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न्यूज क्लिपिंग्स् | कचरा प्रबंधन से ही स्वच्छ होगा भारत

कचरा प्रबंधन से ही स्वच्छ होगा भारत

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published Published on Jun 20, 2015   modified Modified on Jun 20, 2015
सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। झाड़ू उठाने भर से नहीं बल्कि कचरे को ठिकाने लगाने से स्वच्छ भारत का सपना साकार हो सकेगा। शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों से रोजाना निकलने वाले लाखों टन कूड़े का उचित प्रबंधन न होने से कई तरह की मुश्किलें पैदा हो गई हैं। खुले में शौच बंद करने के पुख्ता उपाय और घरों से निकलने वाले कूड़े का निस्तारण प्रशासन के लिए कठिन चुनौती बन गया है। कूड़ा-कचरा प्रबंधन से ही स्वच्छ भारत का लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा।

कचरे की प्रकृति बदलने से मुश्किलें और भी कठिन हुई हैं। ठोस, जैविक, अजैविक और ई-कचरा जैसे वर्गों में बांटे जाने के बाद उन्हें ठिकाने लगाना एक बड़ी चुनौती बन गया है। उन्हें अलग-अलग छांटना, एकत्रित करना और निस्तारण करने के लिए वैज्ञानिक तकनीक का होना जरूरी हो गया है। कस्बों से लेकर महानगरों तक में कूड़ा डंपिंग के लिए जगह की किल्लत पैदा हो गई है। इस दिशा में पहल तो की गई है, लेकिन देशभर में टुकड़े-टुकड़े में चल रहे अभियान से स्वच्छ भारत मिशन में गतिरोध की आशंका है। प्रधानमंत्री ने दो अक्तूबर 2019 तक देश को स्वच्छ बनाने का लक्ष्य तय किया है।

केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने कारपोरेट, औद्योगिक और व्यापारिक क्षेत्र से शहरों से निकलने वाले कूड़ा व कचरा से ऊर्जा, ईंधन, खाद और सीवेज से सिंचाई करने की अपील की है। नायडू ने ठोस कचरा और सीवेज को घटाने, उनकी रिसाइक्लिंग के बाद उपयोग करने पर जोर दिया। सरकार इसके लिए घरेलू और विदेशी कंपनियों को दायित्व सौंपने की तैयारी में है, जो न्यूनतम खर्च में कचरे का प्रबंधन करें।

1.33 लाख टन कचरा

दुनिया की 40 फीसद आबादी 21वीं सदी में भी कूड़े व कचरे में जिंदगी बसर करने को मजबूर है। देश के प्रथम व द्वितीय दर्जे के शहरों से रोजाना 1.33 लाख टन कचरा निकलता है। शहरों के 72 फीसद कचरे का उपयोग गड्ढा भरने और 61 फीसद सीवेज के पानी को बिना साफ किये ही नदियों में बहाया जा रहा है, जो गंभीर चिंता का विषय है। कचरे के उचित प्रबंधन से सालाना 440 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। इसकी खाद से 30 फीसद रासायनिक खादों का उपयोग कम हो सकता है।

खुले में शौच की समस्या

भारत के ग्र्रामीण क्षेत्रों में 60 फीसद से अधिक लोग अभी भी खुले में शौच करते हैं, जिन्हें रोकने के लिए बुनियादी सुविधाओं का विकास करना होगा। शहरी क्षेत्रों में भी 20 फीसद से अधिक लोगों के खुले में शौच का आंकड़ा हमें शर्मसार करने के लिए काफी है। खुले में शौच करने के चलते होने वाली गंदगी से देश में 88 फीसद नौनिहाल दम तोड़ देते हैं।

छह करोड़ शौचालय का लक्ष्य

ग्रामीण क्षेत्रों में कचरे से जहां आसानी से कंपोस्ट खाद बनाई जा रही है। लेकिन खुले में शौच करने वालों पर काबू पाना आसान नहीं है। ग्र्रामीण स्कूलों, आंगनवाड़ी व अन्य सार्वजनिक स्थलों पर शौचालयों का अभाव है। हालांकि अगले चार सालों के भीतर छह करोड़ शौचालय बनाये जाने हैं। इसके लिए हर साल लगभग डेढ़ करोड़ शौचालय बनाये जाने का लक्ष्य है। ग्र्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता अभियान को सफल बनाने के लिए कारपोरेट सेक्टर की मदद से 20 हजार करोड़ रुपये का कोष बनाया गया है।


http://naidunia.jagran.com/state/delhi-ncr-eight-thousand-child-labor-in-factories-in-delhi-392748


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