामान्य संचालन जैसे घरेलू कार्यों की जिम्मेदारियां दी जाती हैं (ओ'रेली 2006, फ्लेचर और अन्य 2017, जयचंद्रन 2019)। पाइप से पानी की आपूर्ति उपलब्ध न होने का मतलब है पानी के अधिक खुले स्रोतों का उपयोग करना, जो परिवार के लिए अधिक स्वास्थ्य जोखिम और बीमारी का कारण बनता है– और इसके चलते महिलाओं को अधिक अवैतनिक काम करना पड़ता है। महिलाओं पर पड़ रहे घरेलू कार्यों के अनुपातहीन बोझ को देखते हुए, और भारतीय परिवारों के लिए घर के अंदर पाइप के जरिये पानी की उपलब्धता (कॉफ़ी और अन्य 2014, चौधरी और देसाई 2021) बहुत कम है, इस तथ्य के मद्देनजर, हाल ही में किये गए एक अध्ययन (सेडाई 2021) से मैं दर्शाता हूं कि घरों में पाइप से पानी की व्यवस्था कराने से घरेलू श्रम और स्वास्थ्य असमानता में कमी लाई जा सकती है।

इनडोर पाइप से पेय जल आपूर्ति का महिलाओं के समय के उपयोग और श्रम पर प्रभाव

इनडोर पाइप से पेय जल (आईपीडीडब्ल्यू) के संदर्भ में समय आवंटन और श्रम उत्पादकता (बेकर 1965) के मानक आर्थिक सिद्धांत में प्रकाश डाला गया है। सबसे पहला, घर में पाइप से पेय जल का न होना महिलाओं को पानी इकट्ठा करने के घरेलू काम हेतु व्यतीत होने वाले समय में वृद्धि के माध्यम से असमान रूप से प्रभावित करता है। रोजगार के सन्दर्भ में, तर्क यह है कि प्रतिदिन पानी नहीं लाने से बचाए गए समय को श्रम बाजार (मीक्स 2017) में पुन: आवंटित किया जा सकता है। चित्र 1 भारत में महिलाओं पर पड़ रहे जल संग्रहण के अधिक बोझ को दर्शाता है। चित्र 2 महिलाओं को दिए गए भुगतान-योग्य कार्य और जल संग्रहण के लिए आवंटित समय के बीच का सह-संबंध, जाति के आधार पर दर्शाता है।

चित्र 1. वयस्क महिलाओं और पुरुषों द्वारा दैनिक जल संग्रहण (मिनटों में)

टिप्पणियाँ: (i) उपरोक्त आंकड़ा भारत में महिलाओं पर पडने वाले जल संग्रह के बोझ के कर्नेल घनत्व प्लॉट को दर्शाता है। (ii) वयस्क महिलाओं और पुरुषों में 14 वर्ष आयु वर्ग के लोग शामिल हैं।

स्रोत: 2005-2012 भारत मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस)।

चित्र 2. महिलाओं द्वारा दैनिक जल संग्रहण और बाजार कार्य (मिनटों में), जाति के अनुसार

स्रोत: 2019 इंडिया टाइम यूज सर्वे।

दूसरा, आईपीडीडब्ल्यू के न होने के कारण सतही जल प्रदूषण आधारित अधिक बीमारी के चलते व्यक्तिगत स्वास्थ्य कमजोर हो जाता है। तीसरा, आईपीडीडब्ल्यू की अनुपलब्धता के चलते, परिवार अक्सर पीने के पानी के सामुदायिक और कम स्वच्छ स्रोतों (जैसे खुले कुएं, हैंडपंप, या अन्य सतह-स्तर के स्रोत) का सहारा लेते हैं, ऐसे में उनके द्वारा अपने हाथ कम बार धोये जाने की स्थिति में परिवार में बीमारीयां बढ़ सकती हैं। फलस्वरूप, महिलाएं अपना अधिक समय अवैतनिक देखभाल के कार्य में बिताती हैं (जैसे- स्कूल नहीं जा रहे दस्त से पीड़ित बच्चों या बुखार, खांसी और अन्य संक्रमण वाले बुजुर्गों की देखभाल करना) और श्रम बाजार में कम समय बिताती हैं।

उपरोक्त अवधारणा का अनुसरण करते हुए, मैं सबसे पहले भारत में आईपीडीडब्ल्यू की स्थिति की जांच करता हूं। आईएचडीएस (भारत मानव विकास सर्वेक्षण) 2005-2012 और एक्सेस (एक्सेस टू क्लीन कुकिंग एनर्जी एंड इलेक्ट्रिसिटी सर्वे ऑफ स्टेट्स) 2015-2018 का पैनल डेटा भारत में घरेलू स्तर पर पर्याप्त आईपीडीडब्ल्यू की स्पष्ट कमी को दर्शाता है। आईएचडीएस के आंकड़े दर्शाते हैं कि, वर्ष 2005 में, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आईपीडीडब्ल्यू की औसत पहुंच क्रमशः 16% और 51% थी; जबकि वर्ष 2012 में, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में इसकी औसत पहुंच क्रमशः 21% और 50% थी। राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के अंतर्गत भारत में आईपीडीडब्ल्यू में लगभग 5% की वृद्धि होना एक ग्रामीण घटना है। भारत में राज्यों के बीच और भीतर असमानताएं हैं। इन दोनों वर्षों में आईपीडीडब्ल्यू की जिला स्तर (आईएचडीएस-सर्वेक्षण जिलों) पर औसत पहुंच लगभग 0.25% से 0.5% थी। कुछ जिलों (ज्यादातर शहरों और भारत के दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्रों में) जहां आईपीडीडब्ल्यू आपूर्ति के औसत घंटे छह से 12 घंटे के बीच हैं, को छोड़कर, चाहे कोई भी राज्य हो, अधिकांश जिलों को दिन में लगभग एक और सात घंटे पानी की आपूर्ति होती है। कुल मिलाकर, भारत में घरेलू स्तर पर पीने के पानी के बुनियादी ढांचे की गंभीर कमी है।

घर के अंदर पाइप से पीने का पानी उपलब्ध कराने से किसे लाभ होता है?

मैं व्यक्तिगत, घरेलू स्तर और ग्राम स्तर पर, लिंग और स्थान के अनुसार रोजगार और स्वास्थ्य परिणामों पर आईपीडीडब्ल्यू के प्रभावों की जांच करता हूं। आईपीडीडब्ल्यू1 तक पहुंच में भिन्नता को समझने के लिए, मैं आईएचडीएस (2005-2012)2 (देसाई और वैनमैन 2018) के राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधि पैनल3 का उपयोग करता हूं। सर्वेक्षण में लिंग-पृथक श्रम और गैर-श्रम बाजार की प्रमुख विशेषताओं (अर्थात, घर पर अवैतनिक देखभाल का काम), रोजगार डेटा जैसे मजदूरी वेतन, खेत, गैर-कृषि रोजगार, वार्षिक आय, कार्यदिवस तथा स्व-रिपोर्ट की गई स्वास्थ्य की स्थिति, व्यक्तिगत स्तर पर अन्य के साथ-साथ दस्त जैसी बीमारी की घटना, और जल संग्रहण के मिनट को शामिल किया गया है। विश्लेषण के लिए मैंने आईएचडीएस सर्वेक्षण के प्रत्येक दौर से 78,751 पुरुषों और 71,623 महिलाओं के समय संतुलित नमूने4 का उपयोग किया है।

चित्र 3. वर्ष 2005-2012 के दौरान लैंगिक आधार पर जल और जल संग्रहण तक पहुंच

टिप्पणियाँ: (i) आईपीडीडब्ल्यू और 'घर में पानी' को प्रतिशत में दर्शाया है। (ii) पानी की आपूर्ति के घंटे, और जल संग्रह के मिनट का दैनिक औसत, पानी लाने के लिए कम से कम कुछ समय व्यतीत किया है तो दर्शाया है।

मैं निम्नलिखित तरीके से अनुभव-जन्य विश्लेषण करता हूं: सबसे पहले, मैं व्यक्तिगत स्तर के डेटा को गांव स्तर पर निपाती रूप में देखते हुए और समय5 के साथ बहिर्जात गांव-स्तर की विशेषताओं के माध्यम से गांव-स्तर पर पानी के बुनियादी ढांचे की स्थापना को नियंत्रित करके रोजगार के परिणामों पर आईपीडीडब्ल्यू के प्रभाव की जांच करता हूं। दूसरा, मैं स्थानीय औसत उपचार प्रभावों6 के साथ आकस्मिक अनुमानों को खोजने के लिए, एक राज्य के एक विशेष जिले में एक साधन चरके रूप में अन्य सभी गांवों या प्राथमिक नमूना इकाइयों में आईपीडीडब्ल्यू की औसत पहुंच में अस्थायी भिन्नता का उपयोग करता हूंI यह साधन किसी जिले में एक परिवार की आईपीडीडब्ल्यू तक पहुंच की संभावना को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, लेकिन अन्य नियंत्रणों पर सशर्त, व्यक्तिगत स्तर पर रोजगार और स्वास्थ्य के परिणामों को सीधे प्रभावित नहीं करता है। आस-पास के क्षेत्रों में उपलब्ध पानी के बुनियादी ढांचे की स्थापना की सापेक्ष आसानी के माध्यम से और पाइप से पानी के लाभों के बारे में जागरूकता के माध्यम से अन्य गांवों में उच्च औसत में पहुंच, विचाराधीन गांव में पहुंच को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। आईपीडीडब्ल्यू की उपलब्धता के निम्न औसत को देखते हुए, मैं यह अनुमान लगाता हूं कि यदि हम संबंधित व्यक्ति के विचाराधीन गांव को अपने विश्लेषण में शामिल नहीं करते हैं, तो निर्धारित गांव में अन्य गांव-स्तरीय पहुंच का कोई प्रभाव व्यक्ति के परिणाम पर नहीं पड़ेगा। मैं यह भी अनुमान लगाता हूं कि परिवार के अपने समुदाय-स्तर के आईपीडीडब्ल्यू का प्रभाव व्यक्तिगत श्रम-बल की भागीदारी पर पड़ेगा, अतः किसी के अपने गांव को साधन में शामिल नहीं करना 'बहिष्करण प्रतिबंध' का संकेत है।

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


आशीष सेदाई, https://www.ideasforindia.in/topics/social-identity/who-benefits-from-indoor-piped-drinking-water-supply-a-gender-analysis-hindi.html


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