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न्यूज क्लिपिंग्स् | इतने सारे लोग आखिर वोट क्यों नहीं देते- पंकज चतुर्वेदी

इतने सारे लोग आखिर वोट क्यों नहीं देते- पंकज चतुर्वेदी

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published Published on Mar 19, 2014   modified Modified on Mar 19, 2014
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में 16वीं लोकसभा चुनने का उत्सव शुरू हो चुका है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए चुनावी प्रक्रिया में कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या हमारी सरकार वास्तव में जनता के बहुमत की सरकार होती है। यह लोकतंत्र के मूल सिद्धांत पर व्यंग्य ही है कि केंद्र की सरकार आम तौर पर कुल आबादी के 14-15 फीसदी लोगों के समर्थन की ही सरकार होती है। जब से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल शुरू हुआ है, तब से फर्जी मतदान का आंकड़ा भी घटा है।

15वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में 58.73 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट दिया था। उसमें से भी सत्तारूढ़ कांग्रेस को 37.22 फीसदी वोट ही मिले थे, जो कुल मतदाताओं का तीस प्रतिशत भी नहीं था। उससे पहले के लोकसभा चुनाव में कुल मतदान 57.65 फीसदी था और उसमें से सत्ताधारी कांग्रेस को 35 फीसदी वोट ही मिले थे। 1984 के लोकसभा चुनाव में 63.56 प्रतिशत मतदान हुआ था, जो अब तक का सर्वाधिक है। वह चुनाव इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुआ था। उसके बाद 1989 में 61.95 प्रतिशत वोटिंग हुई थी, जब सत्ता में भ्रष्टाचार को लेकर विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मुहिम छेड़ रखी थी। इससे पहले 1977 में भी आपातकाल के विरोध में 60 फीसदी से अधिक लोगों ने वोट डाले थे। साफ है कि जनता कई बार अपने मताधिकार के इस्तेमाल के प्रति सक्रिय हो जाती है। पर मूल सवाल यह है कि इतने सारे लोग वोट क्यों नहीं डालते। राजधानी दिल्ली का दक्षिणी इलाका सर्वाधिक पढ़ा-लिखा, संपन्न और जागरूक है, जहां पिछले तीन लोकसभा चुनावों के दौरान 35 से 40 फीसदी मतदान हुआ। इस दौरान देश के पहले पूर्ण साक्षर जिले एर्नाकुलम में मतदान का प्रतिशत लगभग 46 था। पढ़े-लिखे लोगों में वोट डालने के प्रति लापरवाही का मूल कारण राजनीतिक पार्टियों का रवैया ही है, जो चुनाव को सत्ता में आने का अवसर ही ज्यादा मानती हैं। ऐसे में अनेक मतदाता वोट देने नहीं जाते।

मतदाताओं की बढ़ती संख्या के अनुरूप मतदाता केंद्रों की संख्या नहीं बढ़ी है। मतदाता सूची में नाम जुड़वाना जटिल है और उससे भी कठिन है मतदाता पहचान पत्र पाना। उसके बाद मतदान से पहले अपने नाम की पर्ची जुटाओ, फिर उसे मतदान केंद्र में बैठे एक कर्मचारी को देकर एक कागज पर दस्तखत करो या अंगूठा लगाओ। फिर एक कर्मचारी आपकी उंगली पर स्याही लगाएगा। एक अफसर मशीन शुरू करेगा, फिर आप बटन दबाकर वोट डालेंगे। एक मतदाता को वोट देने में दो मिनट का समय लगे, तो एक घंटे में अधिकतम 30 मतदाता ही वोट दे पाते हैं।

देश में 40 फीसदी से अधिक लोग रोज कमाकर खाने वाले हैं। यदि वे वोट डालने के लिए कतार में लगेंगे, तो उनकी दिहाड़ी मारी जाएगी। एक कारण बड़ी संख्या में महिलाओं का घर से न निकलना भी है। जेल में बंद विचाराधीन कैदियों, अस्पताल में भर्ती मरीजों व उनकी देखभाल में लगे लोगों, चुनाव व्यवस्था में लगे कर्मचारियों, सफर कर रहे लोगों, सुरक्षा कर्मियों व सीमा पर तैनात जवानों के लिए मतदान की माकूल व्यवस्था नहीं है। डाक से मतदान की प्रक्रिया इतनी गूढ़ है कि कम लोग ही इसका लाभ उठा पाते हैं। कुछ वर्ष पहले चुनाव आयोग ने प्रतिपत्र मतदान का प्रस्ताव रखा था, जिसके तहत मतदाता अपने किसी प्रतिनिधि को वोटिंग के लिए अधिकृत कर सकता है। पर यह अभी तक सुझाव ही है।

हमारे यहां राजनीतिक दल भी नहीं चाहते कि मतदान अधिक हो, क्योंकि वैसे में उनके सीमित वोट बैंक के अल्पमत होने का खतरा बढ़ जाता है। पर आदर्श लोकतंत्र का पैमाना तो यही है कि ज्यादातर लोग मताधिकार का प्रयोग करें।

http://www.amarujala.com/news/samachar/reflections/columns/why-not-public-give-their-vote/


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