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न्यूज क्लिपिंग्स् | केंद्र सरकार के बजट में 29 बजटों का सवाल

केंद्र सरकार के बजट में 29 बजटों का सवाल

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published Published on Feb 4, 2020   modified Modified on Feb 4, 2020
-इंडिया टूडे हिंदी
 
केंद्र सरकार का अकेला बजट मंदी का भाड़ फोड़ सकता होता तो फिर छह ‘शानदार’ बजटों के बावजूद हम औंधे मुंह धंस न गए होते. अथवा टैक्स या कर्ज रियायतों के ताजे पैकेज (ऑटोमोबाइल, हाउसिंग, कॉर्पोरेट के टैक्स में कमी, एनबीएफसी, लघु उद्योग) सिर के बल खड़े न हो जाते. 

2020-21 का बजट कुछ ऐसी वजहों से संवेदनशील होने वाला है जो अर्थव्यवस्था और सियासत, दोनों के लिए कीमती हैं. बजट जैसे ही संसद की दहलीज पार करेगा, एक बिल्कुल नई जद्दोजहद दिल्ली से निकलकर राज्यों की राजधानियों तक फैल जाएगी. राज्यों में विपक्ष का उभार, मंदी और केंद्र सरकार की राजकोषीय ढलान केंद्र और राज्यों के आर्थिक रिश्तों का नक्शा बदलने जा रही हैं. यह बजट उस नए मानचित्र की भूमिका हो सकता है.

बजट के समानांतर तीन बड़े प्रस्ताव वित्त मंत्रालय और वित्त आयोग के गलियारों में टहल रहे हैं, बजट में अगर शामिल हुए तो राजकोषीय गणित भी बदल जाएगा और देश की सियासत का समीकरण भी. 

• केंद्र सरकार राज्यों के केंद्रीय करों के सामूहिक संग्रह में मिलने वाले हिस्से (42 फीसद) को कम करना चाहती है. केंद्र का घाटा संभल नहीं रहा है. तर्क यह होगा कि राज्यों को जीएसटी से होने वाले घाटे की भरपाई की जा रही है.

• केंद्रीय करों में राज्यों के हिस्से से राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक नया कोष बनाने की तैयारी है. यह कोष भारत की समेकित निधि (कंसॉलिडेटेड फंड) से अलग होगा. 

• केंद्र प्रायोजित स्कीमों की संख्या में कमी का प्रस्ताव है. इन स्कीमों की संख्या सौ के करीब है. केंद्र-राज्य मिलकर इनका वित्त पोषण करते हैं. इनके विलय और समापन से 20,000 करोड़ रुपए काटे जाएंगे. इससे राज्यों को केंद्र से मिलने वाले संसाधनों में कमी आएगी. 


मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बनने वाले नरेंद्र मोदी की सरकार ने शुरुआत योजना आयोग को खत्म करने के साथ की थी जिसका मतलब राज्यों को आजादी और ताकत देना था लेकिन हुआ दरअसल उसका उलटा ही. 2015 में 14वें वित्त आयेाग की सिफारिश मानकर केंद्रीय करों के पूल में राज्यों का हिस्सा 32 से बढ़ाकर 42 फीसद तो कर दिया गया लेकिन इसके बदले 

• केंद्र से राज्यों को जाने वाले अनुदान संसाधनों में कटौती शुरू हो गई

• केंद्र सरकार के कुछ बड़े मिशन राज्यों के गले बांध दिए गए, जिससे राज्यों की अपनी योजनाएं पिछड़ गईं

• जीएसटी आ गया, जिससे टैक्स लगाने की राज्यों की ताकत सीमित हो गई 

• और केंद्र ने सेस यानी उपकर के जरिए टैक्स जुटाना शुरू कर दिया, जिनको राज्यों के साथ बांटा नहीं जाता 
 
पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 

अंशुमान तिवारी, https://aajtak.intoday.in/story/budget-2020-gst-narendra-modi-automobile-housing-corporate-tax-nbfc-1-1160537.html


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