Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | गांव और गरीब राम भरोसे

गांव और गरीब राम भरोसे

Share this article Share this article
published Published on Jun 1, 2021   modified Modified on Jun 5, 2021

-आउटलुक,

“सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे से हम सब परिचित हैं, सरकार को मार्च 2020 में ही सचेत हो जाना चाहिए था कि महामारी का असर ग्रामीण क्षेत्र पर कितना भयावह हो सकता है”

जब मैं ये पंक्तियां लिख रहा हूं, देश के ग्रामीण इलाकों से महामारी की वीभत्सता की अनेक तस्वीरें सामने आ चुकी हैं। हमने बिहार और उत्तर प्रदेश में पावन गंगा में बहती लाशों का हृदय विदारक दृश्य भी देखा है। ग्रामीण भारत का बड़ा हिस्सा सांसों के लिए तड़प रहा है। इसकी आशंका हमें पहले से थी, बल्कि हमने चेताया भी था। पिछले साल से ही यह आशंका व्यक्त की जा रही थी कि वायरस ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर देगा। वह आशंका अब सच साबित हो रही है।

वायरस लगातार मौत का तांडव कर रहा है। न सिर्फ मेरे गृह प्रदेश बिहार से, बल्कि पूरे देश से लोग मदद के लिए मुझसे फोन पर गुहार लगा रहे हैं। इस जानलेवा बीमारी से ग्रसित असंख्य नागरिकों की तरह मैं भी उनकी बात सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, अपने साथियों के पर्सनल नेटवर्क, सिविल सोसाइटी संगठन और कर्तव्यनिष्ठ छात्रों तक पहुंचा रहा हूं, ताकि जरूरतमंदों को राहत मुहैया कराई जा सके। साथ ही सत्ता में बैठे लोगों और नौकरशाहों से प्रार्थना कर रहा हूं कि इस अभूतपूर्व संकट से निपटने में लोगों की मदद के लिए वे और ज्यादा दृष्टिगोचर और सक्रिय हों, तथा सहानुभूति का रवैया दिखाएं।

एक सामंजस्यपूर्ण, समयबद्ध और सुविचारित नीति का अभाव आश्चर्यचकित करने वाला है। कहते हैं कि प्लानिंग की विफलता, विफलता की प्लानिंग करने के समान है। सरकार को पिछले साल काफी वक्त मिला था, लेकिन उसने उसे यूं ही गंवा दिया। उसने विशेषज्ञों की सलाह की अनदेखी और उपेक्षा की, और सोती हुई नजर आई। दुर्भाग्य की बात यह है कि वह वास्तव में सो नहीं रही थी, बल्कि लोक विरोधी नीतियां और कानून बनाने में वह अपने सभी संसाधन और राजनैतिक ताकत झोंक रही थी। इसी का नतीजा है वैक्सीन नीति जो बहुत ही खराब है। वैक्सीन की कमी के कारण महामारी का असर और अधिक विनाशकारी हो गया है।

अधिकारों का इतना अधिक केंद्रीकरण हो गया है कि सांसदों से सांसद निधि का पैसा आवंटित करने का अधिकार भी छीन लिया  गया, इस रकम से सांसद ग्रामीण इलाकों में काफी काम कर सकते थे

सत्ता में बैठे लोगों के अभिमान और शीर्ष नेतृत्व में दूरदृष्टि और सहानुभूति के अभाव के कारण बहुमूल्य समय नष्ट हो गया। संसद चलने नहीं दी गई, सत्ता में बैठे लोगों से सवाल पूछने की बात तो दूर है। तमाम हाइकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक, न्यायपालिका को कार्यपालिका के आवश्यक कार्यों की निगरानी के लिए दखल देने की जरूरत पड़ी। आलोचना करने और असंतोष व्यक्त करने वालों को अपराधी बना दिया गया। आज विशेषज्ञों, सरकारी अधिकारियों और ईमानदार पत्रकारों के लिए तथ्यों को सामने लाना किसी खतरे से कम नहीं है। ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’, ‘सहकारी संघवाद’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ का नारा देने वाली सरकार के कार्यकाल में वास्तव में अधिकारों का इतना अधिक केंद्रीकरण हो गया है कि सांसदों से सांसद निधि का पैसा आवंटित करने का अधिकार भी छीन लिया गया है। महामारी के समय सांसद इस निधि से अपने संसदीय क्षेत्र में लोकहित के काफी कार्य कर सकते थे, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां महामारी का असर सबसे अधिक दिख रहा है।

शहरों की चिंताएं तो सुनी-देखी जा रही हैं, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी उनकी समस्याएं नजर आती हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र इस संवाद से लगभग बाहर है। पिछले साल लगाए गए लॉकडाउन के असर से शहरों और गांवों के गरीब अभी तक जूझ रहे हैं। यहां एक बात बताना जरूरी है कि कोविड-19 के आने से पहले 2016 की नोटबंदी के कारण हमारी अर्थव्यवस्था पहले ही कमजोर हो चुकी थी।

आर्थिक लिहाज से देखा जाए, तो महामारी ने खासकर गरीबों के जख्मों पर नमक लगाया है। इलाज के बढ़ते खर्च और लॉकडाउन के कारण खेती से जुड़ी चीजों की आपूर्ति में बाधा जैसे कारणों से गरीबों की परेशानियां काफी बढ़ गई हैं। इनमें खासतौर से किसान, महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग, विकलांग, ट्रांसजेंडर, गरीब फ्रंटलाइन कर्मी और अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले करोड़ों लोग शामिल हैं, चाहे वे गांव के हों या शहर के। कोढ़ में खाज यह कि जिन युवाओं को भारत की आबादी का सबसे मजबूत स्तंभ माना जाता था, उसे वायरस का नया स्ट्रेन अपनी चपेट में ले रहा है।

ग्रामीण इलाकों में इस संकट के अकल्पनीय असर पर गंभीरतापूर्वक सोचने की जरूरत है, क्योंकि भारत की 65 फीसदी आबादी यहीं रहती है। संसाधनों के अभाव और पंगु कर देने वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे से हम भली-भांति परिचित हैं। ऐसे में सरकार को मार्च 2020 में ही सचेत हो जाना चाहिए था कि महामारी का असर ग्रामीण क्षेत्र पर कितना भयावह हो सकता है। ग्रामीण भारत पानी की कमी के लिए जाना ही जाता है। खेती काफी हद तक मानसून और मौसम की अनिश्चितता पर निर्भर करती है। जब-तब पड़ने वाला सूखा और बाढ़ लोगों की आर्थिक सेहत को कमजोर कर देता है। इस वजह से किसान आत्महत्या करते हैं। इस गंभीर समस्या की अक्सर अनदेखी की गई है। कोविड-19 महामारी ने ग्रामीणों की इन समस्याओं में इजाफा ही किया है।

भारत में खेती करने वाले 86 फीसदी छोटे और सीमांत किसान हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड-19 महामारी के कारण जो आर्थिक बोझ बढ़ेगा, उससे किसान आत्महत्याएं बढ़ सकती हैं। महामारी और लॉकडाउन के कारण हैंडीक्राफ्ट और हैंडलूम से जीवन यापन करने वाले बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। खेती के बाद सबसे अधिक लोग टेक्सटाइल और हैंडीक्राफ्ट के क्षेत्र में ही काम करते हैं। नोटबंदी से भी इस सेक्टर को बहुत नुकसान हुआ था। हालात को और बदतर बनाते हुए सरकार ने पिछले साल के मध्य में हैंडलूम और हैंडीक्राफ्ट बोर्ड को भंग कर दिया। सरकार ने वह काम ऐसे समय किया जब कारीगरों और स्वयं सहायता समूहों को उसकी सर्वाधिक मदद की जरूरत थी।

सरकारी स्वास्थ्य ढांचे के तो क्या कहने। इंडिया वाटर पोर्टल पर सितंबर 2020 में प्रकाशित एक लेख के अनुसार भारत के 23 फीसदी गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी नहीं हैं। स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का महज 1.26 फीसदी है। समस्या की गंभीरता को समझने के लिए देश की राजधानी दिल्ली में अस्पतालों के बाहर और सड़कों पर दम तोड़ते बेशुमार लोगों के दृश्य ही काफी हैं। ऑक्सीजन, ऑक्सीजन सिलिंडर, मास्क, दवा और समय पर सहायता की कमी, मरीजों से अटे पड़े अस्पताल, मनमाना पैसा वसूलते एंबुलेंस, ये सब ‘भारत’ के लिए अच्छी तस्वीर नहीं हैं। वैसे भी ये तस्वीरें नीति निर्माताओं, मीडिया और राजनीतिक नेतृत्व की दुनिया से बाहर की होती हैं। आंगनबाड़ी और आशा कर्मचारियों पर काम का बोझ बहुत अधिक है, जबकि यही जमीनी स्तर पर लोगों के संपर्क में हैं और फ्रंटलाइन कर्मी की तरह काम कर रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी कोई नई बात नहीं है।

ऑक्सीजन, ऑक्सीजन सिलिंडर, मास्क, दवा और समय पर सहायता की कमी, मरीजों से अटे पड़े अस्पताल, मनमाना पैसा वसूलते एंबुलेंस, ये सब ‘भारत’ के लिए अच्छी तस्वीर नहीं

मनरेगा पर भी तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। पिछले साल लॉकडाउन के समय गांवों में लोगों के जीवन यापन की चिंता किए बिना मनरेगा के काम रोक दिए गए। मनरेगा के इर्द-गिर्द मजबूत रणनीति बनाना आज की जरूरत है। देश के सबसे कमजोर वर्ग के लिए इस जीवनदायिनी योजना को किसने शुरू किया, इस राजनीति को दरकिनार करते हुए अगर सरकार अपनी पूरी ताकत इस स्कीम के पीछे झोंक दे तो उसे राजनीतिक रूप से भी इसका फायदा मिल सकता है। (बस याद दिलाने के लिए, यूपीए-1 सरकार में राजद ने इस योजना को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी)

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


मनोज कुमार झा, https://www.outlookhindi.com/view/article-of-rjd-leader-manoj-kumar-jha-village-and-poor-in-corona-period-58779


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close