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न्यूज क्लिपिंग्स् | आदिवासी बनाएंगे सियासी दल, चुनाव से पहले समाज में हो रहा सर्वे!

आदिवासी बनाएंगे सियासी दल, चुनाव से पहले समाज में हो रहा सर्वे!

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published Published on Jan 25, 2018   modified Modified on Jan 25, 2018
मृगेंद्र पांडेय, रायपुर। छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज एक नए राजनीतिक विकल्प की तलाश में निकल पड़ा है। विधानसभा चुनाव से दस महीने पहले सर्वआदिवासी समाज एक सर्वे कर रहा है, जिसमें यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या आदिवासी, पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यकों को एकजुट होकर गैर कांग्रेसी, गैर भाजपाई राजनीतिक पार्टी बनानी चाहिए।


क्या आरक्षित वर्ग को नया राजनीतिक विकल्प तलाशना चाहिए? राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें तो पिछले तीन साल में सर्वआदिवासी समाज के बैनर तले आदिवासियों की समस्याओं को लेकर मुख्यमंत्री और राज्यपाल से दर्जनों शिकायतें की गई, लेकिन सरकार की तरफ से इसे निपटाने के लिए कोई ठोस पहल नहीं हो पाई।


इससे नाराज आदिवासी समाज ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले नया दांव खेला है। समाज के विकास को मुद्दा बनाकर लगभग एक लाख आदिवासियों से यह सवाल पूछा जा रहा है कि मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था में हमारे आरक्षित वर्ग के नए एमपी, एमएलए मौजूदा राजनीतिक दलों से जीतकर आएंगे तो क्या वे समाज की समस्याओं के खिलाफ समाज का साथ देंगे।


क्या आरक्षित वर्ग के जनप्रतिनिधि, विधायक, सांसद और मंत्री सामाजिक समस्याओं के प्रति हमेशा उदासिन रहते हैं। सर्वे में पूछे गए सवालों से आदिवासी समाज की नाराजगी का अंदाजा लगाया जा सकता है।


सर्वे में पूछा जा रहा है कि पिछले 66 वर्षों में छत्तीसगढ़ के मूल निवासियों का विकास नहीं होने के लिए राजनीतिक नेतृत्व, शासकीय सेवक और सामाजिक नेतृत्व में से कौन जिम्मेदार है।


समाज के बड़े नेता यह मान चुके हैं कि कांग्रेस और भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़कर सत्ता में पहुंचने वाले आदिवासी समाज के प्रतिनिधि पार्टी के प्रति ज्यादा वफादार नजर आते हैं।


ऐसे में इस समीकरण को तोड़ने के लिए प्रदेश में पहली बार आदिवासी, पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यकों को एक साथ लाने की कवायद शुरू की गई है। समाज के नेताओं की मानें तो छत्तीसगढ़ में इन चारों वर्ग की मिलकार 97 फीसदी आबादी हो जाती है।


बावजूद इसके इस वर्ग की ही सबसे ज्यादा राजनीतिक उपेक्षा होती है। सर्वे में सवाल के साथ यह सुझाव भी दिया गया है कि आदिवासी, पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यकों पर आए संवैधानिक संकट को देखते हुए एक संयुक्त मोर्चा बनाया जाए और समस्याओं का समाधान होने के बाद इस मोर्चे को समाप्त कर दिया गया।


जनमत संग्रह में सर्व एकता का सवाल जनमत संग्रह में सवाल पूछा जा रहा है कि क्या आदिवासी, पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यकों की समस्याएं एक जैसी हैं। इनके लिए सबको मिलकर संघर्ष करना चाहिए।


छत्तीसगढ़ के मूल निवासी एससी 13 प्रतिशत, एसटी 32 प्रतिशत, ओबीसी 40 प्रतिशत और अल्पसंख्यक 4 प्रतिशत मिलकर अपने सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए आपसी समझौता करना चाहिए। सभी छात्रों के लिए एक जैसी शिक्षा और समान परिस्थिति में समान अवसर दिया जाना चाहिए। क्या हमारे बच्चे नीट परीक्षा द्वारा एमबीबीएस में चयनित हो पाएंगे।


पिछड़ा वर्ग और आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग

सर्वे में पूछा जा रहा है कि क्या आपको जानकारी है कि विधानसभा चुनाव के समय पिछड़ा वर्ग या आदिवासी समाज से मुख्यमंत्री बनाने की मांग करनी चाहिए। क्या आपको लगता है कि इन वर्गों की यह मांग उचित है।


क्या समाज की इस मांग को कांग्रेस और भाजपा पूरा कर सकते हैं। एससी वर्ग के आठ, एसटी वर्ग के 14 न्यायाधीशों और वर्तमान न्यायाधीशों के उपर न्यायपालिका के प्रशासनिक विभाग द्वारा समय से पहले बर्खास्त किया गया। क्या इस प्रकार का सौतेला व्यवहार उचित है। क्या आप मानते हैं कि राजनीतिक महत्वकांक्षा के कारण सामाजिक संगठन में टूटन आ रही है। क्या संपूर्ण व्यवस्था परिवर्तन करके ही समाज का हित हो सकता है।


- बस्तर और सरगुजा के लगभग एक लाख आदिवासी, पिछड़े और दलित समाज के लोगों के बीच सर्वे कराया जा रहा है। अब तक समाज के नेता कांग्रेस और भाजपा से विधायक बनने के बाद समाज के उत्थान में स्र्चि नहीं दिखा रहे हैं। इसलिए हम नए राजनीतिक विकल्प की बात कर रहे हैं। अगले दो महीने से सर्वे पूरा हो जाएगा, जिसके बाद भविष्य की रणनीति बनाई जाएगी। - बीएस रावटे, कार्यकारी अध्यक्ष सर्व आदिवासी समाज


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