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न्यूज क्लिपिंग्स् | किसान को मिले सब्सिडी-।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।।

किसान को मिले सब्सिडी-।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।।

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published Published on Oct 16, 2012   modified Modified on Oct 16, 2012
सब्सिडी के बढ़ते बोझ के कारण सरकार की वित्तीय स्थिति गड़बड़ा रही है. सरकार ने सब्सिडियों में कटौती करने का मन बनाया है. किसान और गरीब को सब्सिडी जरूरी है. सब्सिडी घटाने के स्थान पर इसके वितरण के नये रचनात्मक उपाय सोचने चाहिए, जिससे खर्च भी बचे और किसान भी लाभान्वित हों.

सरकार रासायनिक फर्टिलाइजर, यूरिया कंपनियों को भारी सब्सिडी दे रही है. वित्त मंत्रालय के एक दस्तावेज के अनुसार केवल 46 फीसदी सब्सिडी किसानों को पहुंच रही है. यानी इस सब्सिडी का लाभ किसान को कम और घटिया कंपनियों को अधिक हो रहा है. दूसरी समस्या है कि इससे बड़े किसानों को लाभ होता है. फर्टिलाइजर का उपयोग करने के लिए सिंचाई आदि की व्यवस्था जरूरी है, जो बड़े किसानों के पास ही उपलब्ध होती है.

पांच वर्ष पूर्व सरकार ने वाइके अलघ की अध्यक्षता में इस विषय पर विचार के लिए एक कमेटी बनायी थी. अलघ के सुझाव में एक यह था कि तीन जिलों में फर्टिलाइजर सब्सिडी को सीधे किसान को देने का प्रयोग किया जाये. फर्टिलाइजर कंपनियों द्वारा इस सुझाव का विरोध किया जा रहा है. आश्चर्य यह है कि वित्त एवं फर्टिलाइजर मंत्रालय भी इस सुझाव को अव्यवहारिक बता रहा है.

किसान को सीधे सब्सिडी देने की जो प्रक्रिया सरकार के विचाराधीन है, उसमें किसान बाजार से फर्टिलाइजर खरीदेगा. फिर उसका प्रमाण प्रस्तुत कर निर्धारित अधिकारी से सब्सिडी प्राप्त करेगा. यह जटिल प्रक्रिया है. संभव है कि किसान वास्तव में फर्टिलाइजर न खरीदे और केवल पर्चा जमा करके सब्सिडी की मांग करे. अधिकारियों के लिए भी यह कठिन है. इसलिए मंत्रालय सीधे सब्सिडी के सुझाव को लागू नहीं कर रहा है.

इस समस्या से निबटने के लिए दूसरे रास्ते खोजे जा सकते हैं. विकल्प है कि सरकार गणना करे कि जिले में फर्टिलाइजर का कितना उपयोग होता है. मान लीजिए एक एकड़ पर औसतन 50 किलो फर्टिलाइजर का उपयोग हुआ है और सरकार दो रुपये प्रति किलो सब्सिडी देना चाहती है. इससे जिले में प्रति एकड़ 100 रुपये की सब्सिडी का अधिकार बनता है.

सरकार को चाहिए कि इस दर से सभी किसानों को सीधे नकद पेमेंट कर दे. इस वैकल्पिक व्यवस्था में सीधे सब्सिडी देने की समस्याएं सुलझ जाएंगी. मूल बात यह है कि इस व्यवस्था में फर्टिलाइजर उत्पादकों को दी जा रही सब्सिडी पूरी तरह बंद हो जाएगी. बाजार में फर्टिलाइजर वास्तविक मूल्य पर बेचा जाएगा.

इससे किसान नाइट्रोजन, पोटाश एव फास्फेट का उपयोग उनके वास्तविक मूल्य के अनुरूप करेगा. वर्तमान में यूरिया पर अधिक सब्सिडी होने से किसान इसका उपयोग अधिक एवं पोटाश तथा फास्फेट का कम कर रहे हैं, जो कि कृषि उत्पादन के लिए हानिकारक है.

सब्सिडी किसान को सीधे देने में सरकार की दूसरी आपत्ति है कि जिला प्रशासन पर सब्सिडी बांटने का कार्य आ पड़ेगा. अनेक राज्यों में भूमि रिकार्ड का कंप्यूटरीकरण किया जा रहा है. इसे भी शीघ्र करा देना चाहिए. कंप्यूटर से भूमि की मिल्कियत की लिस्ट निकाल कर सीधे डाक से कूपन भेजे जा सकते हैं. इसके अलावा यदि प्रशासनिक खर्च आता है, तो भी बहुत बचत है.

सरकार की तीसरी आपत्ति है कि किसानों को सीधे सब्सिडी देने से किसान उस रकम का उपयोग दूसरे कार्यों में कर सकते हैं. इससे फर्टिलाइजर का उपयोग कम होगा और देश में खाद्यान्न का उत्पादन गिर सकता है. इस तर्क में दम है. परंतु एक किसान द्वारा कूपन बेचने से दूसरा उसे खरीदेगा और फर्टिलाइजर का कुल उपयोग पूर्ववत रहेगा अत: यह भय निर्मूल है. इसके अतिरिक्त खाद्यान्न उत्पादन की मूल समस्या दाम की है.

किसान के लिए खाद्यान्न उत्पादन लाभकारी होगा, तो वह खाद्यान्न का उत्पादन करेगा. अत: कृषि उत्पादों के मूल्यों को ऊंचा बनाये रखना चाहिए. एक तरफ सरकार खाद्यान्नों के आयात को खोल रही है, जिससे मूल्य कम हो रहे हैं और उत्पादन गिर रहा है.

दूसरी तरफ सरकार फर्टिलाइजर पर सब्सिडी देकर खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने की बात कर रही है. सरकार को नीतियों के इस विरोधाभास को दूर करना चाहिए. खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाना हो तो आयात रोकना चाहिए, जिससे घरेलू बाजार के मूल्य बढ़ें. किसान सहज उत्पादन बढ़ा देंगे.

सरकार को जनता को फुसलाना बंद कर उसे राहत पहुंचाने के सीधे रास्ते ढूंढ़ने चाहिए. अलघ कमेटी के सीधे सब्सिडी देने के सुझाव को पूरे देश में लागू करना चाहिए. इसी प्रकार के रचनात्मक प्रयास दूसरी सब्सिडियों, जैसे खाद्य, डीजल, बिजली के वितरण आदि, के लिए भी किये जाने चाहिए.

(अर्थशास्त्री)


http://prabhatkhabar.com/node/210863


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