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न्यूज क्लिपिंग्स् | अपराध के प्रति दोहरा मापदंड क्यों-- आकार पटेल

अपराध के प्रति दोहरा मापदंड क्यों-- आकार पटेल

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published Published on Oct 10, 2017   modified Modified on Oct 10, 2017

कुछ दिनाें पहले अमेरिकी शहर लास वेगास में एक व्यक्ति ने संगीत आयोजन में शामिल 58 लोगों की हत्या कर दी. उसने भीड़ पर एक घंटे से अधिक समय तक मशीनगन से गोलियां बरसायीं और 500 से अधिक लोगों को घायल कर दिया. इस घटना को अमेरिकी पुलिस ने आतंकवादी घटना मानने से इनकार कर दिया, क्योंकि व्यक्ति ने अकेले ही इस कृत्य को अंजाम दिया था. हत्यारा ईसाई था. क्या पुलिस यही बात तब भी कहती, जब वह मुसलमान होता? मुझे लगता है- नहीं.

 

उस व्यक्ति या उसके इरादों के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है और इसलिए इस नतीजे पर पहुंचना कि यह आतंकवाद नहीं है, इसकी जांच के साथ ही इस व्यापक मुद्दे की भी पड़ताल आवश्यक है कि आतंकवाद को हम किस तरह समझते हैं. 

 


मेरे शब्दकोश में आतंकवाद की परिभाषा इस तरह है, 'राजनीतिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हिंसा और धमकी का इस्तेमाल करना, विशेषकर आम लोगों के खिलाफ.' हम इस परिभाषा पर विचार करें, तो हिंसा के अनेक कृत्य आतंकवाद के दायरे में आ जायेंगे. सांप्रदायकि हिंसा इसके दायरे में पूरी तरह से आ जायेगी क्योंकि यह गैरकानूनी तरीके से नागरिकों को धमकाने और राजनीतिक लक्ष्य की पूर्ति के लिए की जाती है. 

 

हालांकि, हममें से अधिकांश लोग सांप्रदायिक हिंसा को आतंकवाद के नजरिये से नहीं देखते हैं. वर्ष 1984 में सिखों के हुए नरसंहार को दंगा कहा जाता है.

 


मुजफ्फरनगर में मुसलमानों के खिलाफ हुआ हिंसा दंगा था. बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हुए मुंबई हिंसा, जिसमें सैकड़ों मुसलमान मारे गये, को भी दंगे की श्रेणी में रखा गया था. उसके बदले में हुए बम धमाके आतंकवादी घटना थी. वर्ष 2002 में अहमदाबाद के नरोदा पटिया में 97 मुसलमानों का नरसंहार दंगा था. उसी वर्ष अहमदाबाद के अक्षरधाम मंदिर में 30 हिंदुओं की हत्या आतंकवादी हमला था. 

 


इसकी दूसरी समस्या वह पंक्ति है, जिसमें लिखा है 'नागरिकों को लक्ष्य कर.' जम्मू व कश्मीर में अधिकांश हमले सैन्य बलों के खिलाफ होते हैं, आम लोगों के खिलाफ नहीं, लेकिन हम उन्हें आतंकवादी हमला मानते हैं.

 


अमेरिका का कानून आतंकवाद को इस तरह परिभाषित करता है, 'राजनीतिक या सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु, सरकार, आम नागरिक, या इसके किसी भी वर्ग को डराने-धमकाने, उन्हें मजबूर करने, लोगों या संपत्ति के खिलाफ बल और हिंसा का गैरकानूनी उपयोग करना.' यह परिभाषा कमोबेश सभी शब्दकोश में एक-सी ही है.

 


जैसा मैंने पहले कहा, वेगास के हत्यारे या उसके इरादों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. इसकी अनुपिस्थिति में, हत्यारे के राजनीतिक और सामाजिक उद्देश्य के बारे में जानकारी नहीं होने के बावजूद आखिर किस तरह पुलिस इतनी आश्वस्त थी कि वह कह बैठी कि यह कोई आतंवादी हमला नहीं था, यह अस्पष्ट है.

 


आतंक के खिलाफ भारत का कानून पोटा कहलाता है. भारत में दूसरे अनेक कानूनों की तरह इसका मसौदा भी बेहद कमजोर है और यही भाषा सभी जगह प्रयुक्त है.

 


यह कानून आतंकवाद को इस तरह परिभाषित करता है, 'कोई भी व्यक्ति अगर भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा या संप्रभुता को धमकी देने के इरादे से या लोगों के खिलाफ आतंकी हमला या किसी खास वर्ग द्वारा बम, डायनामाइट या दूसरी विस्फोटक सामग्री या ज्वलनशील पदार्थ या बंदूक या दूसरे घातक हथियार या विषैले या हानिकारक गैसों या खतरनाक प्रवृत्ति के दूसरे रसायन या अन्य पदार्थ' से नुकसान पहुंचाता है या 'दबाव बनाने के लिए किसी व्यक्ति को अपने कब्जे में रखता है.'

 


यह कानून आगे कहता है कि अवैध गतिविधि (निरोधक) कानून के तहत गैरकानूनी घोषित किये गये संगठन का सदस्य होना, विनाशक पदार्थ रखता है, तो यह सब गतिविधियां आतंकवादी कृत्य के दायरे में आती हैं.

 


इसमें महत्वपूर्ण शब्द हैं, 'एकता, अखंडता, सुरक्षा और संप्रभुता.' भारत के विखंडित होने का हमारा डर, जो कि पूर्ण रूप से एक निराधार भय है, ही इस तरह की परिभाषा की प्राथमिक वजह है.

 


अाखिर क्यों डायनामाइट (जो कि खदानों का विस्फोटक है, जिसका आतंकवाद में कभी प्रयोग नहीं हुआ है) जैसे अजीब शब्द विशिष्ट तौर पर इस परिभाषा में शामिल है लेकिन आरडीएक्स या सी14 या दूसरे आधुनिक विस्फोटक के बारे में कुछ नहीं कहा गया है. इसका कारण संभवत: यह है कि इस कानून को तैयार करनेवालों नौकरशाहों ने बॉलीवुड सिनेमा से विस्फोटकों का ज्ञान प्राप्त किया हो.

 


एक तरफ पोटा की परिभाषा विस्तृत और व्यापक है, वहीं दूसरी तरफ यह बेहद संकुचित है, जो इस बात का अच्छा संकेत देती है कि इस नियम को बनाते समय इस पर अच्छी तरह सोच-विचार नहीं किया गया था. इससे मुझे कोई आश्चर्य नहीं होता है, क्योंकि हमारे पास ऐसे अनेक कानून हैं, जो खराब मसौदे के साथ विस्तृत रूप में मौजूद हैं. ऐसे कानून हर राज्य के पास हैं.

 


तमिलनाडु सरकार बिना किसी अपराध के 'खतरनाक गतिविधि रोकथाम अधिनियम' के तहत मद्य तस्करी, औषधि अपराधियों, गुंडों, अनैतिक यातायात अपराधियों, रेत-अपराधियों, यौन अपराधियों, मलिन बस्तियों और वीडियो चोरी अधिनियम के आरोप में बिना किसी मुकदमे के किसी व्यक्ति को एक साल के लिए जेल में डाल सकती है.

 


मैं यहां दोहरा रहा हूं कि बिना किसी अपराध के महज शक के आधार पर कि फलां व्यक्ति ने अपराध किया है या वह भविष्य में ऐसा कर सकता है, सरकार उसे एक साल के लिए जेल भेज सकती है. यहां प्रश्न यह उठता है कि आखिर सरकार कैसे जान जाती हैै कि कोई रेत-अपराध या वीडियो पाइरेसी करने जा रहा है. संभवत: सरकार ने भविष्यवक्ता और ज्योतिषियों को भविष्यवाणी करने के लिए नियुक्त किया हुआ है.

 


आतंकवाद को परिभाषित करने के मुद्दे पर अब वापस आते हैं, मुझे लगता है कि हम सभी को असली तर्क के बारे में पता है. भाषाविद् और लेखक नोम चोमस्की ने अमेरिका द्वारा दुनियाभर में किये जा रहे आतंकवाद पर कहा है, 'जब हम ऐसा करते हैं, तो वह आतंकवाद का सामना करना होता है.



जब वे करते हैं तो वह आतंकवाद होता है.' ठीक इसी तरह, जब हम ऐसे कृत्य करते हैं, तो वह दंगा या व्यक्ति विशेष द्वारा अंजाम दिया गया कृत्य होता है. जब मुसलमान ऐसा करते हैं, तो वह आतंकवाद होता है.

 


http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/1066828.html


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