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न्यूज क्लिपिंग्स् | कश्मीर में हुई तबाही का असर इंदौर पर

कश्मीर में हुई तबाही का असर इंदौर पर

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published Published on Sep 22, 2014   modified Modified on Sep 22, 2014
अक्षय बाजपेई, इंदौर। धरती के स्वर्ग कश्मीर में बाढ़ से हुई तबाही का असर इंदौर के फल बाजार पर नजर आ रहा है। जो सेवफल कुछ दिनों पहले 60 से 70 रुपए प्रति किलो बिक रहा था, उसके दाम अब 100 से 120 रुपए किलो तक पहुंच चुके हैं। यही हाल कश्मीर से आने वाले अन्य फलों का भी है। कश्मीर से हर साल इसी सीजन में फलों की गाड़ियां शहर आती हैं। कश्मीर से खासतौर पर सेवफल, आलु बुखारा, बाबूगोशा, इमरती आदि बड़ी मात्रा में हर साल इंदौर के बाजार में आते हैं। मगर हाल ही में कश्मीर में आई बाढ़ के कारण इस बार

इमरती तो बाजार में नजर ही नहीं आ रही। कुछ दिनों पहले कुछ गाड़ियां आईं थी, मगर उनका माल कब बिक गया, पता ही नहीं चला। ये सब कश्मीर में हुई भारी तबाही के कारण हो रहा है। प्रकृति का प्रकोप वहां ऐसा टूटा है कि बड़ी मात्रा में फलों की फसलें बर्बाद हो चुकी हैं।

नवरात्री तक 150 से 200 रुपए बिकेगा सेवफल

सेवफल कुछ समय पहले तक शहर के बाजार में 60 से 70 रुपए किलो तक बिक रहा था। अब कुछ ही दिनों में भाव 100 से 120 रुपए प्रति किलो तक पहुंच चुके हैं। ये दाम फुटकर बाजार के हैं। थोक में सेवफल 80 रुपए किलो तक मिल रहा है। व्यापारियों का कहना है कि नवरात्रि तक भाव 150 से 200 रुपए तक पहुंच जाएंगे। क्योंकि उस समय सेवफल की डिमांड काफी बढ़ जाती है।

अभी तो गाड़ी आ ही नहीं रही

चोईथराम मंडी में बीते कुछ दिनों से तो कश्मीर से कोई गाड़ी आ ही नहीं रही है। इसका एक कारण रोड बंद रहना भी है, वहीं दूसरा कश्मीर में हुई तबाही के कारण ऐसा हो रहा है। व्यापारी पप्पू वर्मा ने बताया कि पिछले कई दिनों से कश्मीर से कोई भी गाड़ी नहीं आई है। इस कारण वहां से आने वाले फलों की मात्रा कम हो गई है जबकि डिमांड बनी हुई है। इसी कारण सेवफल, बाबूगोशा आदि के दाम बढ़ रहे हैं।

फिलहाल हिमाचल, उत्तरांचल का माल आ रहा

अभी हिमाचल, उत्तरांचल से सेवफल इंदौर में लाया जा रहा है। हालांकि पिछले कुछ दिनों से हिमाचल से भी कोई गाड़ी नहीं आई, क्योंकि बीच में कई जगह सड़क बाधित है। इस कारण फलों की कमी हो रही है। सेवफल कश्मीर के साथ ही हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल से इंदौर में लाया जाता है। अभी इमरती का सीजन चल रहा है। हर साल इस समय कश्मीर की इमरती बाजारों में दिखती है, लेकिन इस बार इमरती नजर ही नहीं आ रही। जुलाई में जो गाड़ियां आईं, उन्हीं से जितना माल आया, वो बेचा गया। तब से अब तक कोई गाड़ी नहीं आई है।

लगभग 40 प्रतिशत कम आएगा माल

व्यापारियों का कहना है कि इस बार 40 प्रतिशत माल कम आने की आशंका है। जिस मात्रा में अभी माल आ रहा है, उससे ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है। माल कम आने के बावजूद बाजार में मांग एक जैसी बनी हुई है। नवरात्रि पर मांग और ज्यादा बढ़ेगी। ऐसे में तब तेजी से फलों के भाव बढ़ सकते हैं। फुटकर फल विक्रेता रमेश कनारे ने बताया कि पिछले दस-पंद्रह दिन में ही भाव अचानक बढ़ गए हैं।

दिल्ली में करते हैं स्टोर, वहां से होती है डिलीवरी

कश्मीर से आने वाले फलों को दिल्ली में भी स्टोर कर लिया जाता है। फिर वहां से डिमांड के हिसाब से दूसरे शहरों में सप्लाई की जाती है। नाशपति का सीजन अब लगभग खत्म होने पर आ चुका है। नाशपति भी बड़ी मात्रा में कश्मीर से लाए जाते हैं। व्यापारिक सूत्रों का कहना है कि दिल्ली में माल स्टोर है, इसलिए डिमांड बढ़ने के बाद डिलीवरी की जाएगी। इससे शहर में आते-आते भाव पहले ही काफी बढ़ जाएंगे। इस बार कश्मीर में लगभग 50 प्रतिशत सेवफल बर्बाद होने की बात कही जा रही है।

हर साल जुलाई से आने लगते हैं फल

कश्मीर से हर साल जुलाई से फलों की गाड़ियां शहर में आने लगती हैं। वैसे तो फल बारह महीने आते-रहते हैं, लेकिन सीधे कश्मीर से नये माल की गाड़ियां जुलाई, अगस्त महीने से ही आना शुरू होती हैं। सेवफल में कश्मीर के डिलीशन की शहर में काफी डिमांड होती है। कुछ व्यापारियों का ये भी कहना है कि डिलीशन प्रजाति को ज्यादा पानी से नुकसान नहीं, बल्कि फायदा ही हुआ है। इसलिए हो सकता है कि त्योहारी सीजन के समय डिलीशन प्रजाति का सेवफल बड़ी मात्रा में शहर में आ सकता है।

80 टन तक पहुंच सकता है इस बार

इस बार अभी गाड़ियां आना शुरू नहीं हुई हैं। मगर अगले कुछ दिनों में गाड़ियों के आने की उम्मीद है। ऐसी संभावना है कि फसल बर्बाद होने के कारण इस बार एक दिन की आवक के हिसाब से देखा जाए तो लगभग 40 प्रतिशत माल की आवक कम हो सकती है। यानि पहले हर साल रोजाना 120 टन माल शहर आता था तो इस बार मात्रा 80 से 90 टन तक हो सकती है। बाद में ओर भी ज्यादा कम हो सकती है। हालांकि फिलहाल हिमाचल से पूर्ति हो रही है।

...तो फॉरेन के सेब को मिलेगा लाभ

हर साल जैसे ही कश्मीर से माल आना शुरू होता है तो फॉरेन से आने वाले सेवफल की डिमांड कम हो जाती है। फॉरेन का सेवफल कश्मीरी सेवफल के मुकाबले मीठा भी कम होता है और महंगा भी ज्यादा होता है। अभी कश्मीरी सेवफल जहां 100 रुपए प्रति किलो बिक रहा है, वहीं फॉरेन से आने वाला सेवफल 200 रुपए प्रति किलो बिक रहा है। ऐसी भी संभावना जताई जा रही है कि कश्मीर से कम माल आया तो फॉरेन से आने वाले माल को अच्छा उछाल मिल सकता है।

क्वालिटी पर भी पड़ेगा फर्क

ज्यादा बारिश के कारण कश्मीर से आने वाले सेवफल की क्वालिटी पर भी इसका असर देखा जाएगा। ज्यादा पानी के छींटे लगने से सेवफल पर दाग आ जाते हैं। मिठास में भी कमी हो जाती है। इमरती, ब?बूगोशा तो काफी नाजुक फल होते हैं, जरा से पानी में खराब हो जाते हैं। इसलिए इनके तो अब कश्मीर से आने की उम्मीद न के बराबर ही है। अभी जिन व्यापारियों के पास पुराना स्टाक है, वे ही इन्हें बेच रहे हैं।

एक दिन में आता है 100 टन से ज्यादा माल

कश्मीर से मुख्यतौर पर सालभर में तीन महीने माल इंदौर आता है। सितंबर--अक्टूबर से गाड़ियां आना शुर होती हैं, जो दिसंबर--जनवरी तक चलती है। इस दौरान हर रोज दस से बारह गाड़िया आती हैं। एक गाड़ी में कम से कम 12 टन माल होता है। यानि एक दिन में 120 टन माल आना मामूली बात है। हर साल तीन महीने तक इतना माल हर रोज कश्मीर से इंदौर आता है।

कश्मीर में हुई तबाही से फर्क पड़ना तो निश्चित है, लेकिन हिमाचल, पंजाब, दिल्ली से फलों की पूर्ति होती रहेगी। हर साल सितंबर से नवंबर तक कश्मीर से रोजाना 10 से 12 टन माल इंदौर आता है। मगर इस बार अभी गाड़ियां आना शुरू भी नहीं हुई हैं। अगले कुछ दिनों में माल आने की संभावना है। ब?बूगोशा व इमरती तो अब शायद ही आएं।

-प्रताप सिंह भिलवारे, अध्यक्ष, नई फल मंडी फ्रूट मार्चेंट एसोसिएशन


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