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न्यूज क्लिपिंग्स् | असमानता तोड़ देगी देश को- डा. भरत झुनझुनवाला

असमानता तोड़ देगी देश को- डा. भरत झुनझुनवाला

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published Published on Dec 3, 2013   modified Modified on Dec 3, 2013

बढ़ती असमानता समाज के लिए हानिकारक होने के साथ-साथ आर्थिक विकास के लिए भी हानिप्रद है. आम नागरिक जब अमीर को कोसता है, तो उसकी आंतरिक ऊर्जा नकारात्मक हो जाती है. वह हिंसक प्रवृत्ति का हो जाता है. चुनाव के इस माहौल में सभी पार्टियां गरीबों को लुभाने में लगी हुई हैं. कांग्रेस का कहना है कि उसने मनरेगा और खाद्य सुरक्षा लागू करके गरीबों को राहत पहुंचायी है. भाजपा ने महंगाई पर नियंत्रण, बिजली की दरों में कटौती एवं अधिक संख्या में गैस सिलेंडर मुहैया कराने का वादा किया है. आम आदमी पार्टी तो बस नाम से ही आम आदमी की है, ऐसा दर्शाया जा रहा है.

ऐसे ही वादे लगभग सभी पार्टियों के द्वारा पूर्व में हुए चुनावों के दौरान किये गये थे. स्वीकार करना होगा कि देश में मौलिक गरीबी कम हुई है. इस परिणाम को हासिल करने में कांग्रेस के योगदान को स्वीकार करना चाहिए. परंतु इस गरीबी उन्मूलन के बावजूद जनता में असंतोष व्याप्त है. कुछ माह पूर्व छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी काफिले पर हुए हमले में इस असंतोष की झलक दिखती है.

वास्तव में गरीबी दूर होने से समाज में असंतोष बढ़ा है. जो व्यक्ति रात में भूखा सोता है, उसकी ताकत नहीं होती कि वह आंदोलन कर सके. 100 दिन का काम और 2 रुपये किलो अनाज मिलने से वह आंदोलन करने लायक हो गया है. इस तरह देखें, तो अब तक देश का ध्यान गरीबी दूर करने पर केंद्रित था, लेकिन अब असमानता पर केंद्रित हो रहा है.

ऑक्सफैम के एक अध्ययन के अनुसार विश्व के 100 अमीर व्यक्तियों की संपत्ति में गत वर्ष लगभग 13,000 करोड़ रुपये की वृद्घि हुई. इस रकम को यदि दुनिया के सौ करोड़ गरीबों में वितरित कर दिया जाये, तो प्रत्येक गरीब व्यक्ति को 13,200 रुपये मिल सकते हैं, जो उनकी मूल जीविका साधने के लिए पर्याप्त होगा. दुनिया के 100 करोड़ गरीब और 100 अमीर एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. इससे झलक मिलती है कि गरीबी दूर होने के बावजूद असमानता बढ़ रही है.

बढ़ती असमानता समाज को अस्थिर बना देती है. पुरातन यूनान ने असमानता को स्वीकार किया. नागरिक और दास के बीच समाज बंटा हुआ था. लेकिन समृद्धि का वह समाज सुवितरण नहीं कर सका. परिणामस्वरूप यूनान के आम आदमी में असंतोष व्याप्त हो गया. बढ़ती असमानता समाज के लिए हानिकारक होने के साथ-साथ आर्थिक विकास के लिए भी हानिप्रद है.

आम नागरिक जब अमीर को कोसता है, तो उसकी आंतरिक ऊर्जा नकारात्मक हो जाती है. वह हिंसक प्रवृत्ति का हो जाता है. आर्थिक विकास के लिए जरूरी है कि आम नागरिक उत्पादन में वृद्घि के लिए सोचे. रिक्शेवाले की सकारात्मक सोच है कि वह बचत करके ऑटो रिक्शा खरीदे. इससे देश का विकास होता है.

परंतु यदि उसके मन में अमीरों के प्रति आक्रोश होता है, तो वह दोषारोपण करता रहता है और यदा-कदा हिंसक व्यवहार में लिप्त हो जाता है. ऐसे में विकास बाधित होता है. आर्थिक विकास के लिए जरूरी है कि असमानता का स्तर उतना ही हो, जिससे आम आदमी उद्वेलित न हो और उसकी मानसिक ऊर्जा प्रस्फुटित हो.

घोर असमानता से लॉ एंड ऑर्डर बिगड़ता है. आज आम आदमी नेताओं की दुहाई देकर स्वयं भ्रष्ट तरीकों से आगे बढ़ना चाहता है. वह सड़क पर लगे बिल बोर्ड उतार लेता है, गाड़ी का स्टीरियो निकाल लेता है, नकली नोट चलाता है इत्यादि. इनको रोकने के लिए देश को पुलिस पर खर्च बढ़ाना पड़ता है.

अत: आम आदमी की जो ऊर्जा विकास का माध्यम बन सकती थी, उस पर नियंत्रण करने के लिए समाज को खर्च बढ़ाने पड़ते हैं. ध्यान देनेवाली बात है कि एक बिंदु के बाद असमानता आर्थिक विकास में बाधा बन जाती है.

इतिहासकार आर्नोल्ड टायनबी ने विश्व की 20 से ज्यादा सभ्यताओं के पतन का अध्ययन किया है. वे बताते हैं कि सभ्यता के पतन के तीन चरण हैं. पहला, नेता जनता को गांधी सरीखा नैतिक नेतृत्व देने की जगह इदी अमीन या फर्डिनांड मार्कोस जैसा डंडे का नेतृत्व देने लगते हैं.

दूसरा, आम आदमी नेता से खुद को अलग समझने लगता है. तीसरा, आम आदमी संभ्रांत वर्ग का विरोध करने लगता है और समाज बंट जाता है. अपने देश में ऐसी ही स्थिति बन रही है. विश्व के 100 अमीर लोगों में चार भारत से हैं. आम आदमी इस असमानता से उद्वेलित है. नक्सली इस उद्वेलन में शामिल हैं. यह हमारे लिए एक खतरे की घंटी है, क्योंकि दमन से यह आक्रोश और बढ़ता ही जायेगा.

हमने गरीबी दूर करके एक महत्वपूर्ण उपलब्धि स्थापित तो की है, परंतु हमें और आगे बढ़ने की जरूरत है. ऐसी नीतियां लागू करनी होंगी कि असमानता एक सीमा से आगे न जाये. इसके लिए विलासिता की वस्तुओं पर टैक्स बढ़ाना चाहिए. साथ ही साथ उन लोगों को सम्मानित करना चाहिए, जो सादा जीवन जीते हैं.

समाज में जैसा रोल मॉडल प्रस्तुत किया जाता है, समाज उसी दिशा में चल पड़ता है. दुर्भाग्य है कि वर्तमान चुनावों में किसी भी पार्टी ने बढ़ती असमानता एवं इसके कारण बढ़ते हुए खतरे को नहीं उठाया है.

http://www.prabhatkhabar.com/news/67958-Inequality-break-country-rich-poor.html


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