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सशक्तीकरण | दो युवकों ने बदल दी झारखंड के एक प्यासे गांव की तस्वीर
दो युवकों ने बदल दी झारखंड के एक प्यासे गांव की तस्वीर

दो युवकों ने बदल दी झारखंड के एक प्यासे गांव की तस्वीर

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published Published on Sep 5, 2020   modified Modified on Sep 5, 2020

-इंडिया वाटर पोर्टल,

दुनियाभर में पर्यावरण और जल संरक्षण का कार्य काफी तेजी से चल रहा है, लेकिन अधिकांश लोग इस कार्य को सोशल मीडिया पर स्टेटस डालकर अधिक कर रहे हैं। इसके बाद जल संरक्षण व्हाट्सअप्प आदि प्लेटफार्म पर फाॅरवर्ड मैसेज के रूप में देखने को मिलता है। स्पष्ट तौर पर हमारा जीवन सोशल मीडिया तक सीमित हो गया है और देश भीषट जल संकट का सामना कर रहा है, लेकिन झारखंड के दो युवकों ने इंटरनेट की ऑनलाइन दुनिया का सदुपयोग कर झारखंड के एक गांव की तस्वीर बदल दी। ये दोनों युवक मंगेश झा और शशांक सिंह हैं।

पिछली स्टोरी हमने रांची के रहने वाले मंगेश झा (मंगरु पैडमैन) के बारे में बताया था, जो ग्रामीण लड़कियों और महिलाओं को माहवारी के प्रति जागरुक कर रहे थे। वें महिलाओं को सेनेटरी पैड भी उपलब्ध करवाते थे। मंगेश तीन साल से झारखंड के छोटा नागपुर इलाके के इस मांव (रसाबेड़ा) में अपने सामाजिक अभियानों के तहत आ रहे थे। गांव में 28 परिवार रहते हैं। उन्होंने सभी को माहवारी के प्रति जागरुक तो किया, लेकिन गांव में पानी की बड़ी समस्या थी। गिरते जलस्तर के कारण हैंडपंपों किसी काम के नहीं रहे थे। गांव में स्वच्छ जलस्रोत का अभाव था, जिस कारण पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए ग्रामीण एकमात्र जलस्रोत चुआ (जलभर) पर निर्भर थे। 

जलभर से पानी भरने के लिए लड़कियों और महिलाओं को गांव से दूर जाना पड़ता था। ऐसे में पानी से भरे बर्तनों को उठाकर लाने से उनके शरीर को विभिन्न प्रकार से नुकसान तो उठाना ही पड़ता था। साथ ही जलभर का पानी भी साफ नहीं है। ऐसे में दूषित पानी से गांव में विभिन्न प्रकार की बीमारियों के पनपने का खतरा बना हुआ था। मंगेश ने गांव को जल संकट से निजात दिलाने का संकल्प लिया, लेकिन सबसे बड़ा सवाल था कैसे?

कहते हैं जिंदगी में अच्छा कार्य करने की सोचों तो राह अपने आप बन जाती है। ऐसा ही मंगेश के साथ हुआ। उनकी मुलाकात एक बार शशांक से हुई। बातों बातों में पता चला कि शशांक चार सालों से जल संरक्षण के लिए कार्य कर रहा है। एसबीआई फेलोशिप के अंतर्गत जल संरक्षण के काफी कार्य किए हैं। संयोगवश ही सही, लेकिन मंगेश को एक साथी मिल गया था और उसके देर किए बिना शशांक को रसाबेड़ा आकर गांव के लिए कुछ करने के लिए कहा। उन्होंने तुरंत हां कर दी और दोनों ने मिलकर ‘ग्राउंड वाॅटर एंड रिफाॅरेस्टेशन एडप्टिव मैनेजमेंट ऐसोसिएशन’ नाम से संगठन की स्थापना की। अपने पहले प्रोजेक्ट के तौर पर उन्होंने ‘रसाबेड़ा पेयजल परियोजना’ पर काम किया। 

शशांक ने इंडिया वाटर पोर्टल को बताया कि सबसे पहला काम ग्रामीणों को इस काम के लिए तैयार करना था। उनका भरोसा जीतना था। क्योंकि हम कुछ भी चीज़ बनाकर ऐसे ही छोड़ देना नहीं चाहते थे। क्योंकि इससे समाधान कुछ समय के लिए ही होता है। इसलिए हम बार बार गांव वालों के बीच जाते रहे। किसी भी कार्य को करने के लिए लोगो का सहयोग जरूरी होता है। हमने लोगों को सहयोग के लिए तैयार किया। साथ ही उन्हें समझाया कि जो भी कार्य किया जाएगा उसके रखरखाव की जिम्मेदारी भी उनकी ही होगी।

किसी भी कार्य को करने से पहले उसका ब्लूप्रिंट तैयार किया जाता है। शशांक और मंगेश ने पहले की निर्धारित कर लिया था कि क्या और कैसे करना करना था। गांवा वालों को मनाने के बाद दूसरा काम फंड जुटाने का था। क्योंकि उनके पास पर्याप्त पैसे नहीं थे और उन्होंने इस प्रोजेक्ट के लिए 2 लाख 75 हजार रुपये का बजट तय किया था। उन्होंने गांव की ऑफलाइन दुनिया को बदलने के लिए ऑनलाइन दुनिया (इंटरनेट) का सहारा लिया। एक क्राउडफंडिंग अभियान लगाया। अभियान से लगभग 2 लाख 20 हजार रुपये इकट्ठा हुए। बाकी के पैसे दोनों ने अपनी जेब से लगाए। हालांकि इसमें थोड़ा समय जरूर लगा।

पूरी विजयगाथा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


हिमांशु भट्ट, https://hindi.indiawaterportal.org/content/mangesh-aur-shashank-ne-badal-di-jharkhand-ke-ek-pyase-gaon-ki-tasveer/content-type-page/1319335937


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