Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | अच्छे संस्थान की फीस और भूमिका- हरिवंश चतुर्वेदी

अच्छे संस्थान की फीस और भूमिका- हरिवंश चतुर्वेदी

Share this article Share this article
published Published on Apr 11, 2016   modified Modified on Apr 11, 2016
मानव संसाधन मंत्रालय ने आईआईटी की फीस अगले सत्र (2016-17) से बढ़ाने का फैसला आखिर ले ही लिया। अभी तक यह फीस 90 हजार रुपये सालाना थी, जो अब दो लाख रुपये कर दी गई है। हालांकि, आईआईटी (मुंबई) के निदेशक देवांग खाखर की उप-समिति ने आईआईटी काउंसिल को इसे तीन लाख रुपये सालाना करने का सुझाव दिया था। दलित, पिछड़़े, विकलांग और गरीब वर्ग के छात्रों के लिए फीस पूरी तरह माफ कर दी गई है या उसमें कुछ रियायत दी गई है। आईआईटी देश के शीर्ष प्रौद्योगिकी संस्थान हैं, जिनमें प्रतिवर्ष लगभग 10 हजार विद्यार्थियों को जेईई परीक्षा के आधार पर प्रवेश दिया जाता है। इस परीक्षा में करीब 14 लाख प्रवेशार्थी भाग लेते हैं। यह पहली बार नहीं है, जब आईआईटी की फीस बढ़ाई गई है। 1998, 2008 और 2013 में भी आईआईटी की फीस बढ़ाई गई थी।

यूपीए सरकार ने पांच वर्षों में आईआईटी में 2.6 गुणा फीस वृद्धि की, तो एनडीए ने इसे फिलहाल 120 प्रतिशत बढ़ाया है। भारत में इंजीनिर्यंरग शिक्षा का जन्म 19वीं सदी में ब्रिटिश शासन में हुआ, जब रुड़की, मद्रास, कलकत्ता और पूना में सिविल इंजीनिर्यंरग की पढ़ाई शुरू की गई। 1946 में देश में सिर्फ 46 इंजीनिर्यंरग कॉलेज थे, जिनमें हर वर्ष 2,500 विद्यार्थी दाखिला लेते थे। वैसे 1945 में ही वायसराय के मंत्रिमंडल ने एनआर सरकार कमेटी का गठन किया था, जिसे देश की भावी तकनीकी शिक्षा नीति का निर्धारण करने का काम सौंपा गया। कमेटी की सिफारिश पर साल 1951 में पहला आईआईटी खड़गपुर में स्थापित किया गया, बाद में बंबई, मद्रास, दिल्ली और कानपुर में आईआईटी स्थापित किए गए। फिलहाल 17 आईआईटी देश के विभिन्न भागों में चल रहे हैं, जिनमें करीब 45 हजार विद्यार्थी बी-टेक, एम-टेक और पीएचडी कोर्सों में अध्ययनरत हैं।

यह जरूरी नहीं कि आईआईटी की फीस में 120 प्रतिशत वृद्धि से समाज के सभी वर्ग प्रसन्न हुए हों। मध्यवर्ग के करोड़ों परिवारों के लिए अपने बच्चे को आईआईटी में प्रवेश दिलाना और फिर विदेश भेजना एक सपना रहा है। इस रास्ते पर चलकर लाखों मध्यवर्गीय व गरीब परिवारों को संपन्नता के शिखर पर पहुंचते देखा गया है। ई-कॉमर्स और अन्य उद्योगों में कई युवा 30-35 वर्ष की आयु में अरबपति बनते देखे गए, यह उनकी आईआईटी शिक्षा का ही कमाल था।

फिलहाल मध्यवर्गीय परिवारों में आईआईटी की फीस बढ़ने से रोष है। बहुत से शिक्षाविद भी, जो आईआईटी से जुड़े हैं, कई आशंकाएं जता रहे हैं। पहली आशंका है कि फीस वृद्धि से आईआईटी ब्रांड के भविष्य पर बुरा असर पड़ेगा, क्योंकि इस फैसले से आईआईटी और प्राइवेट यूनिवर्सिटियों, जैसे बिट्स (पिलानी), मनीपाल, वीआईटी, एसआरएम के बीच की स्पद्र्धा में आईआईटी कमजोर पड़ते जाएंगे। इस आशंका के पीछे तर्क यह है कि प्रतिभाशाली विद्यार्थियों का आईआईटी में दाखिला लेने व प्राइवेट यूनिवर्सिटियों में न जाने का मुख्य कारण दोनों की फीस में भारी अंतर होना था। प्राइवेट यूनिवर्सिटियां ऐसे में अपने चुस्त प्रबंधन और अधिक स्वायत्तता के कारण आईआईटी पर भारी पड़ेंगी।

 


दूसरा तर्क है कि इससे आईआईटी से निकले छात्रों की उद्यमी बनने की प्रबल प्रवृत्ति कुंठित होगी। आईआईटी से निकले लाखों छात्र आज देश-विदेश में सफल उद्यमी के रूप में जाने जाते हैं।

 

कैलिफोर्निया (अमेरिका) की सिलिकॉन वैली में हजारों स्टार्ट-अप कंपनियों में बहुत कम ऐसी होंगी, जिनमें आईआईटी से निकले छात्र काम न करते हों। फ्लिपकार्ट और स्नैपडील जैसी कंपनियों को जन्म देने वाले आईआईटी से निकले पूर्व छात्र ही थे। फीस वृद्धि के फलस्वरूप अब इन विद्यार्थियों को कर्ज लेने पड़ेंगे और वे उन्हें चुकाने के दबाव में उद्यमिता की ओर बढ़ने से रुकेंगे। ‘स्टार्ट-अप इंडिया' पर इस फीस वृद्धि का विपरीत असर पड़ सकता है। फीस वृद्धि से कैंपसों में विद्यार्थियों के बीच की समरसता व एकजुटता पर भी विपरीत असर पड़ने की आशंका है, क्योंकि करीब आधे विद्यार्थी बिना फीस के पढ़ेंगे और बाकी को आठ लाख रुपये की फीस चुकानी पड़ेगी।

मानव संसाधन मंत्रालय ने फीस वृद्धि से पहले इन सभी पर जरूर विचार किया होगा। आखिर सरकार के सामने ऐसी क्या मजबूरी थी कि उसे आईआईटी में पढ़ाई को 120 प्रतिशत महंगा करना पड़ा? क्या कोई और विकल्प था?

 


आईआईटी की पढ़ाई हमारे देश के सरकारी व निजी विश्वविद्यालयों से इस मायने में भिन्न रही है कि यहां पर सिर्फ इंजीनिर्यंरग की पढ़ाई होती है, जो कक्षाओं में व्याख्यान सुनने तक सीमित न होकर प्रयोगशालाओं और उद्योगों में जाकर अनुसंधान करने तक होती है। यहां पर 10 विद्यार्थियों के हरेक समूह के लिए एक शिक्षक जरूरी होता है। एक आईआईटी का वार्षिक खर्च करीब 150 करोड़ से लेकर 350 करोड़ रुपये तक होता है। इसकी 80 प्रतिशत भरपायी केंद्र सरकार को करनी होती है, जिसमें 10 से 15 प्रतिशत योगदान विद्यार्थियों से मिलने वाली ट्यूशन फीस का होता है। पूर्व छात्रों से मिलने वाले दान से भी तीन से पांच प्रतिशत की भरपायी होती है।

 

फीस वृद्धि के समर्थकों का कहना है कि आईआईटी को विश्व स्तरीय इंजीनिर्यंरग शिक्षा देने के लिए लगातार अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करना पड़ता है। एक नए आईआईटी में प्रति विद्यार्थी 20 लाख रुपये के निवेश की जरूरत होती है और प्रति विद्यार्थी सालाना खर्च करीब छह लाख रुपये होता है। ऐसे में, केंद्र सरकार के पास इस बात का कोई विकल्प नहीं था कि वह उन मध्य वर्गीय विद्यार्थियों से कम फीस क्यों ले, जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक-ठाक है? फीस वृद्धि के समर्थन में एक और तर्क यह है कि विश्व स्तर पर आईआईटी की तुलना जिन अमेरिकी यूनिवर्सिटियों से होती है, उनकी सालाना फीस के मुकाबले यह बढ़ी हुई फीस भी बहुत कम होगी। स्टैनफोर्ड में बीटेक की सालाना फीस दस लाख रुपये और एमआईटी की 10 से 16 लाख रुपये के बीच है।

मानव संसाधन मंत्रालय ने साल 2010 में प्रख्यात वैज्ञानिक अनिल काकोडकर की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था, जिसे आईआईटी को विश्व स्तरीय शोध व शिक्षण संस्थान बनाने और स्वायत्तता का मार्ग प्रस्तावित करने की जिम्मेदारी दी गई थी। कमेटी ने सुझाव दिया था कि समस्त आईआईटी को अपने सभी खर्चे, जो शिक्षा की कुल लागत का 30 प्रतिशत होते हैं, ट्यूशन फीस से निकालने चाहिए। इसके लिए समिति ने हर छात्र से दो से ढाई लाख रुपये तक सालाना फीस लेने का सुझाव दिया था।

 

आईआईटी खड़गपुर में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1956 में कहा था कि यह सरासर बेवकूफी होगी कि आईआईटी अपने विद्यार्थियों को जिन लक्ष्यों के लिए प्रशिक्षित करें, उनका उपयोग उन लक्ष्यों के लिए न हो पाए। पिछले 60 वर्षों में हजारों आईआईटी शिक्षित छात्र विदेश में शोध व रोजगार की बेहतर संभावनाओं के लिए भारत से पलायन कर गए। यह सवाल अब उठना ही चाहिए कि आईआईटी की सस्ती, किंतु विश्व स्तरीय शिक्षा का कितना फायदा देश को हुआ और कितना आईआईटी से पढ़कर पलायन करने वाले छात्रों को? हमें ऐसे तौर-तरीके भी ढूंढ़ने होंगे कि आईआईटी से निकलने वाली प्रतिभाओं को देश के भीतर ही शोध, अनुसंधान और स्टार्ट-अप स्थापित करने के वे अवसर मिल सकें, जो उन्हें भारत के बाहर और खासतौर पर सिलिकॉन वैली में मिलते हैं। मगर यह तभी संभव होगा, जब हर योग्य विद्यार्थी को आईआईटी में पढ़ने का अवसर मिल सके। 
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 


http://www.livehindustan.com/news/guestcolumn/article1-fees-and-the-role-of-good-institutions-525334.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close