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न्यूज क्लिपिंग्स् | अबला से सबला बनीं इंदिरावती अब दूसरों को दिला रहीं हैं न्याय- राहुल सिंह

अबला से सबला बनीं इंदिरावती अब दूसरों को दिला रहीं हैं न्याय- राहुल सिंह

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published Published on Apr 11, 2014   modified Modified on Apr 15, 2014

लातेहार जिले की चंदवा पूर्वी पंचायत के धोबीटोला की रहने वाली इंदिरावती देवी संघर्ष की बदौलत अपने हक को पाने वाली महिला हैं. कभी दबी-कुचली और ससुराल वालों की प्रताड़ना की शिकार यह महिला सार्वजनिक मंचों के माध्यम से महिलाओं के हक की आवाज बुलंद करती हैं. अपने हक को पाने के साथ उन्होंने कई दूसरी महिलाओं को भी उनका हक दिलाने के लिए संघर्ष किया.

एकल नारी सशक्तीकरण संगठन से 2005 में जुड़ी इंदिरावती बताती हैं कि पति के असामयिक निधन के बाद उनके सामने अंधेरा छा गया. तीन बच्चों की मां इस महिला को लगा कि अब उनका कोई सहारा नहीं है. पति के गुजर जाने के बाद ससुराल वालों का व्यवहार भी बदल गया. बुरे वक्त में आत्मबल बढ़ाने व हर तरह का सहयोग करने के बजाय देवर व अन्य लोगों ने उन पर अत्याचार शुरू कर दिया. इंदिरावती बताती हैं कि उनके देवर ने उनके घर व संपत्ति पर कब्जा कर लिया. साथ ही मारपीट भी शुरू कर दी. इन सब के बीच वे किसी तरह अपना जीवन गुजार रही थीं. इसी दौरान उन्हें कहीं से एकल नारी सशक्तीकरण संगठन का पता चला और वे इससे जुड़ गयीं.

इंदिरावती अपने देवर के बारे में बताती हैं : देवर कहते थे कि तुम चाहे पुलिस के पास जाओ, पार्टी के पास जाओ या सरकार के पास, यह घर तुम्हें नहीं देंगे. लेकिन संगठन से जुड़ने के बाद उसका सहयोग व समर्थन मिला. उन्होंने अपने हक की आवाज उठायी व संगठन की ओर से भी बात नहीं मानने पर मुकदमा करने की चेतावनी दी. जिसके बाद देवर को लाचार होकर उनकी सपंत्ति व घर पर से कब्जा छोड़ना पड़ा. आज वे अपने तीन बेटों को बेहतर शिक्षा दे रही हैं और सुखी व आत्मनिर्भर जीवन जी रही हैं.

धनेश्वरी देवी व गांगो देवी की कहानी

इंदिरावती ने अपने हक को पाने के बाद चंदवा की ही चेतर पंचायत की रहने वाली धनेश्वरी देवी व बोड़ा पंचायत की गांगो देवी को हक दिलाने के लिए संघर्ष किया. इंदिरावती बताती हैं कि उन्होंने संगठन की महिलाओं के साथ पंचायत में जाकर बैठक की और दोनों के ससुराल वालों को चेतावनी दी कि वे सीधे नहीं मानेंगे तो मामला पुलिस व प्रशासन के पास ले जाया जायेगा. धनेश्वरी देवी की परेशानी यह थी कि जब उनके परिवार-गोतिया में किसी की तबीयत खराब होती तो कहा जाता था कि धनेश्वरी देवी डायन हैं और उन्होंने ही ऐसा किया है. इस पर एकल नारी संगठन ने चेतावनी दी कि डायन कह कर उन्हें प्रताड़ित करने पर कार्रवाई की जायेगी. इस चेतावनी के बाद उनके ससुराल वालों का रवैया बदल गया. जबकि गांगो देवी खुद तो विधवा हैं ही उनकी एकमात्र संतान उनकी बेटी भी कम समय में ही विधवा हो गयीं. ऐसे में गांगो देवी के ससुराल के लोगों ने उनके घर व संपत्ति पर कब्जा कर लिया व कहा इस मां-बेटी के आगे-पीछे कोई नहीं है, और इनकी मृत्यु के बाद इनका अंतिम संस्कार हम ही करेंगे. ऐसे में इनकी संपत्ति पर हमारा ही हक है और इन्हें इसकी जरूरत नहीं है. इंदिरावती बताती हैं कि उनके ससुराल वालों के इस तर्क पर संगठन की ओर से उन्होंने कहा कि इनकी संपत्ति आपको देनी ही होगी और इनकी हर जिम्मेवारी एकल नारी सशक्तीकरण संगठन लेता है. सीधे बात नहीं मानने पर पुलिस-कचहरी की चेतावनी देने पर वे मान गये और उनकी संपत्ति उन्हें दे दी. इंदिरावती बताती हैं कि संगठन की हर माह होने वाली पंचायत स्तरीय बैठक में 25-30 महिलाएं जुटती हैं. इसी तरह प्रखंड स्तरीय बैठक में 40-45 महिलाएं जुटती हैं.

1120 महिलाओं का कर रही हैं नेतृत्व

इंदिरावती लातेहार जिले के चंदवा और गढ़वा जिले के धुरकी प्रखंड में एकल नारी सशक्तीकरण संगठन का कामकाज देखती हैं. चंदवा की 17 पंचायतों में 11 पंचायतों में यह संगठन सक्रिय है. 11 पंचायतों की 550 एकल महिलाएं इस संगठन से जुड़ी हैं. जबकि धुरकी प्रखंड में अब तो मात्र आठ पंचायतें आती हैं, लेकिन सगमा के प्रखंड नहीं बनने से पूर्व यहां 10 पंचायतें थीं. इन 10 पंचायतों की 570 महिलाएं संगठन से जुड़ी हैं. इंदिरावती महीने में एक बार प्रखंड स्तरीय बैठक इनके साथ करती हैं.

क्या है एकल नारी सशक्तीकरण संगठन

एकल नारी सशक्तीकरण संगठन ऐसी नारियों का संगठन हैं, जिनके पति की मृत्यु हो चुकी है या फिर पति ने उन्हें छोड़ दिया है या फिर पति नि:शक्त हैं या ऐसी स्थिति में नहीं है कि वे परिवार का भरण-पोषण कर सकें. झारखंड में डॉ विन्नी को-आर्डिनेशन डायरेक्टर के रूप में इस संगठन का कामकाज देखती हैं. हालांकि यह एक राष्ट्रीय स्तर का संगठन है और देश के लगभग दर्जन भर राज्यों में यह सक्रिय है. राजस्थान, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, बिहार, गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र में इसकी प्रभावी उपस्थिति है.  इसकी स्थापना राजस्थान में ही हुई थी. पलामू के लातेहार जिले के चंदवा व लातेहार प्रखंड एवं गढ़वा जिले के धुरकी, मेराल व गढ़वा प्रखंड में इसका विस्तार हो चुका है. एकल नारी सशक्तीकरण संगठन की पंचायत से लेकर प्रदेश स्तरीय कमेटी होती है. जैसे प्रखंड स्तरीय समिति में हर पंचायत स्तरीय समिति से तीन-तीन महिलाएं चुनी जाती हैं. जिला स्तरीय समिति में हर प्रखंड से चार महिलाएं शामिल की जाती हैं. राज्य स्तरीय समिति में हर जिले से तीन महिलाएं शामिल की जाती हैं. इसी तरह 11 सदस्यीय कार्यसमिति भी होती है. एकल नारी सशक्तीकरण संगठन से जुड़ी महिलाओं को एसएचजी से जोड़ कर आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जाता है.

क्या कहती हैं इंदिरावती

एकल बहनें खुद को अकेला नहीं समङों. मैं संगठन से जुड़ी और मुङो जीने की राह मिली. देवर को अपने घर से बाहर निकाला. वह पहले मुङो मारा-पीटा करता था. मैं चाहती हूं कि दूसरी महिलाओं में भी जागरूकता आये और उन्हें उनका हक दिलाऊं. मेरी कोशिश है कि इस तरह की सोच को आगे बढ़ाऊं.

इंदिरावती देवी, चंदवा, लालेहार.


http://www.prabhatkhabar.com/news/104207-story.html


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