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न्यूज क्लिपिंग्स् | आपदा का खनन- राहुल कोटियाल

आपदा का खनन- राहुल कोटियाल

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published Published on Jul 9, 2013   modified Modified on Jul 9, 2013
उत्तराखंड जैसी आपदा से सहारनपुर कोई सबक लेने को तैयार नहीं. यहां प्रभावशाली लोगों की छत्रछाया में खुलेआम अवैध खनन का खतरनाक खेल खेला जा रहा है. राहुल कोटियाल की रिपोर्ट.

उत्तराखंड में आई आपदा से हुए नुकसान का आकलन अब भी जारी है. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस हादसे में मरने वालों की संख्या लगभग एक हजार के आस-पास है. लेकिन स्थानीय नागरिकों और इस हादसे से बचकर आए लोगों की मानें तो यह दस हजार से अधिक हो सकती है. मारे गए लोगों की संख्या की ही तरह इस हादसे ने एक और विवादास्पद बहस को जन्म दे दिया है. क्या यह हादसा पूरी तरह से प्राकृतिक था जिसे रोक पाना नामुमकिन हो? या फिर यह एक मानव निर्मित आपदा थी? भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि बाढ़ और भूस्खलन जैसी समस्याएं तो प्राकृतिक ही हैं लेकिन इनके चलते जो नुकसान उत्तराखंड में हुआ वह पूरी तरह से मानव निर्मित था. विशेषज्ञों के अनुसार नदियों के फ्लड जोन में अतिक्रमण, संवेदनशील इलाकों में खनन और मोटर रोड या विद्युत परियोजनाओं आदि को बनाने के लिए ब्लास्टिंग करना ऐसे हादसों के महत्वपूर्ण कारणों में से हैं.

ऐसे ही किसी बड़े हादसे को आमंत्रित करने की नींव इन दिनों उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में रखी जा रही है. जिला प्रशासन के संरक्षण में यहां लंबे समय से अवैध खनन और स्टोन क्रशर चलाए जा रहे हैं. हथनीकुंड बैराज जैसा संवेदनशील इलाका भी इससे अछूता नहीं है. इस बैराज के आस-पास कई स्टोन क्रशर काम कर रहे हैं. इन क्रशरों के लिए खनन सामग्री भी अवैध रूप से इसी इलाके से निकाली जा रही है जिससे यह इलाका असुरक्षित होता जा रहा है. स्थानीय नागरिकों के लगातार विरोध के बावजूद जिले में कभी भी अवैध खनन पर रोक नहीं लग सकी. 2011 में स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता आशीष सैनी ने प्रदेश एवं केंद्र सरकार के संबंधित विभागों के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय को सहारनपुर में हो रहे अवैध खनन के संबंध में पत्र लिखा. आशीष के पत्र का सर्वोच्च न्यायालय ने संज्ञान लिया और 25 सितंबर, 2011 को इसकी जांच के आदेश दिए.

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर सेंट्रल एंपावर्ड कमेटी द्वारा इस मामले की जांच की गई. यह समिति विशेष तौर से पर्यावरण से संबंधित मुद्दों की जांच के लिए ही गठित की गई है. समिति ने चार जनवरी, 2012 को अपनी जांच रिपोर्ट न्यायालय में पेश की. इसमें कहा गया कि सहारनपुर जिले में कई खनन पट्टे अवैध तरीकों से आवंटित किए गए हैं और इनकी आड़ में पट्टा धारकों द्वारा अवैध खनन भी किया जा रहा है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि अवैध खनन का यह काम जिला प्रशासन के संरक्षण में हो रहा है. जांच में यह भी पाया गया कि यमुना के आस-पास 70 स्टोन क्रशर अवैध तरीकों से चलाए जा रहे हैं जिनमें से कइयों को जिला प्रशासन द्वारा ध्वस्त या सील किया हुआ दिखाया गया है. इस रिपोर्ट के आधार पर न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को गैरकानूनी तरीके से चल रहे खनन कार्यों एवं स्टोन क्रशरों पर तुरंत रोक लगाने के आदेश दिए. सहारनपुर स्टोन क्रशर्स वेलफेयर एसोसिएशन के सचिव महेंद्र सिंह बताते हैं, 'कोर्ट के आदेशों के बाद सहारनपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा सभी स्टोन क्रशर्स की जांच की गई जिसमें सिर्फ 90 स्टोन क्रशरों को ही वैध पाया गया. बाकी सभी क्रशरों पर रोक लगाते हुए उन्हें तोड़ने के आदेश जिला प्रशासन ने दे दिए थे. कई अवैध स्टोन क्रशरों को आंशिक तौर से तोड़ा भी गया था.' महेंद्र सिंह आगे बताते हैं कि उस वक्त उन सभी खनन पट्टों पर भी रोक लगा दी गई थी जिनके पास पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति नहीं थी.

मगर थोड़े ही दिनों में स्थिति जस-की-तस हो गई. 2012 का अंत होते-होते सहारनपुर जिला प्रशासन द्वारा कुल 16 खनन पट्टे फिर से आवंटित कर दिए गए. इनमें से तीन पट्टों को बाधित अवधि (17 अप्रैल 2013 से 21 जनवरी 2014 तक) के लिए और बाकियों को पूरे तीन साल के लिए आवंटित किया गया. नवीनीकरण की इस प्रक्रिया में नियम-कानूनों से जमकर खिलवाड़ हुआ. नियमानुसार पट्टों के नवीनीकरण और आवंटन के लिए नीलामी प्रक्रिया का अपनाया जाना आवश्यक है. इसके साथ ही ई-टेंडरिंग और ई-ऑक्शन की शर्त भी कानून में है. लेकिन ये सभी पट्टे बिना नीलामी के ही आवंटित कर दिए गए. ऊपर से आवंटित भी उन्हीं लोगों को किए गए जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कराई गई जांच में अवैध खनन के दोषी पाए गए थे और जिनसे जुर्माना वसूलने की बात कही गई थी.

जिला प्रशासन इन पट्टा धारकों पर क्यों मेहरबान हुआ इसका अंदाजा जिलाधिकारी कार्यालय के खनन अनुभाग से मिली पट्टा धारकों की सूची जांचने पर हो जाता है. आवंटित किए गए ये सभी खनन पट्टे लगभग एक ही समूह के पास हैं. इस समूह में बहुजन समाज पार्टी के विधान परिषद सदस्य मोहम्मद इकबाल के भाई, उनके पुत्र, एवं अन्य नजदीकी लोग शामिल हैं. आवंटित किए गए 16 खनन पट्टों में से आठ मोहम्मद इकबाल के भाई महमूद अली के नाम पर हैं, एक उनके बेटे मोहम्मद वाजिद अली के और चार पट्टे उन जैन भाइयों के नाम पर हैं, जो एक पट्टे में महमूद अली के पार्टनर हैं.

एक स्थानीय जानकार बताते हैं, 'बसपा नेता मोहम्मद इकबाल के लोगों के पास ही सारे खनन पट्टे हैं. इसलिए पूरे जिले के खनन कार्यों में उनका एकाधिकार हो गया है. अपने पट्टों की आड़ में ये लोग निजी भूमि से लेकर सरकारी भूमि तक में अवैध खनन कर रहे हैं. इन खनन माफियाओं का रसूख इतना है कि ये किसी और को खनन पट्टा आवंटित ही नहीं होने देते. अवैध खनन से अब तक ये लोग प्रदेश को हजारों-करोड़ का नुकसान कर चुके हैं. जाहिर है इस कमाई का एक हिस्सा जिला प्रशासन को भी पहुंच रहा है.' खनन सामग्री बेचने के लिए पट्टा धारकों को प्रशासन द्वारा एम-एम-11 फॉर्म जारी किए जाते हैं. बोलचाल की भाषा में इन्हें रवाना कहा जाता है. नियमानुसार पट्टाधारक को कोई भी खनिज अपने पट्टे से बाहर भेजने से पहले उसके लिए एक रवाना जारी करना होता है. इसमें खनिज के प्रकार व मात्रा के बारे में जानकारी होती है. इस तरह से एक पट्टे से उत्पादित कुल खनिज भी वहां दर्ज हो जाता है. खनिज की निर्धारित मात्रा खत्म होने पर खनन पर रोक लगा देने का प्रावधान है. पर ये नियम-कानून सिर्फ किताबों तक सीमित हैं. जो धरातल पर होता है वह कुछ इस तरह हैः

सहारनपुर में खनन माफियाओं द्वारा नुनियारी, गंदेवड, रायपुर, बादशाही बाग, सुन्दरपुर, ताजेवाला, जसमौर, नानौली और लांडा पुल पर कुल नौ चौकियां बनाई गई हैं. तहलका की पड़ताल के मुताबिक यमुना और उसके आस-पास वाली किसी भी जगह से निकाला गया अवैध खनिज इन चौकियां में से ही किसी एक से होकर सहारनपुर से बाहर ले जाया जा सकता है. कहीं से भी अवैध खनिजों के ट्रक इन चौकियों पर आ जाते हैं और पैसे देकर इनसे रवाना हासिल कर लेते हैं. इस तरह से अवैध माल वैध बन जाता है और खनन माफियाओं को बिना हींग और फिटकरी के मोटी रकम मिल जाती है. तहलका ने जब इन अवैध चौकियों के संबंध में इलाके के खान अधिकारी हवलदार सिंह यादव से बात की तो उनका जवाब था, 'मुझे यहां आए अभी एक महीना भी पूरा नहीं हुआ है. मेरे संज्ञान में अभी यह मामला नहीं है.'

इसके अलावा जो खनिज प्रशासन द्वारा आवंटित पट्टों से बाहर जाता है उसको लेकर भी तमाम तरह की गड़बड़ियां देखने को मिलती हैं. सहारनपुर के सामाजिक संगठन, सैनी युवा चेतना मंच के एक कार्यकर्ता हमें बताते हैं, 'इन पट्टों से बड़े-बड़े ट्रकों में माल ले जाया जाता है लेकिन कागजों (एम-एम-11 फॉर्म) पर जितना माल दिखाते हैं उससे ज्यादा तो बैलगाड़ी में ही आ जाता है, प्रशासन बिना आपत्ति के खनन माफियाओं के इस झूठ को स्वीकार करके उन्हें नए रवाने जारी कर देता है. महीने में एक-दो बार किसी ट्रक का चालान भी हो जाता है जिससे जिला प्रशासन की जिम्मेदारी पूरी हो जाती है.' रवाने में माल को कम दिखाने वाली बात की पुष्टि करते हुए स्टोन क्रशर्स वेलफेयर एसोसिएशन के सचिव महेंद्र सिंह कहते हैं, 'जितने खनिजों की बिक्री के लिए इन पट्टाधारकों को तीन साल का पट्टा दिया जाता है उतना तो ये लोग सिर्फ 15 दिन में ही बेच देते हैं. खुले-आम जेसीबी मशीनों से खुदाई की जाती है जो कि नियमानुसार प्रतिबंधित है.'
रवाने में ज्यादा माल को कम दिखाने से न केवल पट्टाधारक सरकार को रॉयल्टी की एक बड़ी रकम देने से बच जाते हैं बल्कि उनके पट्टे के लिए निर्धारित खनिज की मात्रा भी कागजों पर समाप्त नहीं होती. इस वजह से उन्हें प्रशासन से लगातार रवाने मिलते रहते हैं और वे खुद और दूसरों के किए अवैध खनन को वैध बनाने के खेल में लगे रहते हैं. जिला प्रशासन द्वारा खनन माफियाओं को गलत तरीकों से अधिक रवाने जारी करने की बात सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर हुई जांच में भी सामने आई थी. इसमें कहा गया था कि 'सहारनपुर जिले में सिर्फ तीन महीने के दौरान ही 60,176 अतिरिक्त रवाने जारी किए गए हैं. इन रवानों के जरिए 2,40,704 क्यूबिक मीटर अवैध खनिज बेचा गया है. और असल में तो बेचे गए अवैध खनिज की मात्रा इससे भी कहीं ज्यादा होगी क्योंकि ये रवाने ट्रैक्टर ट्राली के हिसाब से जारी किए जाते हैं. जबकि इन खनिजों को अधिकतर बड़े ट्रकों में ले जाया जाता है.'

सहारनपुर जिले में खनन का काम इसलिए भी खूब फल-फूल रहा है कि यह उत्तर प्रदेश का ऐसा जिला है जिसकी सीमा तीन राज्यों से मिलती हैं. इस कारण उत्तर प्रदेश के साथ ही यहां से उत्तराखंड, हरियाणा और हिमाचल में भी खनिज बेचा जाता है. सहारनपुर और हरियाणा की सीमा को वही यमुना नदी अलग करती है जिसको नोंच-नोंच कर यह खनन किया जा रहा है. जानकारों के मुताबिक हरियाणा में इन दिनों खनन बंद होने से वहां खनिज की मांग बहुत ज्यादा हो गई है. ऐसे में हरियाणा के लोग यमुना के दूसरी ओर खनन करने के बाद उसे कानूनी रूप देने के लिए खनन माफियाओं से रवाना हासिल कर लेते हैं.

एक तरफ इस क्षेत्र में अवैध खनन का खेल जारी है तो दूसरी तरफ अवैध स्टोन क्रशर इसके पूरक का काम कर रहे हैं. सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद कई स्टोन क्रशरों पर रोक लगाई गई थी लेकिन इनमें से ज्यादातर कभी बंद ही नहीं हुए. स्थानीय अखबारों में लगातार सील किए गए क्रशरों के चलते रहने की खबरें छपती रही हैं. इससे भी ज्यादा गंभीर बात यह है कि कई स्टोन क्रशर यमुना नदी में ही लगा दिए गए हैं. नियमानुसार किसी भी स्टोन क्रशर की नदी तट से दूरी कम से कम पांच सौ मीटर होनी चाहिए. लेकिन सहारनपुर में दर्जनों स्टोन क्रशर इन मानकों का खुले आम उल्लंघन करते हैं. यहां तक कि हथनीकुंड बैराज से महज दो किलोमीटर से भी कम दूरी पर एक-दो नहीं बल्कि सात स्टोन क्रशर स्थापित किए जा चुके हैं. ईमानदारी से स्टोन क्रशर चलाने की इच्छा रखने वालों की परेशानियों के बारे में बताते हुए महेंद्र सिंह कहते हैं, 'ऐसे स्टोन क्रशरों ने उन सभी का काम मुश्किल कर दिया है जो वैध तरीके से क्रशर चला रहे हैं. हमें कच्चा माल नदी से अपने क्रशर तक लाना पड़ता है. इसमें काफी खर्च आता है. जबकि जो स्टोन क्रशर नदी में ही बने हैं वे वहीं से कच्चा माल उठा रहे हैं.'

ऐसे अवैध क्रशरों से होने वाले खतरों के बारे में आशीष सैनी बताते हैं, 'बैराज के इतने नजदीक बने ये क्रशर वहां खनन भी खुलेआम कर रहे हैं. कुछ समय बाद यह बैराज टूटने के कगार पर होगा. हजारों की जिंदगी को दांव पर लगाकर यह खनन हो रहा है. इन अवैध स्टोन क्रशरों में से एक उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री असलम खान का है और एक हरियाणा के यमुनानगर से विधायक दिलबाग सिंह का. जब इतने प्रभावशाली लोग ऐसे अवैध धंधे में हैं तो कोई क्या करे ?'


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