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न्यूज क्लिपिंग्स् | आज भी मुख्यधारा से कटे हैं सरयू के लोग, तबीयत हुई खराब, तो बचना मुश्किल

आज भी मुख्यधारा से कटे हैं सरयू के लोग, तबीयत हुई खराब, तो बचना मुश्किल

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published Published on Mar 13, 2016   modified Modified on Mar 13, 2016

इस इलाके में रहनेवाले लोगों के बेटे-बेटियों के लिए रिश्ते नहीं आते. तत्कालीन केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने कहा था, चार माह में यहां दिखेगा बदलाव, लेकिन हालात यह है कि यहां जीवन काटना भी मुश्किल है. फिर भी लोग यहां बसर कर रहे हैं इस उम्मीद में कि कभी तो उनके भी दिन बहुरेंगे.

।। सरयू से लौट कर जीवेश ।।

चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा लगभग दो हजार फीट (समुद्र तल से) की ऊंचाई पर बसा लातेहार जिले के गारू प्रखंड का सरयू गांव पर्यटन के लिहाज से आदर्श है. प्रचंड गरमी में भी चादर ओढ़ने की जरूरत महसूस करनेवाले सरयू में रहना पहले शान की बात समझी जाती थी, जो आज अभिशाप है.

लातेहार मुख्यालय से महज 19 किलोमीटर की दूरी पर होने के बाद भी यहां सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं. पहले नक्सलियों की मार और बाद में प्रशासनिक पदाधिकारियों की उपेक्षा की वजह से सरयू से पलायन बढ़ गया है. बेटी की शादी करनी हो, तो लातेहार आने की मजबूरी होती है. रिश्ता तय करने के लिए भी बाहर के लोगों का सहयोग जरूरी है. कुछ किस्मतवाले पिता हैं, जिनके घर बारात आयी. पर इससे भी बड़ा सवाल जीवन का है. किसी की तबीयत अचानक खराब हो जाये, तो मरना तय है. सरयू एक्शन प्लान का सिर्फ यही असर है कि यहा पुलिस कैंप बने. सड़कें बननी शुरू हुईं. इससे नक्सलियों से बहुत हद तक मुक्ति जरूर मिली, पर विकास का तो कोई खास काम नहीं हुआ. इलाके में मोबाइल या कोई फोन काम नहीं करता. स्वास्थ्य सेवा भी भगवान भरोसे है. यहां कई व्यवस्था तो सिर्फ चौकीदार के भरोसे है. यहां का प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्र सप्ताह में पांच दिन काम करता है. यहां तीन एएनएम हैं रीना कुमारी, प्रीति सिन्हा व इग्नेशिया खलखो. एक स्वास्थ्य सेवक हैं रामनाथ बैठा. सप्ताह में दो दिन बाहर से चिकत्सक आते हैं. यह अलग बात है कि वो कितनी देर रहते हैं. तीनों एएनएम टीकाकरण को लेकर हर हफ्ते गुरुवार व शनिवार को क्षेत्र में घूमती हैं. इस कारण दो दिन कोई काम नहीं होता. जानकार बताते हैं कि सड़क नहीं होने और सुरक्षा की गारंटी नहीं रहने के कारण यहां ममता वाहन की सुविधा नहीं. इस कारण गर्भवती महिलाओं को काफी दिक्कतें होती है.

25 एकड़ खेत, खरीदते हैं अनाज

सरयू में सिंचाई की कोई सुविधा नहीं. जगह-जगह जलछाजन के बोर्ड जरूर लगे हैं, पर खेत सूखे हैं. विजय कुमार शाह कहते हैं कि उनके पास 25 एकड़ जमीन है, पर उनके परिवार का भरण-पोषण उसकी उपज से नहीं हो पाता. उन्हें बाजार से अनाज खरीदना पड़ता है. कहते हैं कि अगर व्यवस्था होती, तो कम से कम पेट भर खाना तो मिलता.


किस बात का स्टार्टअप

मो मुजफ्फर आलम ने कर्नाटक विश्वविद्यालय से एमकॉम किया है. कहते हैं कि सरयू के नौजवान दुनिया के अन्य नौजवानों से काफी पीछे रहे. गरीब घर के हैं, इसलिए लगातार बाहर नहीं रह सकते. सरयू में रह कर देश-दुनिया की किसी भी गतिविधि का पता नहीं चलता. वेकेंसी का पता नहीं चलता. नेट की सुविधा नहीं, जिससे दुनिया का हालचाल मिले. अभिभावक के पास इतने पैसे नहीं कि बाहर भेज कर पढ़ायें. ऐसे में कैसे हम दुनिया से कदमताल करें.

कैसा विकास, किसका विकास

रांची विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर शिल्पा कुमारी जिला परिषद सदस्य रह चुकी हैं. कहती हैं कि गांव के लिए कुछ करना चाहती थी, इसलिए ऊच्च शिक्षा के बाद भी गांव आ गयी, पर लगता है कि सब बेकार है. अब वह कोई नौकरी कर लेगी. बताती हैं कि सरयू एक्शन प्लान के नाम पर कुछ नहीं हुआ. वो जयराम रमेश से मिलने दिल्ली भी गयी थीं, पर कुछ लाभ नहीं हुआ. शिल्पा के अनुसार यहां से लगातार पलायन हो रहा है. इस कारण अगर कभी गरीबों का सर्वे भी होता है, तो लाभुक नहीं चुने जाते. फलस्वरूप गरीब और गरीब हो रहे हैं.

क्यों बना नक्सलियों का ठौर

यहां तक पहुंचने के लिए चार छोटी व दो बड़ी नदियों सहित जंगल व घाटी पार करनी पड़ती है. सड़क व पुल नहीं रहने के कारण पुलिस नहीं आ पाती थी. इसलिए माओवादियों ने कोयल शंख जोन का मुख्यालय सरयू को बनाया और अपनी सभी गतिविधियों को वहीं से संचालित किया. सरयू के आसपास कुड़पानी, रोल, कोटाम, भोखाखाड़ ऐसे जंगली क्षेत्र हैं, जो अत्यंत दुरूह हैं. ऐसे में पुलिस वहां नहीं पहुंच सकती थी. यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ और लोहरदगा से भी जुड़ा है. नक्सली गतिविधियों को अंजाम देकर वो कहीं भी निकल जाते थे और पुलिस कुछ नहीं कर पाती थी.

हम हैं ना...

सरयू के चौकीदार हैं दीपक भुइयां. किसी घटना को कैसे रोकेंगे, पूछने पर दीपक कहते हैं कि पुलिस से जुड़ा मामला होगा, तो पुलिस पिकेट (दूरी लगभग तीन किलोमीटर) पर जाकर बतायेंगे और प्रशासन से जुड़ा होगा, तो 25 किलोमीटर दूर गारू प्रखंड मुख्यालय जायेंगे. कैसे जायेंगे, पूछने पर कहते हैं कि पैदल. वो हर बात पर हंसते हैं और कहते हैं : जब फोन, गाड़ी और सड़क नहीं है, तो हम हैं ना.


http://www.prabhatkhabar.com/news/big-story/story/737519.html


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