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न्यूज क्लिपिंग्स् | आर्थिक समीक्षा में बजट की झलक-- राजेश रपरिया

आर्थिक समीक्षा में बजट की झलक-- राजेश रपरिया

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published Published on Feb 1, 2018   modified Modified on Feb 1, 2018
राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद पेश आर्थिक समीक्षा 2017-18 से उम्मीद जतायी गयी है कि 2018-19 में 7 से 7.5 फीसदी आर्थिक वृद्धि हासिल करने के बाद भारत एक बार फिर दुनिया की सबसे तेजी से बढ़नेवाली बड़ी अर्थव्यवस्था बन जायेगा. इस समीक्षा में 2017-18 में 6.75 फीसदी आर्थिक वृद्धि का अनुमान लगाया है. इससे पहले केंद्रीय सांख्यिकीय कार्यालय ने चालू वित्त वर्ष के दौरान आर्थिक वृद्धि 6.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया था.

 

इससे पिछले वर्ष 2016-17 में आर्थिक वृद्धि दर 7.1 और 2015-16 में 8 फीसदी वृद्धि दर रही थी. लेकिन चालू साल की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर 2017) में यह वृद्धि गिरकर पिछले चार सालों के न्यूनतम 5.7 फीसदी पर पहुंच गयी थी. लेकिन, इस सुस्ती को नोटबंदी और जीएसटी लागू होने का असर माना गया था. लेकिन, अब आर्थिक समीक्षा में आगामी वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि के ताजा अनुमान से जाहिर है कि अब अर्थव्यवस्था नोटबंदी और जीएसटी के असर से उबर रही है.
आर्थिक समीक्षा पेश करने के बाद एक संवाददाता सम्मेलन में मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम ने कहा कि अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार आ रहा है और नोटबंदी व जीएसटी का अस्थायी प्रभाव समाप्त हो रहा है. समीक्षा के दिये संकेतों से साफ है कि आगामी बजट रोजगार, शिक्षा और कृषि पर ही फोकस होगा.


वित्त मंत्री अरुण जेटली को आगामी बजट के कई हितों को साधना है. संसद के बजट सत्र शुरू होने से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने साफ संकेत दिया है कि आगामी बजट देश के सामान्य से सामान्य व्यक्ति की आशा-अपेक्षाओं को पूरा करनेवाला होगा. जाहिर है कि आगामी बजट में उन्हें अपनी सरकार और पार्टी के राजनीतिक हितों को भी साधना है और सुस्त अर्थव्यवस्था एवं आर्थिक वृद्धि में भी नयी ऊर्जा भरनी है.


वित्त मंत्री को मध्यम वर्ग को खुश करने के लिए आयकर में राहत भी देनी है. युवाओं के लिए रोजगार के भारी अवसरों को भी जुटाना है. कॉरपोरेट जगत को भी टैक्स में रियायत मिलने की भारी उम्मीद है. किसानों में फैले असंतोष और आक्रोश को भी दूर करना है. इस चुनौती को वित्त मंत्री टाल नहीं सकते हैं, क्योंकि इसी साल आठ राज्यों में चुनाव होने हैं.


इनमें से तीन राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं और ये राज्य कृषि पर आश्रित हैं. इन राज्यों में हारने का जोखिम भाजपा नहीं उठा सकती है. वैसे अरुण जेटली कई बार संकेत दे चुके हैं कि आगामी बजट कृषि और गांवों पर केंद्रित होगा. पर, वित्त मंत्री की सबको खुश करने की कवायद तभी फलदायी होगी, जब वे अरसे से कुंद आर्थिक वृद्धि, सुस्त निवेश और रोजगार को पटरी पर ले आएं. बाजारवाद के इस दौर में आर्थिक वृद्धि दर (जीडीपी ग्रोथ रेट) से ही बाजार की चमक-दमक तय होती है.
आर्थिक वृद्धि दर बढ़ने से रोजगार पैदा होते हैं, आमदनी बढ़ती है, उपभोग बढ़ता है. नतीजतन मांग बढ़ती है, निवेश बढ़ता है और इन सब कारकों के प्रभाव से आर्थिक वृद्धि बढ़ती है. सामान्य धारणा है कि नोटबंदी और जीएसटी लागू होने से आर्थिक वृद्धि दर गिरी है.


लेकिन, यह गिरावट पिछली तिमाहियों से नहीं पिछले सात सालों से अर्थव्यवस्था में दिखायी दे रही है. आर्थिक वृद्धि दर को बढ़ाने में उपभोग, निर्यात और निवेश की भूमिका अहम होती है. उपभोग सरकारी हो या निजी, दोनों ही आर्थिक वृद्धि दर को प्रभावित करते हैं. चालू वित्त वर्ष में उपभोग स्तर कम रहने का अनुमान है. यदि अगले साल इसे बढ़ाना है, तो आयकर में पर्याप्त छूट देना जरूरी है.


आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने में व्यापारिक निर्यात की भूमिका नकारना मुश्किल है. पर जीडीपी के अनुपात में व्यापारिक निर्यात कम हो रहे हैं. निर्यातों का बढ़ना घरेलू कारकों से ज्यादा वैश्विक कारणों पर निर्भर होता है. पिछले महीनों में वैश्विक अार्थिक वृद्धि और मांग बढ़ने के बावजूद देश के निर्यात में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है. वैसे आर्थिक समीक्षा ने निर्यात प्रदर्शन को लेकर संतोष जाहिर किया है, पर वियतनाम, ब्राजील जैसे देशाें के सामने यह प्रदर्शन कमजोर है.


हर साल बजट में पढ़ने को मिलता है कि इतने लाख करोड़ का नया सरकारी निवेश होगा, पर सच यह है कि जीडीपी अनुपात में निवेश 2011-12 से लगातार गिर रहा है. 2011-12 में यह अनुपात 31.8 फीसदी था, जो 2016-17 में गिरकर 27.1 फीसदी रह गया. मौजूदा सरकार में बुनियादी ढांचे में सरकारी निवेश में काफी इजाफा हुआ है.
दस फीसदी की आर्थिक वृद्धि पाने के लिए साल दर साल सरकारी निवेश में बढ़ोतरी हुई है. इस वित्त वर्ष में भी तकरीबन एक लाख करोड़ रुपये इस मद में बढ़ाये गये हैं, फिर भी चालू साल में वृद्धि दर 6.5-6.75 फीसदी रह पायेगी. इसकी वजह निजी निवेश का न बढ़ना है.


अब बजट से सबको साधने के लिए वित्त मंत्री अरुण जेटली के सामने विकल्प है कि राजकोषीय घाटे के तयशुदा लक्ष्यों में ढील दी जाये. इसकी वकालत आर्थिक समीक्षा में की गयी है.
इससे आर्थिक वृद्धि दर तेज करने, रोजगार बढ़ाने के लिए एक बड़ी रकम हाथ लग सकती है. तय लक्ष्य के हिसाब से इस बजट में सरकारी घाटा जीडीपी का तीन फीसदी होना चाहिए. सरकारी घाटे को सरकार का साथ चाहिए, तभी सबका साथ सबका विकास हो पायेगा. अन्यथा लोकसभा चुनाव और उससे पहले विधानसभा चुनावों में मोदी सरकार और भाजपा की राजनीतिक मुश्किलें बढ़ सकती हैं.


https://www.prabhatkhabar.com/news/columns/economic-review-budget-glimpse-president-india-economic-growth-economy-notebook-gst/1117938.html


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