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न्यूज क्लिपिंग्स् | किसान आत्महत्या मामले : अध्ययन के लिए संसदीय समिति बनाने का प्रस्ताव

किसान आत्महत्या मामले : अध्ययन के लिए संसदीय समिति बनाने का प्रस्ताव

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published Published on Dec 20, 2011   modified Modified on Dec 20, 2011

नयी दिल्ली, 19 दिसंबर (एजेंसी) किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्या के मामलों का गहराई से अध्यनन करने और ऐसी घटनाओं को रोेकने के मकसद से सरकार ने आज एक संसदीय समिति गठित करने का प्रस्ताव किया जिसमें दोनों सदनों के सदस्यों की मौजूदगी हो। विपक्ष ने सरकार के इस प्रस्ताव का समर्थन किया।



कृषि मामलों पर राज्यसभा में हुई अल्पकालिक चर्चा का जवाब देते हुए कृषि मंत्री शरद पवार ने यह प्रस्ताव दिया। उन्होंने कहा कि यह संसदीय समिति हर मामले में तो नहीं लेकिन कुछ मामलों में पीड़ित परिवारों से जाकर मिलेगी। उन्होंने कहा कि समिति आत्महत्या के कारणों का विस्तृत अध्ययन करेगी।
पवार ने कहा कि किसानों की आत्महत्याओं के मामले में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो :एनसीआरबी: और राज्य सरकार द्वारा मुहैया कराए गए आंकड़ों में भारी अंतर है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2010 में एनसीआरबी के अनुसार 15 हजार से अधिक किसानों ने आत्महत्या की जबकि राज्यों से मिली जानकारी के अनुसार ऐसे मामलों की संख्या 800 से अधिक थी। उन्होंने कहा कि इस अंतर के कारणों के बारे में भी संसदीय समिति के अध्यनन से पता चल सकेगा।
कृषि क्षेत्र के लिए अलग से बजट लाए जाने की विपक्षी दलों की मांग को कृषि मंत्री ने अस्वीकार करते हुए कहा कि इसमें कई व्यावहारिक दिक्कतें हैं। कृषि से जुड़े सिंचाई, बिजली जैसे कई मुद्दे हैं लिहाजा कृषि के लिए अलग से बजट नहीं लाया जा सकता।
पवार के जवाब से असंतोष जताते हुए भाजपा नेता एम वेंकैया नायडू ने कहा, ‘‘ मंत्री के बयान से ऐसा लग रहा है कि आपरेशन सफल रहा लेकिन मरीज की मौत हो गयी। ’’ उन्होंने अपनी पार्टी की ओर से सदन से वाकआउट की घोषणा की। इसी के साथ वाम, बीजद, सपा, बसपा के राजग में शामिल अन्य दलों ने भी सदन से वाकआउट किया।

इससे पूर्व चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि किसानों को रिण दिलाने के मामले में उन्होंने हाल में विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की थी। साथ ही बैंकों को निर्देश दिया गया है कि सभी पात्र किसानों को किसाण के्रडिट कार्ड जारी किए जाएं।
मुखर्जी ने कहा कि समय पर रिण चुकाने वाले किसानों से इस साल तीन लाख रुपए तक के अल्पकालिक फसल रिणों पर चार प्रतिशत की दर से ब्याज लिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि सभी किसानों को दिए जाने वाले रिण की ब्याज दर को घटाने का मामला ऐसा है जिस पर बैंक विचार करेंगे क्योंकि बैंकों के पास जमाकर्ताओं का धन होता है।
मुखर्जी के हस्तक्षेप के बाद पवार ने कहा कि कृषि भूमि पर लगातार जनसंख्या का दबाव बढ़ रहा है जिसके कारण खेती करना दिनोंदिन अलाभप्रद साबित हो रहा है। उन्होंने कहा कि आज प्रति परिवार के पास 1.2 हेक्टयेर भूमि है। उन्होंने कहा कि 60 प्रतिशत कृषि भूमि मानसून पर निर्भर है।
उन्होंने कहा कि 1947 में देश की आबादी 35 करोड़ थी और 80 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर थी। आज आबादी एक अरब को पार कर गयी है और देश की 62 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर आश्रित है।
उन्होंने राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण :एनएसएस: द्वारा किए गए अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि देश में 27 प्रतिशत लोग कृषि कार्य नहीं करना चाहते।
पवार ने कहा कि सरकार कृषि को आकर्षक क्षेत्र बनाने के लिए तमाम प्रयास कर रही है। इसके तहत किसानों को रिण दिलवाना और समय समय पर न्यूनतम समर्थन मूल्यों में वृद्धि किया जाना शामिल हैं। उन्होंने कहा कि 2004..05 में गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 640 रुपए प्रति क्विंटल था जो 2011..12 में बढ़कर 1285 रुपए हो गया।
उन्होंने कहा कि इसी तरह धान, दाल, कपास, गन्ना आदि के भी न्यूनतम समर्थन मूल्यों में पर्याप्त वृद्धि की गयी है।
देश में इस साल यूरिया, डीएपी, एमओपी जैसे रासायनिक उर्वरकों की कमी को स्वीकार करते हुए कृषि मंत्री ने कहा कि कुछ देशों की कंपनियों ने रासायनिक उवर्रकों के मामले में एक कार्टल बना रखा है। इसके चलते उवर्रकों की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि सरकार ने ज्यादा उर्वरक आयात करने के निर्देश दिए हैं। इससे देश में उवर्रकों की उपलब्धता बढ़ेगी।
पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश द्वारा देश को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराने में अहम योगदान दिए जाने की चर्चा करते हुए पवार ने कहा कि सरकार ने अब पूर्वी भारत को दूसरी हरित क्रांति के क्षेत्र के रूप में चुना है और इसके लिए प्रयास शुरू कर दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि एक दो साल के भीतर इसके परिणाम सामने आने लगेंगे।
पवार ने कहा कि छत्तीसगढ़, ओड़िशा, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल अब ऐसे राज्यों के रूप में उभरे हैं जो देश के खाद्यान्न उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और हमें उनके योगदान को नहीं भूलना चाहिए।
कृषि जिंसों की खरीद की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय खाद्य निगम :एफसीआई: हर गांव में जाकर किसानों से अनाज नहीं खरीद सकता। उन्होेंने कहा कि पंजाब और हरियाणा में अनाज की सरकारी खरीद इसलिए अधिक होती है क्योंकि वहां राज्य निगम बड़े पैमाने पर खरीद करते हैं। उन्होंने कहा कि अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी इसी तरह पहल करते हुए खरीद को बढ़ावा देना चाहिए ताकि उनके प्रदेशों के किसान मुसीबत में आकर औने पौने दामों पर अपनी फसल नहीं बेचें।
कोल्ड स्टोरेज और भंडार गृहों की चर्चा करते हुए पवार ने कहा कि सरकार ने इनके लिए पीपीपी मॉडल अपनाने पर जोर दिया है और इस दिशा में काम किया जा रहा है जिसका दो तीन साल में असर दिखने लगेगा। उन्होेंने कहा कि जलवायु परिवर्तन का कृषि पर पड़ने वाले असर के अध्ययन के लिए कई राज्यों में विशिष्ट कें्रद खोलने का निर्णय लिया गया है।
प्रमुख विपक्षी दलों द्वारा कृषि पर चर्चा के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने की मांग पर पवार ने कोई टिप्पणी नहीं की।
इसके पूर्व आज शून्यकाल के फौरन बाद पवार चर्चा का जवाब देने के लिए खड़े हुए तो भाजपा सहित विभिन्न दलों के सदस्यों ने मांग की कि यह एक गंभीर मामला है और इसके विभिन्न मुद्दों पर जवाब के लिए सदन में वित्त मंत्री, वाणिज्य मंत्री, बिजली मंत्री और पंचायती राज मंत्री मौजूद होने चाहिए। इस मुद्दे पर विपक्ष के हंगामे के कारण सदन को दो बार स्थगित किया गया।
भोजनावकाश के बाद जब पवार ने अपना जवाब शुरू किया तो उस समय सदन में वित्त मंत्री मुखर्जी, वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा और बिजली मंत्री सुशील कुमार शिंदे मौजूद थे। मुखर्जी चर्चा में हस्तक्षेप कर सदन से बाहर चले गए जबकि शर्मा और शिंदे पवार का जवाब पूरा होने तक सदन में बैठे रहे।


http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/6951-2011-12-19-10-53-42


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