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न्यूज क्लिपिंग्स् | डब्ल्यूटीओ के 12वें मंत्रीस्तरीय सम्मेलन में भारत के लिए "पीस क्लॉज" से "परमानेंट सलूशन" तक जाने की गंभीर चुनौती

डब्ल्यूटीओ के 12वें मंत्रीस्तरीय सम्मेलन में भारत के लिए "पीस क्लॉज" से "परमानेंट सलूशन" तक जाने की गंभीर चुनौती

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published Published on Nov 10, 2021   modified Modified on Nov 15, 2021

-रूरल वॉइस,

विश्व व्यापार संगठन  (डब्ल्यूटीओ) के 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (एमसी12) की बैठक 30 नवम्बर से लेकर 3 दिसम्बर के दौरान  स्विटजरलैंड के जेनेवा में आयोजित की जाएगी । एमसी 12 का पिछले साल कजाकिस्तान में होने वाला यह सम्मेलन  कोरोना महामारी के कारण स्थगित हो गया था ।  साढ़े सात दशक पहले अस्तित्व में आई बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के समय से ही डब्ल्यूटीओ के सदस्यों के बीच कृषि सबसे  विवादस्पद मुद्दों में से एक रहा  है। इस क्षेत्र से संबंधित लगभग सभी मुद्दों पर डब्ल्यूटीओ के सदस्य देश बहुत ज्यादा विभाजित रहे है । हालांकि कृषि से जुड़े मुद्दों पर बातचीत समिति के चेयरमैन राजदूत ग्लोरिया अब्राहम पेराल्टा द्वारा  जुलाई के अंत में  प्रारंभिक मसौदा  पेश  करने के बावजूद भी  कृषि पर औपचारिक  चर्चा कम  ही हुई  है।  इसके पीछे का मुख्य कारण यह रहा है  कि पूर्व में रहे चेयरमैन जिस तरह से बातचीत और चर्चाओं का दायरा बढ़ाने की कोशिश करते रहे हैं उनके उलट पेराल्टा ने ऐसा कोई उत्साह दिखाने की बजाय न्यूनतम एजेंडा  के विकल्प को चुना है।  उन्होंने सभी प्रमुख मुद्दों को शामिल करते हुए मंत्रिस्तरीय निर्णयों की एक  को अपनाने का प्रस्ताव दिया है। जो विश्व व्यापार संगठन की सदस्यता की जटिलताओं पर विचार किए बिना देशों की जरूरतों,  चिंताओं और विकास के विभिन्न स्तरों पर विचार किये बिना कृषि पर समझौते यानि एग्रीमेंट आन एग्रीकल्चर  (एओए) में संशोधन करने की एक कोशिश है।

राजदूत पेराल्टा के दृष्टिकोण के साथ प्रमुख समस्या यह है कि वह एओए के अनुच्छेद 20 के  प्रावधानों का इस्तेमाल करते हैं  जो 1999 में लागू  हुए समझौते की स्वतः समीक्षा करने का अधिकार देता है।  डब्लूटीओ  के सदस्य देशों ने एनालसिस एण्ड इनफार्मेशन (एआईई) की प्रक्रिया शुरू की थी जिसका मकसद एओए के प्रावधानों को लागू करने के अपने अनुभवों को साझा करना है।  जो एओए की समीक्षा करने के लिए उपयोग की जा सकती हैं।

एआईई प्रक्रिया ने दोहा मंत्रिस्तरीय घोषणा के लिए प्रारंभिक तैयारी का काम किया। जिसने एओए की समीक्षा और सुधार करने के लिए सदस्यों को वार्ता के लिए अधिकृत किया। जिसे दोहा डवलमेंट एजेंडा (डीडीए) के रूप में जाना जाता है। लेकिन 16 साल की वार्ता  के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकलने के चलते  2017 में ब्यूनस आयर्स मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (एमसी 11) में डीडीए के भविष्य को लेकर सवाल उठे थे। कुछ प्रभावशाली सदस्यो के चलते ही डीडीए का यह हश्र होता दिखता है । इसीलिए कृषि वार्ता के लिए चेयरमैन द्वारा डीडीए से पूर्व के अनुच्छेद 20 को कृषि पर वार्ता के लिए फ्रेमवर्क बनाने के कदम से साफ है डीडीए अब पुरानी बात हो गई है।  इस दृष्टि से डीडीए की अस्वीकृति स्पष्ट अभिव्यक्ति है कि डब्लूटीओ का कार्य और कार्यक्रम अब से विकास के आयाम से रहित होगा। जिसके बिना अधिकांश विकासशील देश पीछे रह जाएंगे।

घरेलू सहायता पर प्रस्ताव:

एओए के अनुशासन के लिए तीन आधार स्तंभ हैं जिनमें घरेलू सहायता यानी उत्पादन-संबंधित सब्सिडी, निर्यात प्रतिस्पर्धा जिसमें निर्यात के लिए दी जाने वाली सब्सिडी और बाजार पहुंच शामिल है। इनमें  घरेलू सहायता के मामले में अनुशासन  का पालन सबसे कम प्रभावी रहा हैं। सब्सिडी पर नियंत्रण का फैसला जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एंड ट्रेड (गैट) की 1986 की उरुग्वे दौर की वार्ता में हुआ था। इसमें  सब्सिडी पर अनुशासन का पालन करने के लिए ऐजेंडा पेश किया गया था। गैट (डब्ल्यूटीओ का पूर्व स्वरूप) के सामान्य समझौते के अनुबंध में कृषि व्यापार को प्रभावित करने वाली किसी भी तरह की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सब्सिडी को नियंत्रित करने पर सहमति हुई थी।  हालांकि, एओए के तहत किये गये अंतिम प्रावधानों में विकसित देशों द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी के एक बड़े हिस्से को कृषि व्यापार पर प्रतिकूल असर नहीं डालने वाली सब्सिडी माना गया और उनको “ग्रीन बॉक्स” के तहत शामिल किया गया। ग्रीन बॉक्स के तहत दी जाने वाली सब्सिडी की कोई सीमा तय नहीं इनमें से कुछ अधिक प्रमुख "ग्रीन बॉक्स" सब्सिडी का उपयोग मार्केंट क्लीयरी सिस्टम के रूप में किया जाता है खासतौर से अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के सदस्य देशों द्वारा ऐसा किया जाता है ।

वहीं  इनपुट सब्सिडी और एडमिनिस्टर्ड प्राइस  सिस्टम को ट्रेड डिस्टोरटिंग सब्सिडी माना जाता है। भारत इस व्यवस्था का उपयोग अपने निम्न-आय या संसाधनों  की कमी वाले उत्पादकों की सहायता के लिए करता है।  सरकार द्वारा डब्ल्यूटीओ को दी गई जानकारी में 99.4 फीसदी कृषि जोत को इसके तहत माना है।  दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार किसानों को अनिवार्य रूप से आजीविका और घरेलू खाद्य सुरक्षा की रक्षा के लिए सब्सिडी देती है। इस प्रकार, कृषि सब्सिडी को व्यापार विकृत या अन्यथा के रूप में वर्गीकृत करने का कोई स्पष्ट आधार नहीं है लेकिन एओए ऐसा मानता है।  विडंबना यह है कि एओए के तहत "एम्बर बॉक्स" सब्सिडी के रूप में जानी जाने वाली इस सहायता को कुल उत्पादन के मूल्य के 10 फीसदी  तक सीमित किया गया है।

घरेलू समर्थन के मुद्दे पर आगे का रास्ता सुझाते हुए कृषि वार्ता के चेयरमैन ने प्रस्ताव दिया है कि डब्ल्यूटीओ के सदस्य देशों के मंत्रीस्तरीय वार्ता एमसी 12 में घरेलू सहायता पर नई व्यवस्था लागू करने का फैसला लेने के लिए नये सिरे से बात करें जिसके तहत व्यापार को प्रभावित करने वाली सभी संभावित सब्सिडी को शामिल किया जा सके।  इसमें  (एओए का अनुच्छेद 6.2) के तहत निम्न-आय या कम संसाधनों वाले उत्पादकों को मिलने वाली इनपुट सब्सिडी भी शामिल है। इस प्रावधान का फायदा भारत भी उठा रहा है। अनुच्छेद 6.2 सब्सिडी को 10 फीसदी  की व्यय सीमा के तहत लाने से भारतीय कृषि पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा ।

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


डॉ विश्वजीत धर, https://www.ruralvoice.in/opinion/wto-mc12-india-faces-tough-challenges-in-moving-from-peace-clause-to-permanent-solution.html


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