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न्यूज क्लिपिंग्स् | अब नजर नहीं आतीं नन्हीं गौरैया, संरक्षण के लिए नहीं उठे कदम

अब नजर नहीं आतीं नन्हीं गौरैया, संरक्षण के लिए नहीं उठे कदम

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published Published on Mar 21, 2016   modified Modified on Mar 21, 2016

कभी हमारे घरों को अपनी चीं..चीं से चहकाने वाली गौरैया अब नजर नहीं आतीं हैं। करीब 10 सालों से यह घरेलू पक्षी शहर से विलुप्त हो चुकी है। गांवों की तरफ भी कभी- कभार चहचहाहट सुनाई पड़ती है। घरों की बदलती डिजाइन, इलेक्ट्रिक पंखे समेत कई ऐसे कारण हैं जो नन्हीं गौरैया को बेदखल करने के लिए जिम्मेदार है। वन विभाग ने भी कभी इनके संरक्षण की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाया है।

 

गौरैया पक्षी को स्थानीय बोलचाल की भाषा में बम्हनी चिराई भी कहते हैं। इसके पीछे भी एक बड़ा कारण गौरैया का शुद्ध शाकाहारी होना है। यह केवल अनाज खाती है। कीड़े- मकोड़े इनके आहार में कभी शामिल ही नहीं रहे। एक समय था जब बड़ी तादात में शहर के अंदर उड़ान भरती नजर आती थी। ऐसा कोई घर नहीं था जहां उनके घरौंदे न हो। घर के अंदर बिजली के बोर्ड, खिड़कियां यहां तक किचन में ही पक्षियों के घोसले रहते थे। लोग इन पक्षियों का घर में होना शुभ मानते थे। कभी भी इनके घरौंदे के साथ छेड़छाड़ नहीं की जाती थी।


एक बड़ा कारण खप्पर के घरों का होना भी था पर 10 सालों में इतनी तेजी से घरों की डिजाइन में बदलाव हुए, वास्तु के अनुरूप घर तैयार होने लगे जिसमें इन पक्षियों के घोसलों के लिए जगह नहीं बची। समय के साथ- साथ घरों में इलेक्ट्रिक पंखे, एसी की उपयोगिता बढ़ती गई। इन सभी बदलावों ने नन्हीं गौरैया को बुरी तरह प्रभावित किया। घरों को साफ- सुथरा रखने के चक्कर में पक्षियों के घरौंदे तबाह करते चले गए। आज आलम यह है कि गौरैया का फुदकना, चहचहाना और इस मुंडेर से उस मुंडेर पर बैठना शहर में तो लगभग खत्म हो गया है।


गांवों में इनकी चहचहाहट सुनाई पड़ती है पर वह भी कभी कभार। घरेलू पक्षियों के घरों से बेदखल होने के पीछे विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। किसी ने रेडिएशन को वजह बताया तो किसी का कहना है कि मोबाइल की खतरनाक किरणों ने इनकी ब्रीडिंग को प्रभावित किया है। सबसे बड़ी वजह पक्षियों के रखवाले यानी वन विभाग का पक्षियों के संरक्षण के प्रति गंभीर नहीं होने को भी बताया जा रहा है।


राज्य वन विभाग में वन्यप्राणियों के लिए अलग से विभाग बनाया गया है। इसकी जिम्मेदारी वन्यजीवों की संरक्षा व सुरक्षा पर जोर देना है, लेकिन विभाग ने कभी भी पक्षियों के संरक्षण को लेकर ठोस कदम नहीं उठाया। जागरूकता भी अहम होती है। इस दिशा में पिछले 10 सालों में राज्य के किसी भी शहर में कोई भी बड़ा कार्यक्रम नहीं हुआ है। इन्हीं तमाम कारणों की वजहों से लोग अब भूल चुके हैं कि कभी गौरैया भी घरों में चहचहाती है।


शोध करना चाहिए: चड्डा


पक्षी विशेषज्ञ प्राण चड्डा का कहना है कि गौरैया चिड़िया पर शोध होनी चाहिए। रायपुर में कुछ जगहों पर इनकी मौजूदगी है, लेकिन 110 किमी के अंतराल में यानी बिलासपुर की बात करें तो यहां 10 सालों से पक्षी नजर नहीं आए हैं। जबकि एक दौर था कि हर घर में इनके घरौंदे होते थे। विडंबना इस बात की भी है कि संबंधित वन विभाग ने इनके संरक्षण या संर्वधन के लिए कभी भी पहल नहीं की। ग्रामीण क्षेत्रों में काफी कम संख्या में इनकी मौजूदगी है। यदि संरक्षण को लेकर पहल की जाए तो हमारी नन्हीं गौरैया की मीठी चहचहाहट पहले की तरह सुनाई देने लगेगी।


इलेक्ट्रिक पंखे और मोबाइल की किरणें अभिशाप
नेचर क्लब के संयोजक व पक्षी के जानकार मंसूर खान गौरैया पक्षी के विलुप्त होने के दो कारण मानते हंै। मोबाइल के किरणों से इनकी पीढ़ी पर प्रभाव पड़ा है। यह एक बार में 8 - 10 अंड़े देती है। लेकिन अनुकूल माहौल नहीं मिलने के कारण बच्चे जन्म नहीं ले पाते हैं। पहले की तरह अब घर में खप्पर के नहीं रहे। इसके कारण इन्हें घोसला बनाने में दिक्कत होती है। 5 साल पहले उन्होंने अपने राजकिशोर नगर स्थित मकान में संरक्षण की पहल की। इसके तहत अलग-अलग पांच मटके भी बांधे लेकिन सिकरा बाज ने गौरैया पक्षी को नुकसान पहुंचाया।


घर में होती है ब्रीडिंग
कानन पेंडारी जू के पशु चिकित्सक डॉ. पीके चंदन का मानना है कि पक्षी की यह प्रजाति खतरे में है। पूरी तरह विलुप्त तो नहीं हुई है अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में इनकी मौजूदगी है। इसके संरक्षण के लिए हर एक व्यक्ति का दायित्व है। इस प्रजाति की ब्रीडिंग केवल घरों में बनाए गए घोसलों में होती है। घोसले ही नहीं बचे हंै इसलिए ब्रीडिंग भी नहीं हो रही है। हर घर में एक घोसला बनाने की पहल होती है तो इन पक्षियों को बचाया जा सकता है।


शिकारियों पर लगाम नहीं
गौरैया पक्षी विलुप्त हो रहे हैं तो इसकी एक बड़ी वजह वन विभाग है। गांव के आसपास व जंगलों में शिकारियों की घुसपैठ है। 10 सालों में शिकारियों ने इन पक्षियों को अपना निशाना बनाया। इसके कारण वह उजड़ गए। शिकारियों पर विभाग का अंकुश नहीं है। शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में गौरैया के अलावा दूसरी प्रजातियों के पक्षियों को पकड़कर उन्हें पिंजरे में डाल दिया जाता है। विभागीय अमला केवल उन्हीं शिकारियों पर कार्रवाई करता है जिसकी सूचना मिलती है।
इनका कहना है


विभाग द्वारा गौरैया या अन्य पक्षियों के लिए सर्वे नहीं कराया गया है। यह संभव भी नहीं है। रही बात संरक्षण की तो विभाग इसके लिए कोशिश कर रहा है। यह प्रजाति विलुप्त हो रही है तो इसकी मुख्य वजह वातावरण में बदलाव है। वातावरण गर्म है। शहर तेजी से बढ़ रहा है। बिल्डिंग बन रही है। अब इन पक्षियों को लेकर घरों में जगह नहीं रह गई है।


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