Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | ऊर्जा संरक्षण के साथ करोड़ों लोगों के घरों का अंधेरा दूर कर सकती है एलइडी टेक्नोलॉजी- कन्हैया झा

ऊर्जा संरक्षण के साथ करोड़ों लोगों के घरों का अंधेरा दूर कर सकती है एलइडी टेक्नोलॉजी- कन्हैया झा

Share this article Share this article
published Published on Oct 13, 2014   modified Modified on Oct 13, 2014
नयी दिल्ली: स्वीडन की शाही विज्ञान अकादमी की नोबेल पुरस्कार समिति ने भौतिकी के क्षेत्र में वर्ष 2014 का नोबेल पुरस्कार दो जापानी वैज्ञानिकों प्रोफेसर इसामू अकासाका, हिरोशी अमानो और एक अमेरिकी वैज्ञानिक शुजी नाकामुरा को देने की घोषणा की है. इन तीनों वैज्ञानिकों को यह पुरस्कार ब्लू लाइट एमिटिंग डायोड (एलइडी) का आविष्कार करने के लिए दिया जायेगा. एलइडीबिजली की खपत कम करने में सक्षम होने के साथ-साथ रोशनी का पर्यावरण के अनुकूल स्नेत भी है. इन वैज्ञानिकों में 85 वर्षीय अकासाकी मेइजो यूनिवर्सिटी के साथ-साथ नागोया यूनिवर्सिटी से जुड़े जाने-माने प्रोफेसर हैं. 54 वर्षीय हिरोशी अमानो भी नागोया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं, जबकि 60 वर्षीय नाकामुरा अमेरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, सैंटा बारबरा में प्रोफेसर हैं.

सेमीकंडक्टर से तेज नीला प्रकाश

नोबेल पुरस्कार समिति ने कहा कि दुनिया में बिजली की जितनी खपत होती है, उसका एक चौथाई रोशनी करने के लिए खर्च होता है. एलइडी बल्ब के आविष्कार से अब हमारे पास रोशनी पैदा करने के पुराने स्नेतों के मुकाबले ज्यादा टिकाऊ तथा ऊर्जा की अधिक बचत करनेवाला विकल्प है. साथ ही धरती पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों को बचाने में एलइडीका उल्लेखनीय योगदान देखने में आया है. भविष्य में हम इन स्नेतों को पर्यावरण के और अनुकूल बनाने में कामयाब होंगे.

इन तीनों वैज्ञानिकों ने 1990 के दशक में सेमीकंडक्टर से तेज नीला प्रकाश पैदा कर प्रकाश तकनीक का रूपांतरण कर दिया. इस दिशा में कई अन्य वैज्ञानिकों ने भी दशकों तक संघर्ष किया था. नोबेल पुरस्कार समिति ने कहा कि नीले प्रकाश का इस्तेमाल करते हुए सफेद प्रकाश का उत्सर्जन करनेवाले एलइडी लैंप का नये तरीके से निर्माण किया जा सकता है.

दरअसल, प्रोफेसर इसामु अकासाकी, हिरोशी अमानो और शुजी नाकामुरा ने वर्ष 1994 में पहली नीली एलइडीलाइट्स का आविष्कार किया था. हालांकि, लाल और हरी एलइडीलाइट्स पहले से मौजूद थीं, लेकिन वैज्ञानिकों और इंडस्ट्री के लोगों के लिए नीली एलइडीबनाना सबसे बड़ी चुनौती थी. मौजूदा लाल और हरी एलइडी लाइट्स के साथ नीली लाइट्स के संयोग से कम ऊर्जा खपतवाले लैंप का बनना मुमकिन हुआ है.

क्या है एलइडी टेक्नोलॉजी

लाइट एमिटिंग डाओड यानी एलइडीएक सेमीकंडक्टर डायोड (ऊर्जा स्रोत) है, जो वोल्टेज प्रवाहित करने पर चमकता है यानी रोशनी पैदा करता है. अनेक इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों समेत नये प्रकार की लाइटों और डिजिटल टेलीविजन मॉनीटरों में इसका इस्तेमाल किया जाता है. दरअसल, इसमें मौजूद लेड पर जब वोल्टेज का प्रवाह होता है तो इसके इलेक्ट्रॉन छिद्रों के भीतर के इलेक्ट्रॉन सक्रिय हो उठते हैं और फोटोन के रूप में ऊर्जा फैलाते हैं. इस प्रभाव को इलेक्ट्रोल्युमिनेसेंस कहा जाता है और इस लाइट का कलर (फोटोन ऊर्जा के मुताबिक) सेमीकंडक्टर के एनर्जी बैंड गैप द्वारा निर्धारित किया जाता है. सामान्य तौर पर एक एलइडी एक छोटे क्षेत्र में कार्य करता है और ऑप्टिल घटकों के रूप में एकीकृत होता है.

ऊर्जा खपत कम, रोशनी ज्यादा

इसकी कार्यप्रणाली को जानने से पहले हम यह जानेंगे कि लाइट एमिटिंग डायोड के मुकाबले पुराने किस्म के अत्यधिक चमकनेवाले बल्ब कैसे काम करते हैं. अत्यधिक चमकनेवाले बल्ब में विद्युत धारा का प्रवाह होने पर उसके भीतर का फिलामेंट जलने लगता है, जिससे हमें वह बल्ब प्रकाशित होते हुए दिखाई देता है. जैसे-जैसे बल्ब का फिलामेंट जलता है, वैसे-वैसे रोशनी फैलती है. हालांकि, इस बल्ब में रोशनी पैदा करने की प्रक्रिया में तकरीबन 95 फीसदी ऊर्जा की खपत केवल उसमें गरमी पैदा करने में ही खर्च हो जाती है और रोशनी फैलाने के लिए महज पांच फीसदी ऊर्जा ही उपयोग में आ पाती है. इस कारण अधिकांश बिजली का नुकसान होता है.

एलइडी अब लाइटिंग टेक्नोलॉजी के नये परिवार का हिस्सा है, जो एक अच्छी तरह से डिजाइन किया गया बेहद उपयोगी उत्पाद है. साथ ही इसकी ऊर्जा से ज्यादा गरमी नहीं पैदा होती, जो इसकी एक अन्य खासियत है. एक लाइट बल्ब के मुकाबले एलइडी लैंप से कई गुना ज्यादा रोशनी हासिल की जा सकती है.

एलइडी में कोई फिलामेंट नहीं होता, बल्कि आम तौर पर एल्युमिनियम- गैलियम- आर्सेनिक जैसे तत्वों के सेमीकंडक्टर में इलेक्ट्रॉन्स की हलचल होने पर डायोड के भीतर से इसमें चमक पैदा होती है.

सिलिकॉन कारबाइड से खोज

एलइडी टेक्नोलॉजी की खोज जिस प्राकृतिक परिघटना की बाद की गयी, उसे इलेक्ट्रोल्युनिनेसेंस कहा जाता है. एक ब्रिटिश रेडियो रिसर्चर और मारकोनी के असिस्टेंट हेनरी जोसेफ राउंड ने वर्ष 1907 में सिलिकॉन कारबाइड पर एक परीक्षण के दौरान इसकी खोज की थी. उसके बाद निरंतर इस पर शोधकार्य जारी रहा और एक रूसी शोधकर्ता ने इस डायोड को रेडियो सेट में इस्तेमाल किया. वर्ष 1961 में रॉबर्ट बेयर्ड और गैरी पिटमैन ने टेक्सास उपकरणों के लिए इंफ्रारेड एलइडीका आविष्कार किया और उसका पेटेंट करवाया. हालांकि, बतौर इंफ्रारेड यह विजिबल लाइट स्पेक्ट्रम से आगे की चीज थी. मानवीय आंखों से इंफ्रारेड लाइट को नहीं देखा जा सकता है. लेकिन विडंबनात्मक रूप से बेयर्ड और पिटमैन इस मामले में कुछ हद तक इसलिए कामयाब हो पाये, क्योंकि जब उन्होंने लाइट एमिटिंग डायोड की खोज की उस दौरान वे लेजर डायोड की खोज में जुटे थे.

इंडिकेटर से उपयोग शुरू

जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी के कंसल्ंिटग इंजीनियर निक होलोनेक ने वर्ष 1962 में पहली बार विजिबल लाइट एलइडीका आविष्कार किया. वह लाल एलइडी था और होलोनेक ने डायोड के सब्स्ट्रेट के तौर पर गैलियम आर्सेनाइड फॉसफाइड का इस्तेमाल किया था. इस तकनीक के विकास में होलोनेक के योगदान को देखते हुए उन्हें ‘लाइट एमिटिंग डायोड का जनक' कहा जाता है.

वर्ष 1972 में मोनसेंटो कंपनी से जुड़े इलेक्ट्रिकल इंजीनियर एम जॉर्ज क्रेफोर्ड ने डायोड में गैलियम आर्सेनाइड फॉसफाइड का इस्तेमाल करते हुए पहली बार पीले रंग के एलइडी का आविष्कार किया. बाद में उन्होंने लाल रंग के एलइडीका भी आविष्कार किया, जो होलोनेक द्वारा इजाद की गयी एलइडीके मुकाबले 10 गुना ज्यादा चमक बिखेरने में सक्षम था. यहां एक तथ्य उल्लेखनीय है कि मोनसेंटो कंपनी ने ही इसे पहली बार आम लोगों को मुहैया कराया था. 1968 में ही मोनसेंटो ने इंडिकेटर के निर्माण में एलइडीका उपयोग शुरू कर दिया था. लेकिन इसे लोकप्रियता 1970 के बाद मिली, जब फेयरचाइल्ड ऑप्टे-इलेक्ट्रॉनिक्स ने कम लागत पर इसका निर्माण शुरू किया.

1976 में थॉमस पी पियरसेल ने अत्यधिक क्षमता वाले एलइडीका आविष्कार किया, जिसका इस्तेमाल फाइबर ऑप्टिक्स और फाइबर टेलीकम्युनिकेशन में किया गया. 1994 में शूजी नाकामुरा ने गैलियम नाइट्राइड के इस्तेमाल से पहली बार नीले (ब्लू) रंग के एलइडीका आविष्कार किया. उसके बाद से देश-दुनिया में निरंतर इसका इस्तेमाल बढ़ता ही जा रहा है.

मिट्टी के तेल से सौ गुना सस्ता

मदरबोर्ड डॉट वाइस डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में करोड़ों लोग रात में अंधेरे में जीवन गुजारने के लिए मजबूर हैं यानी उनके घरों तक बिजली नहीं पहुंच पायी है. इन घरों में मिट्टी तेल या अन्य बायोमास आधारित ऊर्जा स्नेतों से रात में रोशनी की जाती है. इससे पर्यावरण में व्यापक मात्र में कार्बन का उत्सजर्न होता है. परिणामस्वरूप आंतरिक वायु प्रदूषण और उससे संबंधित खतरनाक कारकों की वजह से दुनियाभर में 35 से 43 लाख लोगों की असमय मौत हो जाती है. लेकिन एलइडी के आविष्कार ने बेहद कम खर्च में दुनिया को सतत विकास के पथ पर अग्रसर करते हुए पर्यावरण के अनुकूल विकास का एक नया मॉडल मुहैया कराया है.

दुनियाभर में कम ऊर्जा खपत में ज्यादा रोशनी मुहैया कराने के लिए मुहिम चलानेवाले एवं लुमिना प्रोजेक्ट के संस्थापक डॉ एवान मिल्स के हवाले से इस रिपोर्ट में बताया गया है कि करीब 17 वर्ष पूर्व जब इस अभियान की शुरुआत की गयी थी, तो इसके लिए व्यापक पैमाने पर फ्लोरेसेंट बल्बों की जरूरत बतायी गयी थी, जिससे ऊर्जा की बचत होती है. लेकिन एलइडी उससे भी काफी आगे निकल चुका है और मिट्टी तेल के एक लैंप से जितनी रोशनी हासिल की जा सकती है, उससे सौ गुना कम खर्च पर एलइडी से रोशनी हासिल की जा सकती है. इतना ही नहीं, पारंपरिक बल्बों के मुकाबले यह 30 गुना ज्यादा टिकाऊ भी है. उधर, ‘नेशनल जियोग्राफिक' के मुताबिक, एक सामान्य एलइडी बल्ब को यदि रोजाना चार घंटे जलाया जाये, तो यह 17 वर्षो तक काम में लायी जा सकती है.

 

खासियत और खामियां

खासियत

कम दूरी और छोटे दायरे के लिए प्रकाश का ऊर्जा संरक्षण में सक्षम स्रोत.

एक सामान्य एलइडी के संचालन के लिए 30-60 मिलीवाट की ही जरूरत पड़ती है.

ग्लास बल्ब लैंप के मुकाबले ज्यादा शॉकप्रूफ (वॉल्टेज में उतार-चढ़ाव होने से पैदा होनेवाले झटके को सहने में सक्षम) और टिकाऊ है.

स्ट्रीट लाइट्स से पैदा होनेवाले खास किस्म के प्रदूषण को कम करने में सक्षम.

खामियां

सरदी और गरमी में तापमान में विविधता को ङोलने में यह अभी पूरी तरह सक्षम नहीं हो पाया है. इसलिए इस संबंध में पैदा होनेवाली समस्याओं का समाधान करना होगा.

इसके सेमीकंडक्टर्स हीट के प्रति संवेदी हैं और ये क्षतिग्रस्त हो सकते हैं. इन्हें बचाने के लिए कई बार पंखों की जरूरत पड़ती है.

इसमें कुछ खास तत्वों का इस्तेमाल किया जाता है, जिनका उत्पादन कुछ निश्चित देशों में ही होता है. ऐसे में इन देशों का एकाधिकार कायम हो सकता है.

(स्रोत : एडीसनटीचसेंटर डॉट ओआरजी)


http://www.prabhatkhabar.com/news/vishesh-aalekh/story/153868.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close