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न्यूज क्लिपिंग्स् | कार्यशैली और नतीजों का पेच -- आकार पटेल

कार्यशैली और नतीजों का पेच -- आकार पटेल

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published Published on Dec 13, 2016   modified Modified on Dec 13, 2016
आम चुनाव के ठीक पहले, अप्रैल, 2014 में सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका मधु पुर्णिमा किश्वर ने भावी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लंबा साक्षात्कार रिकॉर्ड किया था. तब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और नरेंद्र मोदी ने उस साक्षात्कार के दौरान अपने और अपनी कार्यशैली के बारे में कुछ ऐसी बातें मधु किश्वर को बतायी थीं, जो मुझे काफी दिलचस्प लगी थीं.
 

 

उस साक्षात्कार को देखते हुए मैंने तब उनकी कही कुछ बातों को नोट कर लिया था. मोदी ने कहा था कि उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री कार्यालय की कार्य-संस्कृति को बदल दिया. उनके कार्यभार संभालने के पहले मुख्यमंत्री रहे लोग 12 बजे से कार्यालय आते थे. लेकिन, नरेंद्र मोदी हमेशा समय के पाबंद रहे और वे 9:45 बजे सुबह अपने कार्यालय पहुंच जाते थे. मैं जानता हूं कि वे समय का बहुत ध्यान रखते हैं और जब भी मैं उनसे मिला हूं, वे हमेशा तय समय पर ही मुझसे मिले हैं.
 

उस साक्षात्कार में नरेंद्र मोदी ने जो दूसरी महत्वपूर्ण बात सामने रखी थी, वह उनके काम करने के तौर-तरीकों के बारे में थी. मोदी ने कहा कि वे फाइलों को पढ़ते नहीं हैं. उनके जैसे निर्णायक व्यक्ति की ये बातें मुझे कुछ असामान्य-सी लगी थीं, क्योंकि बड़े फैसले लेने के लिए संबंधित विषय पर पूरी पकड़ जरूरी होती है.
 

लेकिन नरेंद्र मोदी कहते हैं कि वे 'अकादमिक अध्ययन' के माध्यम से शासन नहीं कर सकते हैं, इसकी जगह वे अपने अधिकारियों से सभी मुद्दों के बारे में संक्षिप्त रूप से मौखिक जानकारी हासिल कर लेते हैं. अधिकारियों से उम्मीद रहती है कि वे फाइलों को पढ़ेंगे और उन्हें जानकारी देंगे कि 'यह मसला है क्या'. उन्होंने कहा कि बिना अच्छी तरह अध्ययन किये हुए भी वे नाजुक मसलों के बारे में जानने-समझने की क्षमता रखते हैं. उन्होंने कहा कि वे ऐसा इसलिए कर पाते थे, क्योंकि उन मामलों पर उनकी अच्छी पकड़ थी. नरेंद्र मोदी ने यह भी बताया कि वे एक 'अच्छे श्रोता' थे और उन्हें जो कुछ भी बताया जाता था, उसे वे अच्छी तरह आत्मसात कर लेते थे. 

जब मैंने मोदी को ऐसा कहते सुना, तो सोचा कि उनकी इस आदत के कारण उनके भरोसेमंद नौकरशाह उन्हें परेशानी में डाल सकते थे, क्योंकि मोदी उन अधिकारियों पर निर्भर हैं और वे अधिकारी उन्हें किसी भी विषय के बारे में उतना ही बतायेंगे, जितना वे उन्हें बताना चाहेंगे. अपनी कार्यशैली के बारे में जैसा मोदी ने बताया है, उसमें किसी जटिल मामले- जिससे संबंधित दर्जनों से लेकर सैकड़ों पन्ने हो सकते हैं- को महज मौखिक रूप में संक्षिप्त कर दिया जाता है. यह संभव है कि ऐसा या तो समय की कमी के कारण होता है या फिर बहुत ज्यादा जटिलता की स्थिति में मौखिक सारांश आसान होता है. 

किसी भी मामले को संक्षिप्त रूप से जानने के आधार पर नरेंद्र मोदी निर्णय लेते हैं, जिसे बाद में प्रशासन द्वारा कार्यरूप में परिणत किया जाता है. ऐसा प्रतीत होता है कि इस शैली ने नरेंद्र मोदी के लिए बेहतर तरीके से काम किया है, क्योंकि वे एक अच्छे मुख्यमंत्री के तौर पर जाने जाते रहे हैं. इन दिनों मैं फिर से निर्णय लेने की नरेंद्र मोदी की उस कार्यशैली के बारे में सोच रहा हूं.

मैं ऐसा इसलिए सोच रहा हूं, क्योंकि उच्चतम न्यायालय विमुद्रीकरण नीति को लागू करने के तरीके के बारे में कुछ गंभीर सवाल पूछ रहा है. न्यायालय यह जानना चाहता है कि क्या इस नीति को लागू करने के पहले पूरी तैयारी की गयी थी, या फिर 'यूं ही' के अंदाज में फैसला ले लिया गया था, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते महीने आठ नवंबर को 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने की घोषणा की थी. अदालत ने पूछा है कि जब सारे बैंक नागरिकों को धन देने की स्थिति में नहीं हैं, तो आखिर सरकार ने धन निकासी की सीमाएं तय करने की घोषणा क्यों की? ऐसा क्यों लग रहा है कि इन सब चीजों के लिए सही तरीके से तैयारी नहीं की गयी थी?

हालांकि, सरकार ने अदालत के सवालों के सामने अपनी स्वतंत्रता पर जोर दिया है और कहा है कि मौद्रिक नीति का निर्धारण अदालतों के द्वारा नहीं किया जा सकता है. मैं मानता हूं कि सरकार का यह रुख सही है, और यह आशा भी करता हूं कि इस मामले में सरकार के पक्ष में ही निर्णय होगा.

अब मुख्य विषय पर वापस आते हैं. मेरा मानना है कि नरेंद्र मोदी की कार्यशैली की कुछ खासियतें हो सकती हैं. उदाहरण के लिए, उन तमाम मसलों में, जहां त्वरित निर्णय लेने की जरूरत हो या जहां जटिल मामला न हो. नरेंद्र मोदी अच्छी तरह से यह जानते हैं कि देखने में कौन-सी चीजें आकर्षित कर सकती हैं और मुझे लगता है कि 'मेक इन इंडिया' के लोगो (जो कि उत्कृष्ट है) जैसी चीजें इसीलिए आयीं क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने खुद ही उन्हें स्वीकृत किया था. 
लेकिन, तब क्या हो सकता है, जब किसी व्यापक और जटिल मामले पर निर्णय लेना हो और जिसके बारे में गहन अध्ययन की जरूरत हो, खासकर उस व्यक्ति द्वारा जिसे निर्णय लेना है और जो आखिरकार इसके लिए उत्तरदायी है? ऐसे में मुझे अंदेशा है कि मामला समस्याग्रस्त हो सकता है. हर मामले को मौखिक सारांश में सीमित नहीं किया जा सकता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली पूर्व प्रधानमंत्री मनमाेहन सिंह से एकदम विपरीत है, जो हर मामले को विस्तार से देखते थे, जैसा कि किसी अकादमिक व्यक्ति से अपेक्षित है. सिंह ने लिखा है कि उन्हें डर है कि आनेवाले कुछ महीनों में विमुद्रीकरण एक विशाल त्रासदी के रूप में परिणत हो सकता है. वहीं दूसरी ओर नरेंद्र मोदी हमें कह रहे हैं कि हम जनवरी में एक भिन्न और बेहतर दुनिया में प्रवेश करेंगे. दोनों ही व्यक्ति सही नहीं हो सकते हैं और हम बहुत जल्दी ही यह जान जायेंगे कि दोनों में से कौन गलत साबित हुआ.

आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
aakar.patel@me.com

 


http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/907706.html


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