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न्यूज क्लिपिंग्स् | एनजेएसी पर सरकार-न्यायपालिका आमने-सामने

एनजेएसी पर सरकार-न्यायपालिका आमने-सामने

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published Published on May 7, 2015   modified Modified on May 7, 2015
उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति की नई प्रणाली एनजेएसी की संवैधानिक वैधता की सुनवाई के दौरान न्यायपालिका और सरकार सुप्रीम कोर्ट में आमने-सामने आ गई। सरकार ने कोलेजियम को अपारदर्शी और ऐसे लोगों को जज बनाने की सिफारिशें करने वाला तंत्र बताया, जो भ्रष्टाचार में और कदाचार लिप्त थे।

केंद्र सरकार ने कहा कि कोलेजियम ने 59 वर्षीय एक महिला वकील को कोलकाता हाईकोर्ट का जज बनवाया, क्योंकि वह तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) की निकट संबंधी थीं। बाद में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने रिटायर होने पर बताया था कि उनके विरोध के कारण सीजेआई ने उन्हें सुप्रीम कोर्ट में प्रमोट नहीं होने दिया। इसी प्रकार जस्टिस पीडी दिनाकरन को सुप्रीम कोर्ट में जज बनाने की सिफारिश की गई, जबकि उनके खिलाफ सरकारी भूमि पर कब्जा करने का आरोप था। वहीं, जजों के स्थानांतरण किस आधार पर और क्यों होते हैं, यह भी नहीं पता लगता।

जस्टिस जेएस खेहर ही अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह कौन सी न्यायिक स्वतंत्रता है कि कोई आपके कार्यों पर सवाल नहीं उठा सकता। आप आरटीआई को भी नहीं मानते, जबकि यह संविधान का बुनियादी ढांचा है। हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश किस आधार पर जजशिप के लिए नामों की सिफारिश करते हैं, इसके क्या नियम हैं, यह किसी को नहीं पता।

मुकुल रोहतगी ने कहा कि कोलेजियम प्रणाली के मूल नौ जजों के फैसले में सीजेआई को सर्वोच्च बना दिया, जबकि संविधान के अनुच्छेद 124 में यह कहीं नहीं हैं। उन्होंने कहा कि इस फैसले में सिर्फ नियुक्तियों पर नियंत्रण को ही न्यायपालिका की आजादी मान लिया गया, जबकि संविधान के निर्माताओं ने ऐसा सोचा भी नहीं था। वहीं, सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों को न्यायपालिका की आजादी का प्रतीक बना दिया गया। पांच भी क्यों, इसमें सिर्फ तीन जज ही सर्वोच्च हैं, क्योंकि वे बहुमत से फैसला करते हैं। क्या यह न्यायिक स्वतंत्रता है। क्या सुप्रीम कोर्ट के अन्य 27 जज तथा तमाम हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश इन तीन जजों के अधीन हैं?

रोहतगी ने कहा कि कैग (महालेखा परीक्षक), लोकसभा के महासचिव और मुख्य निर्वाचन आयुक्त जैसे संवैधानिक पदों पर नियुक्तियां सरकार करती है, जबकि ये संस्थाएं स्वायत्त हैं। इन्हें भी जजों की तरह संसद में महाभियोग के जरिये पद से हटाया जा सकता है। चुनाव आयोग पूरे देश में निष्पक्ष चुनाव करवाता है। वहीं, सीएजी सरकार के कार्यों की कड़ी समीक्षा करता है, लेकिन इसमें कभी यह सवाल नहीं उठा कि सरकार ने उनके कार्यों में हस्तक्षेप किया हो। उन्होंने कहा, आजादी नियुक्ति के बाद शुरू होती है, पहले नहीं।

सरकार ने कहा कि बेहतर होगा कि संविधान पीठ इस मसले को 11 जजों की पीठ को भेजे, क्योंकि एनजेएसी नौ जजों की पीठ की व्यवस्था को उलटता है। सुनवाई गुरुवार को जारी रहेगी।

प्रमुख हस्तियां :
सरकार ने एनजेएसी में दो प्रमुख हस्तियों पर आपत्तियों को भी बेबुनियाद बताया। रोहतगी ने बताया कि संविधान के निर्माण के लिए प्रारूप समितियां बनाई गई थीं, जिनके सदस्य समाज के सभी वर्गों से थे। इनमें उद्योगपति, लेखक, चिंतक, जनप्रतिनिधि आदि थे। इन लोगों ने हमें दुनिया का सर्वोत्तम संविधान दिया। यदि संविधान बनाने वाले ये लोग हो सकते हैं, तो एनजेएसी में दो प्रमुख व्यक्ति गैर न्यायिक क्यों नही हो सकते।


www.livehindustan.com/news/national/article1-supreme-court-judiciary-government-479259.html


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