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न्यूज क्लिपिंग्स् | "कृषि विधेयकों से किसानी पर हो जाएगा कॉरपोरेटों का कब्जा," पंजाब के आंदोलनरत किसान

"कृषि विधेयकों से किसानी पर हो जाएगा कॉरपोरेटों का कब्जा," पंजाब के आंदोलनरत किसान

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published Published on Sep 24, 2020   modified Modified on Sep 24, 2020

-कारवां,

14 सितंबर को जब पंजाब और हरियाणा में किसान संगठन विरोध कर रहे थे केंद्र सरकार ने संसद में कृषि से संबंधित तीन विधेयक पेश किए. इन विधेयकों ने जून में घोषित किए गए तीन अध्यादेशों, किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश (2020), किसानों के (सशक्तिकरण और संरक्षण) के लिए मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा समझौता अध्यादेश (2020) और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश (2020) को प्रतिस्थापित कर दिया. (उस स्थिति में जब संसद सत्र नहीं चल रहा हो तो राष्ट्रपति द्वारा जारी किए जा सकने वाले अस्थायी कानूनों को अध्यादेश कहते हैं.) संसद सत्र शुरू होने के छह सप्ताह के भीतर इन्हें अनुमोदित किया जाना चाहिए. लोक सभा के मानसून सत्र में पहले दो विधेयक 17 सितंबर को और तीसरा 15 सितंबर को पारित हो गया थी. 20 सितंबर को राज्य सभा में भारी हंगामें के बीच इनमें से दो ध्वनिमत से पारित हो गए.

पंजाब भर के किसान तीन महीने से भी ज्यादा समय से इन अध्यादेशों का विरोध कर रहे हैं. संसद के दुबारा शुरू होने के बाद से उनका विरोध तेज हो गया है. 14 सितंबर को लगभग एक दर्जन यूनियनों से जुड़े किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया और पंजाब में राजमार्गों पर यातायात रोक दिया. बिलों के पारित होने के बाद पंजाब के किसान संगठन किसान मजदूर संघर्ष समिति ने 24 से 26 सितंबर तक "रेल रोको" विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है. राज्य के अन्य किसान समूहों ने कृषि से संबंधित इन विधेयकों के विरोध में 25 सितंबर को भारत बंद का आह्वान किया है.

विधेयक के तौर पर आए ये अध्यादेश कृषि उपज को बेचने के तरीके में बदलाव लाते हैं. वर्तमान में किसान अपनी उपज को सरकारी मंडियों या बाजार यार्डों में बेचते हैं जो कृषि उपज बाजार समिति या एपीएमसी अधिनियम के तहत काम करते हैं. सरकारी खरीद एजेंसियां न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गेहूं और धान खरीदने के लिए बाध्य हैं. ये एजेंसियां राज्य सरकार को बाजार और ग्रामीण विकास शुल्क के साथ-साथ किसानों से उपज लेने और साफ करने वाले कमीशन एजेंटों को शुल्क का भुगतान करती हैं. निजी व्यापारी भी मंडियों में फसल खरीद सकते हैं. वर्तमान में कम से कम 22 फसलों के लिए एक निश्चित एमएसपी है. एमएसपी किसानों को बाजार में उतार-चढ़ाव से बचाने के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली सहूलियत है.

किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, राज्य सरकार द्वारा विनियमित मंडियों के बाहर कृषि उपज को खरीदने और बेचने की अनुमति देता है. यह उन्हें राज्य और अन्य राज्यों में निजी व्यापारियों को कहीं भी अपनी उपज बेचने की अनुमति देता है. लेकिन किसान इस विधेयक का विरोध इसलिए कर रहे हैं कि यह वर्तमान व्यवस्था को निजी हाथों में सौंप देगा, फसल की कीमतों को गिरा देगा और एमएसपी व्यवस्था का खात्मा कर सकता है.

किसानों के (सशक्तिकरण और संरक्षण) के लिए मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा समझौता विधेयक, 2020, बड़े व्यवसायों को अनुबंध पर भूमि पर खेती करने की अनुमति देता है. तीसरा विधेयक आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 खाद्य पदार्थों के स्टॉक पर मौजूदा प्रतिबंधों को हटाता है. यह केंद्र सरकार को कुछ विशेष खाद्य पदार्थों की आपूर्ति को केवल असाधारण परिस्थितियों, जैसे युद्ध, अकाल, असाधारण मूल्य वृद्धि या प्राकृतिक आपदा के तहत विनियमित करने की अनुमति देता है.


28 अगस्त को पंजाब विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित कर तीनों अध्यादेशों को खारिज कर दिया और केंद्र सरकार से उन्हें वापस लेने का आग्रह किया. पंजाब के सख्त विरोध को व्यक्त करने के लिए संसद के दोनों सदनों में प्रस्ताव भेजा गया था. अध्यादेशों को “किसान विरोधी” बताते हुए, मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने अन्य कृषि आधारित राज्यों से अपील की कि वे पार्टी लाइन से ऊपर उठकर अध्यादेशों का विरोध करें. उन्होंने कहा कि अध्यादेश पांच एकड़ से कम जमीन पर खेती करने वाले पंजाब के 70 प्रतिशत किसानों को बर्बाद कर देगा.

इससे पहले सिंह ने 15 जून को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को किसानों के हित में और "सहकारी संघवाद" की भावना से इन अध्यादेशों की समीक्षा करने और पुनर्विचार करने के लिए लिखा था. उन्होंने कहा कि भारतीय खाद्य निगम द्वारा एमएसपी में कृषि उपज की सुनिश्चित खरीद ने पंजाब में बफर फूड स्टॉक बनाने और देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्होंने कहा कि वर्तमान एपीएमसी प्रणाली समय की कसौटी पर खरी रही और लाखों किसानों और खेत मजदूरों की आजीविका को सुरक्षित करने में मदद की है.

बिहार ने 2006 में एपीएमसी एक्ट को हटा दिया था. 2015-2016 में बिहार में एक कृषि परिवार की औसत 7175 रुपए प्रति माह थी जबकि पंजाब में 23133 रुपए.
सिंह ने कहा कि किसानों के बीच यह आशंका थी कि कृषि उपज के लिए प्रस्तावित बाधा मुक्त राष्ट्रव्यापी बाजार का मतलब व्यापारियों के लिए एक राष्ट्रव्यापी बाजार होगा जो पहले से ही कर्ज में डूबे किसानों के लिए नुकसानदायक है. उन्होंने कहा कि बाजार के अनुकूल होने के इंतजार में लाखों छोटे और सीमांत किसान अपनी उपज को लंबे समय तक नहीं रख पाएंगे. उन्होंने कहा कि किसानों के पास मुक्त बाजार में सबसे अधिक पारिश्रमिक मूल्य पाने के लिए सौदेबाजी की शक्ति नहीं होगी. उन्हें निजी व्यापारियों की दया पर छोड़ दिया जाएगा. सिंह ने आगे लिखा है कि एपीएफसी जो शुल्क और लेवी लगाता है उसका उपयोग ग्रामीण विकास और राज्य के बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए किया जाता है. उन्होंने कहा कि कृषि भारतीय संविधान के तहत राज्य का विषय है.

विधानसभा में 28 अगस्त का प्रस्ताव पेश करते हुए सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार को एमएसपी में कृषि उपज की खरीद को किसानों के वैधानिक अधिकार बनाने के लिए नए सिरे से अध्यादेश लाना चाहिए और भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से सरकारी खरीद जारी रखना सुनिश्चित करना चाहिए.

जुलाई में पंजाब और हरियाणा में हजारों किसानों ने भारतीय किसान यूनियन, पंजाब किसान यूनियन, क्रांतिकारी किसान यूनियन और किसान संघर्ष समिति, पंजाब जैसे विभिन्न किसान संगठनों के बैनर तले इन अध्यादेशों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. किसानों ने एमएसपी प्रणाली के खत्म होने की आशंका जताई.

भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा, "इन अध्यादेशों के जरिए मोदी सरकार व्यापारियों और निगमों को फायदा पहुंचा रही है. सरकार चाहे जो दावे करे लेकिन इनमें से कोई भी अध्यादेश किसी भी तरह से किसानों के हितों में नहीं है. बल्कि वे उनके हितों के लिए हानिकारक साबित होंगे. निस्संदेह वे बड़े निगमों की मदद करेंगे. कॉरपोरेट्स के एकाधिकार के साथ कीमतें आधे तक गिर जाएंगी जो बाजार को भी बुरी तरह प्रभावित करेंगे.” उन्होंने अध्यादेशों को राज्यों के मामलों में अतिक्रमण और देश की संघीय व्यवस्था पर सीधा हमला बताया.

राजेवाल ने कहा, "सभी किसान संगठन इन अध्यादेशों का विरोध कर रहे हैं. केंद्र सरकार पंजाब और हरियाणा में उपलब्ध मौजूदा विपणन ढांचे को बर्बाद करने पर तुली हुई है." उन्होंने यह भी जोर दिया कि राज्य वर्तमान मंडी प्रणाली के माध्यम से एकत्र की गई फीस से वंचित होगा जबकि यह उसकी आय का स्रोत है और इस आय का उपयोग सड़कों का निर्माण और रखरखाव जैसी ग्रामीण परियोजनाओं के लिए किया जाता है. वित्तीय वर्ष 2019-20 में पंजाब ने बाजार और ग्रामीण विकास शुल्क में 3623 करोड़ रुपए एकत्र किए थे. उन्होंने आगे कहा कि एक दोषपूर्ण मंडी प्रणाली का व्यापक प्रभाव लाखों कमीशन एजेंटों, मंडी मजदूरों और परिवहन कर्मचारियों पर पड़ेगा जिनके रोजगार छिन जाएंगे.

राजेवाल की तरह तरनतारन जिले के एक किसान और पट्टी गांव के निवासी अमरजीत सिंह चिंतित थे कि खाद्यान्न की खरीद को सुनिश्चित किया जाएगा और पारंपरिक मंडी प्रणाली को बदलकर किसानों को कॉर्पोरेट खरीदारों की दया पर छोड़ दिया जाएगा.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


जतिंदर कौर तूर, https://hindi.caravanmagazine.in/agriculture/punjab-farmers-protest-farm-bills-hindi


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