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न्यूज क्लिपिंग्स् | आम आदमी की जिंदगी कैसे बदल सकता है नीति आयोग- संतोष महरोत्रा

आम आदमी की जिंदगी कैसे बदल सकता है नीति आयोग- संतोष महरोत्रा

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published Published on Feb 24, 2015   modified Modified on Feb 24, 2015
योजना आयोग की जगह लेने वाले नीति आयोग को राज्‍यों के लिए एक नॉलेज हब माना जा रहा है। बतौर थिंक टैंक इसकी क्‍या भूमिका होनी चाहिए इस बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय ने जनता से भी सुझाव मांगे थे। अब तक के इतिहास पर नजर डालें तो हम पाएंगे कि योजना आयोग राज्‍यों में हो रहे बेहतरीन कार्यक्रम व योजनाएं के संग्रह और इन्‍हें देश के दूसरे इलाकों में सफलतापूर्वक लागू करने के मामले में बमुश्किल सफल रहा है। यही वजह है कि कृषि के क्षेत्र में गुजरात और आंध्र प्रदेश ने जिस तरह की कामयाबी हासिल की है, अन्‍य राज्‍यों में वैसा नहीं हो पाया।

बदल सकती है आम आदमी की जिंदगी

किसी एक राज्‍य की सफल योजनाआें और कार्यक्रमों को योजना आयोग देश के दूसरे हिस्‍सों तक पहुंचाने में नाकाम रहा है। यही मोदी सरकार के नीति आयोग के लिए सुनहरा मौका है। यह नई संस्‍था डेवलपमेंट के सफल मॉडल्‍स को देश भर में पहुंचा सकती है, बशर्ते ऐसा कराने के लिए जरूरी वित्‍तीय संसाधन और अधिकार दिए जाएं। अगर नीति आयोग सफल राज्‍यों की योजनाओं को देश के दूसरे हिस्‍सों तक पहुंचाने में कामयाब रहा तो इससे वाकई आम आदमी की जिंदगी बदल सकती है।

असर दिखाएगी राज्‍यों की भागीदारी

मौजूदा पंचवर्षीय योजनाओं की सबसे ज्‍यादा आलोचना इस बात के लिए की जाती है कि जमीनी असर की निगरानी करने की पुख्‍ता व्‍यवस्‍था नहीं है। नीति आयोग के अध्‍यक्ष के तौर पर प्रधानमंत्री योजनाओं के परिणाम और असर के मापदंड तय कर सकते हैं। लंबे समय से राज्‍य केंद्र से मिलने वाले फंड को अपने हिसाब से खर्च करने की छूट मांग रहे हैं। इस मामले में नीति आयोग एक बड़ा काम यह कर सकता है कि राज्‍यों के आउटपुट या प्रदर्शन का निष्‍पक्ष मूल्‍यांकन कर अगले साल का फंड आवंटित करे। इससे न सिर्फ राज्‍यों की जवाबदेही बढ़ेगी बल्कि फिजूलखर्च पर अंकुश लग सकता है। देश का आम करदाता टैक्‍स के तौर पर दिए सरकार को दिए एक-एक पैसे का सदुपयोग होते देखना चाहता है।

देखा जाए तो भारत वित्‍तीय तौर पर दुनिया की सबसे केंद्रीयकृत संघीय व्‍यवस्‍था है। राज्‍य सरकारों की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि पूरे देश के लिए एक समान योजनाएं बनाई जाती हैं। अगर राज्‍यों को फंड के इस्‍तेमाल की ज्‍यादा छूट दी जाती है तो राज्‍य अपनी जरूरतों के हिसाब से योजनाएं चला सकेंगे। इससे न सिर्फ सरकारी कार्यक्रमों का ज्‍यादा असर होगा, बल्कि आम लोगों की जिंदगी में बेहतर बदलाव आ पाएगा।

ऊपर से नीचे नहीं, नीचे से ऊपर प्‍लानिंग

ऐतिहासिक रूप से भारत में विकास ऊपर यानी केंद्र स्‍तर पर बनती हैं और नीचे यानी राज्‍य व जमीन स्‍तर पर लागू की जाती हैं। इसके लिए केंद्र फंड देता है और राज्‍य योजनाओं को लागू करते हैं। नीति आयोग को थिंक टैक की भूमिका दी गई है। देश भर से सफल योजनाओं और कार्यक्रमों को चुनकर देश भर में लागू करने के मामले में नीति आयोग की थिंक टैंक वाली भूमिका कारगर साबित हो सकती है। योजना आयोग का विकल्‍प तलाश करते वक्‍त प्रधानमंत्री कार्यालय ने लोगों से पूछा था कि क्‍या पंचवर्षीय योजनाएं जारी रहनी चाहिए। नीति आयोग पंचवर्षीय योजनाओं को जारी रखते हुए केंद्र व राज्‍य सरकारों के लिए सालाना योजना बनाकर लक्ष्‍य तय कर सकता है।

सुलझ सकता है मंजूरी में देरी का मुद्दा

यूपीए सरकार में बड़ी तादाद में इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर से जुड़ी बड़ी परियोजनाएं राज्‍य सरकार की मंजूरी नहीं मिलने के चलते अटकी पड़ी थीं। नीति आयोग राष्‍ट्रीय महत्‍व की परियोजनाओं को राज्‍यों से मंजूरी दिलाने में अहम भूमिका निभा सकता है। इससे देश में बुनियादी ढांचे के विकास को गति मिलेगी। लेकिन राज्‍यों के साथ सहभागी संघीय व्‍यवस्‍था तभी कारगर साबित हो सकती है जब पहले केंद्र सरकार के मंत्रालय अपने बीच तालमेल सुधारें। मिसाल के तौर पर एनर्जी से जुड़े मसलों पर पेट्रोलियम, कैमिकल्‍स एंड फर्टिलाइजर, कोल और माइंस जैसे मंत्रालयों के बीच समन्‍वय होना जरूरी है। कौशल सुधार जैसे मुद्दें तो 15-20 मंत्रालयों से संबंधित हैं। इसी तरह कृषि के लिए भी चार-पांच मंत्रालय के बीच बेहतर तालमेल होना जरूरी है। इस मुश्किल का हल मंत्रालयों की समिति या मंत्री समूह बनाने से नहीं निकलेगा। चीन में योजना आयोग जैसी संस्‍था एनडीआरसी को एक प्रमुख जिम्‍मेदारी मंत्रालयों के बीच तालमेल बनाए रखना ही है।

विशेषज्ञों को महत्‍व देना जरूरी

नीति आयोग के जरिए अधिकतम शासन का लक्ष्‍य हासिल करना विभिन्‍न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के बगैर संभव नहीं है। योजना अायोग में उच्‍च पदों पर आईएएस या आईईएस अधिकारी होते थे। देश के बाकी मंत्रालयों की तरह यहां भी अफसर आते-जाते रहते थे। इसलिए आयोग के बाहर के विशेषज्ञों को पहचानना जरूरी है। इस‍के लिए विभिन्‍न पदों पर लेटरल एंट्री के मौके खोलने होंगे।

लेखक डॉ. संतोष मेहरोत्रा जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय में अर्थशास्‍त्र के प्रोफेसर और योजना आयोग के एक शोध संस्‍थान के प्रमुख रह चुके हैं।


http://money.bhaskar.com/news/NR-PAP-niti-aayog-identify-problems-before-change-4860700-NOR.html


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