Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | इतना काफी नहीं कर्मचारियों के लिए --- वरुण गांधी

इतना काफी नहीं कर्मचारियों के लिए --- वरुण गांधी

Share this article Share this article
published Published on Jul 21, 2016   modified Modified on Jul 21, 2016

कमजोर सेवा और कम उत्पादकता के कारण आम आदमी ही नहीं, निवेशक भी हमारी नौकरशाही की व्यवस्था को लेकर अच्छी राय नहीं रखते। फिर भी, इस सच्चाई को अनदेखा कर दिया जाता है कि सरकारी कर्मचारी, खासतौर से ऊंचे दर्जे के कर्मी, निजी क्षेत्र के कर्मियों के मुकाबले कम वेतन पर काम करने को मजबूर हैं। मसलन, 25 साल का अनुभव रखने वाले सरकारी डॉक्टर को औसतन 2.1 से 2.8 लाख रुपये प्रति महीना मिलता है, जबकि निजी क्षेत्र में 15 वर्ष का अनुभव रखने वाला डॉक्टर भी इससे दोगुना कमा लेता है।

इसी तरह, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) के अध्यक्ष की आमदनी सालाना 31 लाख रुपये है, जबकि आदित्य पुरी (एचडीएफसी बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर) 9.73 करोड़ रुपये सालाना कमाते हैं। दिलचस्प यह भी है कि एसबीआई के पास 20 लाख करोड़ रुपये से अधिक संपत्ति है, जबकि एचडीएफसी के पास सात लाख करोड़ रुपये की। वेतन-वृद्धि में इसी ठहराव के कारण समूह-सी के कर्मियों की मासिक आय दस वर्षों में 10,000 से बढ़कर महज 25,700 तक ही आ पाई है। विडंबना यह है कि तब भी हम यही उम्मीद पालते हैं कि सरकारी कर्मी अपनी उत्कृष्ट सेवा दें, मगर उस अनुपात में उन्हें वेतन देना गवारा नहीं।

बेशक इससे इनकार नहीं कि वेतन से इतर दूसरे तमाम लाभ आज भी सरकारी क्षेत्र में कायम हैं, मगर सच यह भी है कि यहां प्रदर्शन के आधार पर सालाना वेतन में वृद्धि नहीं होती। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को दरकिनार कर दें, तो सालाना वेतन-वृद्धि आज भी तीन फीसदी है। महंगाई भत्ता को जोड़ने पर यह आठ फीसदी के आसपास बनती है। सातवें वेतन आयोग ने सिफारिश की है कि उन कर्मियों को सेवा से हटा दिया जाए, जो 20 वर्षों से बेहतर नहीं कर पा रहे हैं। यानी, हम आज भी औसत दर्जे के कर्मचारी या बेहतर प्रदर्शन न करने वाले कर्मियों को उनकी योग्यता से अधिक वेतन देते हैं, जबकि बेहतर प्रदर्शन करने वालों के वेतन में बहुत मामूली वृद्धि करते हैं। यहां उनका अच्छे तरीके से काम करना शायद ही मायने रखता है।

इसकी तुलना में दूसरे देशों में एक अलग तरह का ढांचा काम करता है। जैसे कि सिंगापुर की सरकार हर साल यूनिवर्सिटी बोर्ड में शीर्ष स्थान पाने वाले छात्रों को छात्रवृत्ति देती है। जब ये छात्र पढ़ाई पूरी करके लौटते हैं, तो प्रतिष्ठित प्रशासनिक सेवा के लिए उनका मूल्यांकन किया जाता है, और इनमें से जो श्रेष्ठ होते हैं, वे स्थायी सचिव बनते हैं या फिर आगे जाकर सरकार में मंत्री पद संभालते हैं। हर साल ऐसे अधिकारियों को उनके प्रदर्शन के आधार पर आंका जाता है और अच्छी-खासी तादाद में उन्हें सेवानिवृत्ति भी दी जाती है, ताकि नए अधिकारियों के लिए जगह बन सके।

दरअसल, हमारे यहां सरकारी कर्मियों के लिए जो अप्रेजल सिस्टम (मूल्यांकन प्रणाली) है, उसकी अपनी सीमाएं हैं। अव्वल तो उसमें लक्ष्य व्यापक नहीं होता, और फिर उन लक्ष्यों को पाने के लिए किए गए सफल प्रयासों का बेहतर मूल्यांकन भी नहीं होता। यह आज भी किसी अबूझ पहेली से कम नहीं कि किसी सिविल सेवक के लिए बेहतर प्रदर्शन और उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन की क्या परिभाषा है, जबकि वरिष्ठ अधिकारियों और राजनेताओं के दबाव में आसानी से भेदभाव किया जा सकता है या अस्पष्ट प्रदर्शन मानकों का फायदा उठाया जा सकता है।

इतना ही नहीं, सिविल सेवकों को वार्षिक कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट भी नहीं बताई जाती, नतीजतन वे अपने प्रदर्शन को नहीं परख पाते। उन्हें यह पता ही नहीं होता कि उनका मौजूदा प्रदर्शन किस स्तर का है? लिहाजा रेटिंग और राजनीति से प्रेरित मूल्यांकन की बजाय हमें अपना ध्यान उनकी प्रदर्शन-योजना, रोजाना की समीक्षा और बेहतर प्रदर्शन में कारगर एक कोचिंग सिस्टम बनाने पर होना चाहिए। अप्रेजल-रिपोर्ट की प्रकृति सलाह देने वाली होनी चाहिए, जिसमें पर्याप्त पारदर्शिता हो। विस्तृत कार्य-योजना और काम-काज की छमाही समीक्षा जैसी चीजों के लिए हमें अब अभ्यस्त हो जाना चाहिए।

दिक्कत उस तंत्र में भी है, जो सरकारी कर्मियों की वेतन-वृद्धि जैसी चीजें तय करती हैं। इससे मुश्किलें बढ़ जाती हैं। मसलन, काफी वक्त बाद आए सातवें वेतन आयोग ने वेतन में 23.5 फीसदी की वृद्धि की है। इस बढ़ोतरी का व्यापक आर्थिक प्रभाव पड़ेगा। अनुमान है कि यह वित्तीय वर्ष 2017 में 2.5 लाख करोड़ का अतिरिक्त बोझ बढ़ाएगा। इस तरह की वृद्धि कुछ वर्षों तक सरकार की वित्तीय सेहत बिगाड़ सकती है। छठे वेतन आयोग के बाद ही वेतन, भत्ते व पेंशन जैसे मदों में सरकार का खर्च बढ़कर 2009-10 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2.3 फीसदी हो गया था, जो 2001-02 में 1.9 फीसदी था। राज्यों के लिए यह बढ़ोतरी कहीं ज्यादा मुश्किलें खड़ी कर सकती है। साल 2012-13 में राजस्व व्यय में वेतन व भत्ते के मद में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 13 फीसदी थी, जबकि राज्यों का अनुपात 29 फीसदी से लेकर 79 फीसदी तक था। इसके अलावा, सभी असैन्य कर्मचारियों में वन रैंक-वन पेंशन की संभावित वृद्धि भी पेंशन मद में बोझ बढ़ा सकती है। लिहाजा जरूरी यह है कि निजी क्षेत्रों की तरह सरकारी क्षेत्र में भी वेतन-वृद्धि की एक नियमित क्रमवार प्रक्रिया अपनाई जाए। यह कहीं ज्यादा स्थायी विकल्प होगा। दस वर्षों पर आने वाले वेतन आयोग का अब हम और कितना ‘इंतजार' करें?

हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सरकारी क्षेत्र में योग्य लोग आएं। आकार घटाने की बजाय सही आकार की सरकार जरूरी है। अमेरिका में प्रति लाख नागरिकों पर 668 कर्मचारी हैं, जबकि हमारे देश में महज 139 हैं। 18 फीसदी जगहें खाली हैं यहां। इतना ही नहीं, यहां प्रति लाख नागरिकों पर जजों की संख्या सिर्फ 1.2 है। भारत जितना बड़ा देश है, उस हिसाब से हमें अपनी सार्वजनिक सेवाओं के लिए अधिक से अधिक डॉक्टर, शिक्षक, इंजीनियर की जरूरत है, जबकि डाटा इंट्री क्लर्क हमें कम चाहिए। इस दिशा में, प्रशासनिक सुधार आयोग जिन सुधारों की वकालत करता है, उसे अपनाना हमारा पहला कदम होना चाहिए। यही उचित वक्त है कि हम ऐसे प्रभावी सिविल सेवकों का सृजन करें, जो आज की हमारी जरूरतें पूरी करें। जो भ्रष्टाचार मुक्त सेवा दे सकें, आधुनिक अर्थव्यवस्था चला सकें और सार्वजनिक सेवाओं का बेहतर संचालन भी कर सकें। कर्मियों की उत्पादकता को बनाए रखने के लिए नियमित अंतराल पर उनके कामों का मूल्यांकन जरूरी है। इसमें उनकी दक्षता, समयावधि, लोगों को संतुष्ट करने की उनकी क्षमता और कम लागत में बेहतर नतीजे देने में उनकी प्रभावी भूमिका जैसे आधार बनाए जाने चाहिए। उचित मूल्य पर बेहतर सार्वजनिक सेवा हमारी संस्कृति में रच-बस जानी चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)


http://www.livehindustan.com/news/guestcolumn/article1-public-employee-salaries-seventh-pay-commission-recommendation-546041.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close