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न्यूज क्लिपिंग्स् | अंधेरी बंद कोठरियों में-- सुभाषिनी सहगल अली

अंधेरी बंद कोठरियों में-- सुभाषिनी सहगल अली

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published Published on Dec 25, 2017   modified Modified on Dec 25, 2017
मैं इस लेख की शुरुआत इस बात से करने वाली थी कि साठ बड़े भारतीय अर्थशास्त्रियों ने अरुण जेटली को खुला पत्र लिखकर देश की महिलाओं के स्वास्थ्य और खुशहाली पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने मांग की है कि आने वाले बजट में वह भी इन चिंताओं पर ध्यान दें। ये सब बड़े अर्थशास्त्री हैं और एमआईटी, हार्वर्ड, न्यूयॉर्क विश्वविद्यालयों से लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय और अन्य विश्वविद्यालयों में कार्यरत हैं। मैं लिखने वाली थी कि जिस चिंता से प्रेरित होकर उन्होंने यह पत्र लिखा है, शायद वह हम सब की चिंता का विषय बनेगा कि मेरी नजर अखबार पर गई।


दिल्ली के रोहिणी में एक आश्रम है, जिसका नाम आध्यात्मिक विश्वविद्यालय आश्रम है। इसकी पांच मंजिली बिल्डिंग के लोहे के दरवाजे हमेशा बंद ही रहते हैं। बिल्डिंग के अंदर भी तमाम लोहे के बंद दरवाजे हैं और छोटी-छोटी कोठरियां। इन कोठरियों में सौ से अधिक महिलाएं हैं, जो कई वर्षों से कभी बाहर गई ही नहीं थीं। आश्रम के बारे में एक एनजीओ ने अदालत में शिकायत की और अदालत ने दिल्ली पुलिस और महिला आयोग को जांच के आदेश दिए। अदालत से वारंट लेकर उसमें रात को छापा डाला गया। जब उन्होंने आश्रम की तलाशी ली, तो उन्हें बहुत ही बुरी दशा में किसी तरह से जिंदा रहने वाली महिलाओं से मिलने का मौका मिला।


एक महिला वकील, नंदिता राव, को अदालत ने पुलिस के साथ आश्रम की जांच करने के लिए तैनात किया था। उनका कहना है कि आश्रम में रहने वाली महिलाओं को अंधेरी कोठरियों में रखा जाता था, जहां सूरज की किरणों का प्रवेश वर्जित था। लड़कियों/महिलाओं के लिए किसी प्रकार की निजता नहीं थी। बत्तीस वर्षीया एक महिला ने नंदिता को बताया कि ‘वह (आश्रम अधिकारी) हमें बताते थे कि अगर हम बाहरी दुनिया से किसी प्रकार का संबंध स्थापित करेंगे, तो यह पाप होगा...एक बाबा ने मुझसे कहा कि मैं उनकी 16,000 रानियों में से एक हूं और उन्होंने मेरे साथ कई बार बलात्कार किया। आश्रम अधिकारियों ने आरोपों को नकारते हुए कहा है कि तमाम महिलाएं वहां स्वेच्छा से थीं और वहां उन्हें पेट भर भोजन और योग एवं अध्यात्म का लाभ मिल रहा था। पता नहीं, देश भर में कितने ऐसे आश्रम होंगे! कितनी ऐसी अंधकारमय जगहें होंगी, जिनमें न जाने कितनी महिलाओं और बच्चियों को सूरज और समाज से दूर बंधक बनाकर रखा जाता होगा!


ऐसे में ये साठ वरिष्ठ अर्थशास्त्री फिर भी हिम्मत जुटाकर वित्त मंत्री से मांग कर रहे हैं कि देश की महिलाओं की हालत देखो। उनका स्वास्थ्य देखो। बच्चा पैदा करते समय उन्हें अस्पताल में भर्ती होने के लिए तुमने छह हजार रुपये देने का वायदा किया था, वह पूरा करो। वृद्धों और विधवाओं को दो सौ रुपये पेंशन देते हो, उनका गुजारा कैसे होगा?


उनके इन सवालों के साथ बहुत सारे सवाल जोड़े जा सकते हैं। आधार कार्ड के नाम पर उनके सस्ते राशन का अधिकार क्यों छीनते हो? मनरेगा की बकाया मजदूरी और नया काम न देकर कितनों को तुम पलायन करने पर मजबूर कर रहे हो, इत्यादि-इत्यादि। गरीबी महिलाओं को कहां-कहां धकेल रही है, यह देखना हो, तो रोहिणी के उस काली कोठरियों वाले आश्रम में देखा जा सकता है। लेकिन, नया साल तो आएगा ही। शायद उससे पहले उन साठ वरिष्ठ अर्थशास्त्रियों के पत्र का उत्तर वित्त मंत्री देने का काम भी कर देंगे।


हैप्पी न्यू ईयर कहने पर रोक न हो, तो कह दूं।

-माकपा पोलित ब्यूरो की सदस्य।


https://www.amarujala.com/columns/opinion/in-dark-closed-rooms


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