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न्यूज क्लिपिंग्स् | अंग्रेज भी उत्तराखंडी खुशबू के मुरीद

अंग्रेज भी उत्तराखंडी खुशबू के मुरीद

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published Published on Jun 28, 2010   modified Modified on Jun 28, 2010

देहरादून [केदार दत्त]। देहरादून देवभूमि से खुशबू को ऐसे पंख लगे कि वह घर से निकलकर सात समंदर पार की सैर में मशगूल हो गई। अरब के शेखों और समूचे यूरोप पर इसका ऐसा रंग चढ़ा वे इसके मुरीद हो गए हैं।

इस बात की इससे तस्दीक होती है कि बीते सीजन में उत्तराखंड से चालीस हजार क्विंटल बासमती में से करीब अस्सी फीसदी का निर्यात खाड़ी और यूरोप के मुल्कों को हुआ। इसमें भी देहरादूनी की डिमाड सबसे अधिक है। इस जैविक बासमती की जबरदस्त माग को देखते हुए अब आने वाले सीजन के लिए इसी ढंग से तैयारिया की जा रही हैं। यह बात अलग है कि वक्त की मार से बासमती अछूती नहीं रही है, लेकिन इसके कद्रदानों की आज भी कमी नहीं है। फिर इस बासमती की बात ही कुछ अलग है। पकने लगे तो भूख बढ़ जाए और खुशबू ऐसी जो दीवाना बना दे।

सदियों से कुछ ऐसी ही पहचान रही है देहरादूनी बासमती की। दून ही नहीं उत्तराखंड के अन्य क्षेत्रों में होने वाली इस बासमती की महक और स्वाद के दीवानों की तादाद भी कम नहीं है। सिमटती बासमती को जिलाने के कुछ प्रयास हुए तो फिर से इसकी महक बिखरने लगी है। यह ठीक है कि बासमती के घर में ही लोग इसका स्वाद नहीं उठा पा रहे हैं, लेकिन विदेशों में इसके चाहने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है।

खासतौर से जैविक बासमती की। यहा यह उल्लेख जरूरी है कि उत्तराखंड में होने वाली जैविक बासमती में सर्वाधिक 60 फीसदी का योगदान ऊधमसिंहनगर जिले का है, जबकि हरिद्वार की 20, देहरादून की 15 और नैनीताल जनपद की 5 फीसदी भागीदारी है। करीब ढाई हजार किसान इससे जुड़े हैं।

कृषि निर्यात विकास इकाई देहरादून के प्रबंधक अनूप रावत [बासमती निर्यात क्षेत्र] एवं प्रबंधक [तकनीकी] अमित श्रीवास्तव के मुताबिक बीते खरीफ सीजन में उत्तराखंड से 40 हजार क्विंटल जैविक बासमती निर्यात की गई। इसका करीब 80 फीसदी खाड़ी व यूरोप के देशों में निर्यात हुआ।

उन्होंने बताया कि खाड़ी के देशों सउदी अरब, कतर आदि में तो यहा की बासमती की सबसे ज्यादा डिमाड हैं और इसमें देहरादून बासमती [टाइप-3] पहले नंबर पर है। उन्होंने बताया कि एक्सपोर्ट के लिए टाइप-3 यानी देहरादूनी, पूसा-1 और तराबड़ी किस्मों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। जहा तक टाइप -3 की बात है तो इसमें सुगंध थोड़ी ज्यादा है और इसे देहरादून के अलावा अन्य जिलों में भी उगाने को बढ़ावा दिया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि विदेशों में जैविक बासमती की बढ़ती डिमाड को देखते हुए निर्यात के लिए इसके अधिक उत्पादन और गुणवत्ता सुधार के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। उम्मीद है कि आने वाले सीजन में निर्यात का आकड़ा और बढ़ेगा और किसानों की झोलिया भरेंगी।


http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6527477.html


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