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न्यूज क्लिपिंग्स् | अब नंगे बदन प्रदर्शन करेंगे बेबस विस्थापित आदिवासी-- अनिल बंसल

अब नंगे बदन प्रदर्शन करेंगे बेबस विस्थापित आदिवासी-- अनिल बंसल

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published Published on Dec 22, 2016   modified Modified on Dec 22, 2016
दामोदर घाटी बिजली परियोजना के विस्थापित आदिवासी अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और झारखंड की भाजपा सरकार से भी हताश हो चुके हैं। मोदी ने अपनी सरकार को गरीबों के लिए समर्पित सरकार बताया था। पर झारखंड और पश्चिम बंगाल के चार जिलों के 240 गांवों के हजारों विस्थापित आदिवासियों को उन्होंने भी न तो उनकी जमीन का मुआवजा दिलाया और न ही उनके पुनर्वास का वादा ही पूरा किया है। मजबूर आदिवासी अब नंगे बदन दिल्ली आकर प्रदर्शन करने की तैयारी में हैं। इसी महीने उन्होंने अधनंगे बदन हजारों की तादाद में धनबाद में प्रदर्शन कर इंसाफ की गुहार लगाई थी। दामोदर घाटी बिजली परियोजना 1954 में बनी थी। इसके लिए 240 गांवों के घटवार आदिवासियों की जमीन और मकानों का अधिग्रहण किया गया था। बदले में सरकार ने उन्हें मुआवजे और पुनर्वास का भरोसा दिया था। पर थोड़े विस्थापितों को ही यह मुआवजा मिल पाया। ज्यादातर को सरकारी तंत्र ने उलझनों के बहाने वंचित कर दिया। पुनर्वास के नाम पर हर विस्थापित परिवार के एक सदस्य को परियोजना में नौकरी देने का वादा भी अधूरा ही रह गया।

घटवार आदिवासी महासभा ने रामाश्रय सिंह की अगुवाई में आंदोलन चलाया और सुप्रीम कोर्ट तक कानूनी जंग भी लड़ी। तब खुलासा हुआ कि विस्थापित आदिवासियों के साथ छल कर दूसरे लोगों को परियोजना में नौकरी पर रखा गया था।साठ साल से ज्यादा वक्त बीत चुका है। पर आदिवासियों के साथ इंसाफ कोई सरकार नहीं कर पाई। मोदी से आदिवासियों को उम्मीद थी। पर उन्हें भी सत्ता में आए ढाई साल बीत चुके हैं। इस दौरान झारखंड में भी सरकार भाजपा की बन गई। परियोजना यों केंद्र सरकार के ऊर्जा विभाग के तहत है। पर न पुनर्वास के नाम पर हुए फर्जीवाड़े की सीबीआइ जांच निगम के भ्रष्ट अधिकारी होने दे रहे हैं और न ही वंचित आदिवासियों को अब तक मुआवजा मिल पाया है। बकौल रामाश्रय सिंह सरकारें आती जाती रहीं पर उनके साथ न्याय नहीं हो पाया। मुआवजे की बाट जोहते-जोहते तीसरी पीढ़ी आ चुकी है। तो भी संघर्ष का उनका माद्दा खत्म नहीं हुआ है।

विस्थापित आदिवासी अब तक धनबाद और कोलकाता से लेकर दिल्ली तक कई बार फरियाद लगा चुके हैं। परियोजना स्थल मैथन और पंचेत में तो न जाने कितनी बार धरने प्रदर्शन कर चुके हैं। तो भी नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा है। आदिवासियों के साथ बार-बार समझौते तो किए गए पर उन पर अमल कभी नहीं हुआ। और तो और उन लोगों के नामों का भी परियोजना के प्रबंधन ने खुलासा नहीं किया, जिन्हें पुनर्वास के नाम पर नौकरी दी गई। आदिवासियों का आरोप है कि दामोदर घाटी परियोजना के अफसर उनके साथ थकाओ और भगाओ की नीति अपना रहे हैं। इसीलिए वे अधनंगे बदन प्रदर्शन को मजबूर हुए थे। दुमका में आदिवासी महिलाओं ने भी अधनंगे बदन धरना दिया था। अब वे दिल्ली पहुंचकर अपने साथ हुई ना इंसाफी का हिसाब नंगे बदन मांगेंगे। इसके लिए पहले से ही अल्टीमेटम भी दे दिया गया है।


http://www.jansatta.com/national/tribes-will-protest-against-government/213361/


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