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न्यूज क्लिपिंग्स् | कब तक गिरेंगे कच्चे तेल के दाम- जॉय नोसेरा

कब तक गिरेंगे कच्चे तेल के दाम- जॉय नोसेरा

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published Published on Dec 26, 2014   modified Modified on Dec 26, 2014
छह वर्ष पहले तेल के मूल्यों में अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव देखा गया था। जनवरी, 2008 में कच्चे तेल की कीमत 90 डॉलर प्रति बैरल थी, जो जुलाई में बढ़कर 147 डॉलर प्रति बैरल हो गई। फिर वर्ष के अंत में यह 35 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई। सऊदी अरब और पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) के अन्य सदस्य तेल की कीमतों में ऐसा उतार-चढ़ाव पसंद नहीं करते। पर 2015 के लिए लगाए गए अनुमान के मुताबिक, यदि तेल की कीमत और भी कम होती है, तो कई तेल निर्यातक देश वित्तीय संकट में फंस जाएंगे, क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्था इसी पर निर्भर करती है। उत्पादक संघ के रूप में ओपेक का लक्ष्य तेल की कीमत, ऊंची कीमत, निर्धारित करना है। लेकिन कीमत बढ़ाने की तुलना में उसे स्थिर रखना भी ज्यादा महत्वपूर्ण लक्ष्य है। उत्पादक संघ की नियंत्रित आपूर्ति के बिना बाजार में तेल की कीमत बहुत ज्यादा अस्थिर हो सकती है।

लेकिन पिछले कुछ महीनों से हम एक नई चीज देख रहे हैं। पिछले छह महीनों में तेल की कीमत 115 डॉलर प्रति बैरल से गिरकर 60 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई है। वर्ष 2008 में जब तेल की कीमत तेजी से चढ़ी थी और फिर जब गिरी थी, तो दोनों ही स्थितियों में सऊदी अरब ने हस्तक्षेप किया था। लेकिन तब ओपेक के बाकी के सदस्य देशों ने सऊदी अरब का साथ नहीं दिया और उसे पता चल गया कि वह अकेले तेल की कीमत नियंत्रित नहीं कर सकता। इस बार ऐसा लगता है कि सऊदी अरब तेल की कीमत बढ़ाने के प्रति दिलचस्पी नहीं ले रहा।

सऊदी अरब के इस बदले रवैये की एक वजह तो यह है कि वहां के नेता अन्य ओपेक देशों (जो अपनी तरफ से कीमत में बढ़ोतरी की कोशिश नहीं करते और सऊदी अरब द्वारा बढ़ाई गई कीमतों का फायदा उठाते हैं) के लिए भारी बोझ उठाने से थक गए हैं। इसके अलावा, सऊदी अरब अन्य देशों के लिए बाजार में अपनी हिस्सेदारी कम नहीं करना चाहता। लंबे समय तक तेल की कीमत में गिरावट झेलने में वह दूसरे निर्यातकों की तुलना में अधिक सक्षम भी है। इसके अलावा वह 2008 को दोहराना नहीं चाहता।

और फिर, जाहिर है, अमेरिका की शेल क्रांति का भी कच्चे तेल की कीमत गिराने में हाथ है, जहां पिछले छह वर्षों में शेल उत्पादन प्रति दिन 50 लाख बैरल से 90 लाख बैरल पर पहुंच गया है। पारंपरिक ज्ञान कहता है कि सऊदी के तेल उत्पादक बाजार में शेल तेल की आमद से डरते हैं और वे शेल उत्पादन में कुछ हद तक कमी लाने के लिए कच्चे तेल की कीमत को गिरने देना चाहते हैं।

लेकिन सऊदी अरब को वास्तव में शेल का उतना डर नहीं है। सऊदी अरब में उत्पादित कच्चा तेल मध्यम और भारी है, और इस तेल के मुख्य प्रतिद्वंद्वी इराक और ईरान हैं। इसलिए दूसरे तेल निर्यातकों की तुलना में सऊदी अरब शेल उत्पादन से अप्रभावित रह सकता है। वस्तुतः शेल में बड़े आपूर्तिकर्ता की भूमिका निभाने की क्षमता है, जो अभी सऊदी अरब निभा रहा है। फिर शेल क्रांति अभी इतनी नई है कि किसी को पता नहीं कि उसकी कीमत क्या रहने वाली है। अभी जो हो रहा है, वह यह पता लगाने की कोशिश है कि शेल के उत्पादन में गिरावट से पहले तेल की कीमत कितनी नीचे तक जा सकती है, ताकि तेल की कीमत के लिए फिर से माहौल बन सके। जो भी हो, पिछले कुछ महीनों में तेल की कीमतों में लगातार आई गिरावट बताती है कि तेल उत्पादक संघ नहीं, बल्कि बाजार ही भविष्य में इसकी कीमत निर्धारित करेगा।



http://www.amarujala.com/news/samachar/reflections/columns/when-drop-oil-price-hindi/


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