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न्यूज क्लिपिंग्स् | अच्छे दिनों की सतर्क उम्मीद-- कन्हैया सिंह

अच्छे दिनों की सतर्क उम्मीद-- कन्हैया सिंह

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published Published on Feb 28, 2016   modified Modified on Feb 28, 2016
चालू वित्त वर्ष का आर्थिक सर्वेक्षण बताता है कि आर्थिक मोर्चे पर सरकार इस बार काफी सतर्कता बरत रही है। खासकर वर्तमान के आकलन और भविष्य के लक्ष्य तय करने के मामले में। बड़ी-बड़ी उम्मीदें बांधने की बजाय उसने व्यावहारिक रवैया अपनाया है।

मसलन, अगले वित्त वर्ष की विकास दर को ही लें। सरकार ने अनुमान लगाया है कि अगले साल जीडीपी की विकास दर सात से साढ़े सात फीसदी के बीच रहेगी। सरकार ने यह रवैया शायद इसलिए अपनाया है कि वह बार-बार संशोधित अनुमान लगाने से बचना चाहती है। हालांकि उम्मीद विकास दर के इससे काफी ज्यादा रहने की है।

इस उम्मीद के कई कारण हैं। एक तो विकास दर का यह रुझान पिछले कुछ साल से लगातार चल रहा है। बावजूद इसके कि इस दौरान कृषि विकास दर शून्य के आस-पास या उससे नीचे तक रही है। पिछले दो साल से देश में लगातार सूखा पड़ रहा है, फिर भी विकास दर सात फीसदी से ऊपर ही रही है। इस साल इसमें बदलाव आने की उम्मीद बंधी है। एक तो इसलिए कि मौसम विज्ञानी बता रहे हैं कि इस साल मानसून अच्छा रहेगा, दूसरे इसलिए भी कि फिलहाल कृषि- उत्पादन का आधार बहुत नीचा है, और उत्पादन में थोड़ी-सी वृद्धि भी आंकड़ों में बड़ा असर दिखाएगी।

कृषि के अलावा सरकार के मेक इन इंडिया से भी काफी उम्मीद की जा सकती है। अगले वित्त वर्ष से इसके सकारात्मक नतीजे मिलने शुरू हो जाएंगे। तीसरी चीज इन्फ्रास्ट्रक्चर है, जिस पर सरकार ने काफी ध्यान दिया है, खासकर रेल और सड़क के मामले में। मेक इन इंडिया और इन्फ्रास्ट्रक्चर में हुआ निवेश मिलकर औद्योगिक उत्पादन को गति देंगे। ये तीनों चीजें मिलकर अर्थव्यवस्था की विकास दर को बड़ी आसानी से साढ़े सात फीसदी से ऊपर ले जा सकती हैं।

यह ठीक है कि इस समय दुनिया भर में जो आर्थिक स्थितियां हैं, वे बहुत अनुकूल नहीं हैं। अमेरिका को छोड़ दें, तो चीन समेत दुनिया की ज्यादातर विकसित अर्थव्यवस्थाओं की हालत इस समय अच्छी नहीं है। यानी ऐसे कई देशों की आर्थिक हालत खराब है, जो भारत से बड़ी मात्रा में आयात करते रहे हैं। लेकिन यह अंतरराष्ट्रीय स्थिति भारत की अर्थव्यवस्था पर ज्यादा बड़ा असर नहीं डाल सकेगी, क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था में घरेलू उपभोग की भूमिका ज्यादा बड़ी होती है।

और इसी घरेलू उपभोग के चलते हम सबसे ज्यादा विकास दर वाली अर्थव्यवस्था बने रहेंगे। जाहिर है, इसकी वजह से दुनिया भर के निवेशकों के लिए भारत निवेश का सबसे बड़ा आकर्षण बना रहेगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों का कम होना भी भारत के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रहा है। सबसे बड़ी बात है कि इसकी वजह से कई चीजों की उत्पादन लागत काफी कम हुई है। कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट के हाल-फिलहाल में खत्म होने के आसार भी नहीं दिख रहे।

लेकिन सबसे ज्यादा उम्मीद फिर भी मानसून पर ही टिकेगी। इसीलिए यह उम्मीद की जा रही है कि सोमवार को वित्त मंत्री जब अगले वित्त वर्ष का बजट पेश करेंगे, तो उसमें कृषि क्षेत्र पर खास ध्यान दिया जाएगा। सरकार इन दिनों इस क्षेत्र पर खासतौर पर ध्यान दे भी रही है। आर्थिक सर्वे के आंकड़े देखें, तो पिछले कुछ साल में सबसे कम निवेश कृषि और खनन के क्षेत्र में हुआ है। इसीलिए यही दोनों क्षेत्र ऐसे हैं, जिनमें विकास दर काफी कम है, यहां तक कि नकारात्मक भी रही है। सरकार को कृषि निवेश बढ़ाने की ऐसी नीतियां अपनानी होंगी, जिनसे किसानों का संरक्षण हो और ग्रामीण क्षेत्र में मांग बढ़े। इसी से देश की अर्थव्यवस्था तेजी से तरक्की कर सकेगी। हमारी 60 फीसदी आबादी इस क्षेत्र में रहती है और हम इसे नजर अंदाज करके बहुत आगे नहीं बढ़ सकते।

सर्वे में दिए गए ऊर्जा क्षेत्र के आंकडे़ सबसे ज्यादा उम्मीद बंधाते हैं। पिछले कुछ समय से इस क्षेत्र में काफी बड़ा बदलाव आया है। विद्युत उत्पादन काफी बढ़ा है और इसकी किल्लत में कमी आई है। इसी के साथ एक और चीज यह हुई है कि सौर ऊर्जा की लागत और कीमत कम हो रही है। सरकार इस समय तकनीक पर विशेष ध्यान दे रही है, जिससे इस क्षेत्र में स्थितियां और अच्छी होंगी। ऊर्जा क्षेत्र इस बात का उदाहरण है कि किसी क्षेत्र पर अगर लगातार ध्यान दिया जाए, तो हालात को कैसे सुधारा जा सकता है। ऐसी कोशिशें हमें दूसरे क्षेत्रों में भी करनी चाहिए, खासकर सिंचाई जैसे क्षेत्रों में।

सर्वे में एक और बात साफ तौर पर दिखती है कि सरकार मौद्रिक नीति से बहुत खुश नहीं है। मौद्रिक नीति में सारा ध्यान मुद्रास्फीति यानी महंगाई को काबू में करने पर ही दिया जा रहा है। इसकी वजह से सारा दबाव ऊंची ब्याज दर पर बना हुआ है, जो औद्योगिक विकास के लिहाज से अच्छी बात नहीं है। भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दरों के लिए पॉलिसी रेट की घोषणा करता है, लेकिन बैंकों की ब्याज दर उससे भी ऊंची बनी रहती है। ब्याज दर ऊंची बनी रहने के कारण अर्थव्यवस्था में नगदी का प्रवाह कम हो जाता है। इसका असर उत्पादन पर दिखाई देता है। यह ऐसी समस्या है, जिसे रिजर्व बैंक को खत्म करना ही होगा। मौद्रिक नीति के आलवा भी बैंकिंग क्षेत्र में ऐसा बहुत कुछ हो रहा है, जो ठीक नहीं है। बड़े उधार के मामले में बैंकों ने काफी गैर-जिम्मेदारी का रुख अपनाया है। इसे लेकर सरकार की नाराजगी भी आर्थिक सर्वे में दिखाई देती है।

इसके अलावा, किसानों, छोटे व्यापारियों और कारोबारियों को कर्ज देने के मामले में सरकार जो तरीका अपनाने जा रही है, उससे कई नई राहें खुल सकती हैं। इसके लिए सरकार जन-धन खातों, आधार कार्ड और मोबाइल को आपस में जोड़ने जा रही है। इससे एक तो कर्ज लेना आसान हो जाएगा और दूसरे, कर्ज लेने के जितने भी विकल्प हैं, उन सबकी सूचना मोबाइल पर मिल जाएगी। इससे कर्ज और सब्सिडी वगैरह की लीकेज भी काफी कम हो सकती है।

आर्थिक सर्वे के बहुत सारे संकेत सकारात्मक हैं और उम्मीद है कि इनकी छाप सोमवार को पेश होने वाले आम बजट पर दिखाई देगी। इससे उम्मीद यही बन रही है कि अगले वित्त वर्ष के बजट का फोकस आम आदमी के आसपास ही रहेगा। यह कोशिश बहुत कुछ वैसी ही होगी, जैसी हमें रेल बजट में दिखी है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)


साभार- दैनिक हिन्दुस्तान


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