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न्यूज क्लिपिंग्स् | अराजकता की आती आहटें-- पवन के वर्मा

अराजकता की आती आहटें-- पवन के वर्मा

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published Published on May 9, 2018   modified Modified on May 9, 2018
अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) छात्र संघ के कार्यालय में वर्ष 1938 से लगी मुहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर को लेकर इस यूनिवर्सिटी में अशांति के चालू दौर में एक-दूसरे से बिलकुल अलग दो विचारणीय विषय हैं.

पहला, क्या एएमयू में ऐसे व्यक्ति की तस्वीर लगी रहनी चाहिए, जिसने भारत विभाजन हेतु सक्रियता से कार्य किया, पाकिस्तान बनवाया और हिंदुओं तथा मुसलिमों के बीच नफरत को हवा दी? दूसरा, यदि नहीं, तो इस पुरानी भूल के सुधार का सर्वोत्तम तरीका क्या हो सकता है?
मैंने इन दोनों को दो अलग मुद्दे इसलिए बताया कि यदि हम दोनों में भेद नहीं कर सके, तो जिन्ना की इस तस्वीर का विरोध करते हिंदू युवा वाहिनी (एचवाईवी) के हुल्लड़बाजों का ही मनचाहा कर गुजरेंगे.

एएमयू में एचवाईवी के लोगों द्वारा की गयी मनमानी के विरोध में बोलते हुए गोरखपुर से समाजवादी पार्टी के नवनिर्वाचित सांसद प्रवीण निषाद ने जब जिन्ना को गांधी और नेहरू की श्रेणी का बताते हुए उनकी तारीफ कर डाली, तो उन्होंने ठीक यही किया. एचवाईवी वालों को ऐसी ही प्रतिक्रिया की चाह थी.

कुछ लोगों की दलील यह हो सकती है कि यह तस्वीर 1938 में जिन्ना को इस यूनिवर्सिटी के छात्र संघ की आजीवन सदस्यता दिये जाने के वक्त लगी थी. तब वे ‘फूट डालो और राज करो' के ब्रिटिश खेल का एक अहम मोहरा होकर पाकिस्तान के पैरोकार नहीं बने थे.

यह भी एक सच्चाई है कि जिन्ना और उन जैसों द्वारा सांप्रदायिक भावनाएं भड़काये जाने के पूर्व भारत की आजादी के लिए लड़नेवालों में वे एक प्रमुख हस्ती हुआ करते थे, जिस तथ्य की मान्यता स्वयं महात्मा गांधी ने दी थी. वास्तविकता तो यह है कि एएमयू में चल रही अशांति के बीच ही यूपी के एक मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने जिन्ना की तारीफ करते हुए कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान भुलाया नहीं जा सकता.

वर्तमान में कटु आलोचना का पात्र बने किसी व्यक्ति का इतिहास भी पूरी तरह मिटाया तो नहीं जा सकता. उदाहरण के लिए मुंबई में आज भी ‘जिन्ना हाउस' नामक एक महत्वपूर्ण इमारत मौजूद है और मुंबई हाईकोर्ट में अपने समय के अग्रणी वकीलों में शामिल जिन्ना की तस्वीर अब भी लगी हुई है.

यदि ऐसा हो सकता है, तो फिर एएमयू में 1938 से लगी जिन्ना की पुरानी पड़ी तस्वीर ही क्यों हटायी जाये?

इसके साथ ही, एएमयू द्वारा यह विचार किये जाने हेतु भी दमदार दलीलें दी जा सकती हैं कि क्या इस तस्वीर को हटाये जाने की जरूरत नहीं है? कल्पना की किसी भी उड़ान द्वारा जिन्ना को भारतीयों के लिए सम्मान का पात्र नहीं ठहराया जा सकता. जैसा जानेमाने शायर जावेद अख्तर ने ट्वीट किया, ‘यह शर्म की बात है कि एएमयू अब भी जिन्ना की तस्वीर द्वारा उन्हें सम्मानित कर रही है.'

इस तरह, एचवाईवी के लोगों द्वारा इस तस्वीर को हटाये जाने की मांग को लेकर दो नजरिया हो सकता है, पर उन्होंने अपनी मांग को जिस तरह मनवाया, उसकी कड़ी निंदा को लेकर कोई भी दो मत नहीं हो सकता. पहली मई को भाजपा सांसद सतीश गौतम ने एएमयू के उपकुलपति को एक पत्र लिखकर पूछा कि क्यों यूनिवर्सिटी में अब भी जिन्ना की एक तस्वीर लगी है.

इस पत्र में कोई बुराई नहीं थी, मगर उसके बाद जो कुछ हुआ, वह निश्चित रूप से बुरा था. अगले ही दिन योगी आदित्यनाथ द्वारा स्थापित संगठन हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ता एएमयू परिसर में घुस आये और यूनिवर्सिटी के छात्रों से उलझ पड़े.

इसके नतीजे में गंभीर रूप से घायल कुछ लोगों समेत कुल 41 व्यक्ति जख्मी हो गये, जिनमें 28 छात्र और 13 पुलिसकर्मी शामिल थे. ज्यादातर रिपोर्टों के अनुसार ये हमलावर शस्त्रों से लैस थे, जिनमें से कुछ तो घातक भी थे. जैसा प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया, सबसे दुखद तो यह हुआ कि जब ये लोग उत्पात मचा रहे थे, तो पुलिस चुपचाप खड़ी तमाशा देख रही थी. जब ये सब स्वयं वर्तमान मुख्यमंत्री द्वारा स्थापित संगठन के लोग थे, तो आखिर पुलिस उन पर कार्रवाई कर भी कैसे सकती थी?

जिन्ना की तस्वीर को हटाने के पक्ष में दलीलें चाहे कितनी भी वाजिब क्यों न हों, एचवाईवी को यह अधिकार किसने दिया कि वह कानून अपने हाथों में ले?

क्यों इसके सदस्यों ने 1938 से लगी एक तस्वीर को अचानक एक मुद्दा बना डाला? क्या इस घटना के वक्त का यह चुनाव पूरी तरह संयोगात्मक है अथवा यह सांप्रदायिक नफरत तथा विभाजन फैलाने के किसी बड़े एजेंडे का एक हिस्सा है? और यदि उनका मुद्दा वाजिब भी है, तो आखिर क्यों उन्होंने यूनिवर्सिटी द्वारा सांसद सतीश गौतम के पत्र का उत्तर दिये जाने की प्रतीक्षा नहीं की?

फिर, इस हिंसात्मक घटना में संलिप्त लोगों के खिलाफ पुलिस द्वारा क्यों एक भी एफआईआर दर्ज नहीं किया गया? क्यों याेगी आदित्यनाथ ने अपने ही संगठन के सदस्यों द्वारा अंजाम दी गयी इस हुल्लड़बाजी की कड़ी निंदा नहीं की? क्या उन्होंने यह तथ्य भुला दिया है कि अब वे हिंदुत्व के स्वयंभू रक्षकों के एक धुर दक्षिणपंथी संगठन के एक्टिविस्ट नहीं, बल्कि एक राज्य के मुख्यमंत्री हैं? और क्या यह एक सिर्फ संयोग ही है कि एएमयू परिसर में इस घटना को तब अंजाम दिया गया, जब कुछ ही पल पश्चात पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का इस यूनिवर्सिटी में आगमन होनेवाला था?

ये सब अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न हैं. यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के शब्दों में जिन्ना ‘इस राष्ट्र के एक शत्रु' हो सकते हैं. पर यदि हिंदू युवा वाहिनी जैसे संगठन के सदस्य यह यकीन करते हैं कि उनसे असहमत किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध कानून अपने हाथों लेकर हिंसा फैलाने का अधिकार उन्हें हासिल है, तो वे भी वही हैं. ऐसी रिपोर्टें हैं कि इस संगठन के लोगों ने गोरखपुर तथा दूसरी जगहों पर चर्चों में घुसकर वहां की प्रार्थना में व्यवधान डाला. इसी तरह हाल ही गुड़गांव में भी एक संगठन द्वारा एक अन्य संप्रदाय की प्रार्थना में बाधा डाली गयी.

जिन्ना का निधन तो बहुत पहले हो चुका. मगर वे जिस सांप्रदायिक विभाजनवाद की भावना का प्रतिनिधित्व करते थे, क्या हम हिंदुत्व के नाम पर उसी का पुनर्जन्म नहीं देख रहे, जबकि कानून और व्यवस्था की देखरेख करनेवाले तमाशबीन बने बैठे हैं? यह कैसी अराजकता है और यह हमें कहां ले जायेगी? एएमयू में आज जो कुछ हो रहा है, यह उसका केंद्रीय मुद्दा है.

https://www.prabhatkhabar.com/news/columns/aligarh-muslim-university-amu-student-union-office-muhammad-ali-jinnah-photo-chaos/1154398.html


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