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न्यूज क्लिपिंग्स् | किसानों की हत्या पर मुहर--- देविंदर शर्मा

किसानों की हत्या पर मुहर--- देविंदर शर्मा

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published Published on Jan 17, 2011   modified Modified on Jan 17, 2011
जीएम फसलें एक बार फिर चर्चा में है. मा‌र्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी पूर्ववर्ती नीति से पलटी मारकर अब सार्वजनिक रूप से जीएम फसलों को समर्थन देना शुरू कर दिया है. बहस गरमा रही है. यह उसी लाइन पर जा रही है, जिस पर शरद पवार जोर दे रहे है.


इसमें हैरत की बात नहीं है. मैं देर-सबेर इसकी उम्मीद कर रहा था. आखिरकार, विकिलीक्स पहले ही खुलासा कर चुका है कि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन जीएम फसलों के पक्ष में राय व्यक्त कर चुके है. विकिलीक्स के एक और रहस्योद्घाटन में, पेरिस में अमरीकी दूतावास ने जीएम फसलों का विरोध कर रहे यूरोप के खिलाफ वाशिंगटन को सैन्य व्यापार युद्ध छेड़ने की सलाह दी थी.

2008 में अमरीका और स्पेन ने यूरोप में खाद्यान्न की कीमतें बढ़ने पर जीएम खाद्यान्न फसलों की आवश्यकता को उचित ठहराया था. यूरोप अब भी जीएम फसलों को स्वीकार नहीं कर रहा है, ऐसे में केवल भारत ही निशाने पर है.

2010 के शुरू में भारत के पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने बीटी बैंगन के व्यावसायीकरण को स्थगित कर दिया था. इसके बाद भारत पर अमेरिका ने कूटनीतिक और राजनीतिक दबाव बढ़ा दिया था. बहुराष्ट्रीय बीज उद्योग ने तेजी से कदम उठाते हुए बड़ी संख्या में पत्रकारों को अमरीका की 'शैक्षिक' यात्रा कराई और भारत में भी जीएम फसलों के पक्ष में मीडिया अभियान छेड़ दिया.

उसी समय, विशाल बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने जीएम फसलों के पक्ष में राजनीतिक दृष्टिकोण को प्रभावित करने के प्रयास तेज कर दिए थे. माकपा के दृष्टिकोण में बदलाव इन्हीं प्रयासों का नतीजा है. हमें कुछ ऐसे मुद्दों की पड़ताल करना बेहद जरूरी है, जो जीएम फसलों को बढ़ावा देने के शोरशराबे में गुम हो गए है.

पहली और सबसे महत्वपूर्ण दलील यह दी जाती है कि एक अरब से अधिक की आबादी वाले देश का पेट जीएम फसलें ही भर सकती है. इससे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी. सच्चाई इसके उलटी है. विश्व में कोई ऐसी जीएम फसल नहीं है, जो उत्पादकता को बढ़ा सके. वास्तव में, अधिकांश जीएम फसलों ने असलियत में उत्पादकता को घटाया ही है. अमरीकी कृषि विभाग भी स्वीकार करता है कि जीएम मक्का और जीएम सोया की उत्पादकता सामान्य प्रजातियों से कम है. अगर जीएम फसलों की उत्पादकता सामान्य फसलों से भी कम है तो आश्चर्य है कि हमारे राजनेता जीएम फसलों से खाद्य सुरक्षा बढ़ने की बात क्यों कर रहे है!

सच्चाई यह है कि विश्व में खाद्यान्न की कमी ही नहीं है. पृथ्वी पर 6.5 अरब लोग रहते है, जबकि खाद्यान्न का उत्पादन 11.5 अरब लोगों के लिए हो रहा है. अगर विश्व में रोजाना एक अरब से अधिक लोग भूखे पेट सोने को मजबूर है तो इसका कारण खाद्यान्न की अनुपलब्धता न होकर दोषपूर्ण वितरण प्रणाली है. यही बात भारत पर भी लागू होती है, जहां एक-तिहाई आबादी उपलब्ध भोजन खरीदने की स्थिति में नहीं है, जिसे गोदामों में चूहे चट कर रहे है.

अब तक विकसित करीब सभी जीएम फसलों की विशेषता कीटरोधी होना बताया जाता है. उदाहरण के लिए बीटी कॉटन पिंक बॉलवर्म जैसे कीटों के मारने के लिए विकसित की गई, जिससे कीटनाशकों का इस्तेमाल घट जाए. यह लंबे समय तक सही सिद्ध नहीं हुआ. चीन में, बीटी कॉटन उगाने वाले किसान अब दस फीसदी अधिक कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे है.

पूरा सरकारी तंत्र, कृषि विश्वविद्यालय, कंपनियां और मीडिया का एक बड़ा हिस्सा जीएम फसलों को प्रोत्साहन देने में जुटा है.


भारत में भी, बीटी कॉटन की पैदावार में अधिक कीटनाशकों का इस्तेमाल होने लगा है. सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ कॉटन रिसर्च, नागपुर की रिपोर्ट के अनुसार, 2006 में, 640 करोड़ रुपये के कीटनाशकों का कॉटन पर छिड़काव किया गया. 2008 में यह राशि 800 करोड़ से अधिक हो गई. यहां तक कि अमरीका में भी, जहां जीएम फसलों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो रहा है, कीटनाशकों पर खर्च 30 करोड़ डॉलर बढ़ गया है.

जीएम फसलें अपनी जड़ों के माध्यम से मिट्टी में जहरीले तत्व छोड़ती है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के शोध के अनुसार इससे मिट्टी के लिए लाभदायक माइक्रोफ्लोरा को नुकसान पहुंचता है. किसानों की शिकायतें बढ़ती जा रही है कि बीटी कॉटन की हर अगली पैदावार पहले से कम हो रही है. इसके अलावा आंध्र प्रदेश और हरियाणा में बीटी फसल की पत्तियां खाने से पशु मर रहे है. आंध्र प्रदेश पशुपालन विभाग ने किसानों को चेतावनी जारी की है कि वे पशुओं को बीटी कॉटन के खेत में न चरने दें.

जीएम फसल कुछ ऐसे कीट भी पैदा करती है, जो किसी भी कीटनाशक से नहीं मरते. अमरीका में, 1.5 करोड़ एकड़ जमीन पर सुपरकीट फैल चुके है. इन कीटों के फैलने से अमरीका का जार्जिया प्रांत तेजी से बंजर होता जा रहा है. उत्तरी अमेरिका में कम से कम 30 सुपरकीट विकसित हो गए है, जो किसी भी रसायन से खत्म नहीं होते. दुनिया भर में अनेक उदाहरण है जिनसे पता चलता है कि जीएम फसल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. यहां तक कि बहुराष्ट्रीय कंपनी मोंसेंटो के खुद के अध्ययन भी बताते है कि इसके कारण यूरोप में चूहों को किडनी, लिवर, पैंक्रियाज और खून की गंभीर बीमारियां हो गई है.

ऑस्ट्रिया में कुछ हालिया अध्ययनों से पता चला है कि जीएम फसलों से नपुंसकता भी होती है. जिन भी वैज्ञानिकों ने जीएम फसलों के मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव पर सवाल उठाने की हिम्मत दिखाई है, उन्हें जीएम उद्योग के इशारे पर नौकरी से निकाल दिया गया.

अगर हम लोगों के हाथ में नुकसानदायक प्रौद्योगिकी सौंप देंगे तो देर-सबेर विश्व की अप्राकृतिक मौत हो जाएगी. उदाहरण के लिए सिगरेट के हर पैकेट पर स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होने की चेतावनी छपी रहती है, फिर भी इसकी बिक्री बढ़ रही है. चूंकि यह स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है इसलिए सरकार ने सार्वजनिक स्थानों पर इसके इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया है. क्या यह गलत फैसला है?

इसी प्रकार जीएम फसलों के इस्तेमाल करने या न करने का फैसला किसानों पर नहीं छोड़ा जा सकता. किसान ताकतवर कंपनियों के आक्रामक मार्केटिंग हथकंडों के जाल में फंस जाते है. पूरा सरकारी तंत्र, कृषि विश्वविद्यालय, कंपनियां और मीडिया का एक बड़ा हिस्सा जीएम फसलों को प्रोत्साहन देने में जुटा है. किसान इनका मुकाबला नहीं कर सकते. किसानों पर दोषपूर्ण प्रौद्योगिकियां थोपने पर वे पहले ही आत्महत्या कर रहे है. हत्यारी प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल न रोक कर हम और कितने किसानों की हत्या करना चाहते है?

http://raviwar.com/news/451_farmer-suicide-or-murder-devinder-sharma.shtml


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