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न्यूज क्लिपिंग्स् | क्या कहती है दौलतपुर की कहानी-- आलोक रंजन

क्या कहती है दौलतपुर की कहानी-- आलोक रंजन

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published Published on Mar 14, 2018   modified Modified on Mar 14, 2018

केंद्र सरकार ने साल 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का एक चुनौतीपूर्ण अभियान शुरू किया है। तमाम तरह की रणनीति बनाने के प्रस्ताव दिए जा रहे हैं, पर हमें एक ऐसा माहौल बनाना चाहिए, जिसमें किसानों में प्रगतिशील सोच विकसित हो और वे अपनी फसलों पर ऊंचा मुनाफा पा सकें। यहां मैं ऐसे ही एक किसान की कहानी आपसे साझा कर रहा हूं, जिसे बदलाव का वाहक कहना ज्यादा उचित होगा।

 

राम सरन वर्मा एक शांत व सौम्य किसान हैं, जिनका इरादा खेती और फसल चक्र में तकनीक के इस्तेमाल से कृषि में बदलाव लाने का है। उन्होंने महज एक एकड़ जमीन के साथ 1990 में इस दिशा में कदम बढ़ाया था, और आज उनके सफर में हजारों किसान जुड़ चुके हैं, जो उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों में कुल मिलाकर 80,000 एकड़ जमीन पर खेती कर रहे हैं। खेती के उनके इस मॉडल ने न सिर्फ किसानों की आमदनी बढ़ाई है, बल्कि उनका जीवन-स्तर भी बेहतर बनाया है।

 

राम सरन वर्मा के साथ पहली मुलाकात मुझे अब भी याद है। मैं तब उत्तर प्रदेश में कृषि उत्पादन आयुक्त था। वह किसानों के उस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनने का अनुरोध लेकर मेरे पास आए थे, जिसे गुजरात जाकर वहां की कृषि व्यवस्था और खेती के तरीके का अध्ययन करना था। मुझे उनके आत्मविश्वास ने काफी प्रभावित किया। तब उन्होंने कहा था, ‘मुझे सरकार से एक पैसा नहीं चाहिए। मैं अपना हवाई टिकट खुद ले लूंगा और ठहरने का इंतजाम भी खुद कर लूंगा'। वह प्रतिनिधिमंडल में शामिल किए गए और वाकई उन्होंने सरकार से एक पैसा भी नहीं लिया। यहां तक कि अभी हाल ही में जब मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्होंने अपनी सफलता की कहानी को शब्दों में ढाला है, तो उन्होंने विश्वास के साथ कहा, ‘गूगल पर मेरी वेबसाइट देखिए। आपको पूरी जानकारी मिल जाएगी'।

 

असल में, आर्थिक आजादी ने राम सरन को सामाजिक व राजनीतिक रूप से सशक्त बनाया है। इससे उनके जीवन स्तर में जबर्दस्त वृद्धि हुई है। उन्होंने अपनी यात्रा की शुरुआत फसल चक्र, फसलों के पैटर्न और पौधों के बीच की खाली जगहों में नए-नए प्रयोगों के साथ की। खेतों में तमाम तरह के परीक्षण किए। साल 1995 में उन्होंने केले व टमाटर की खेती शुरू की, क्योंकि अपने अध्ययन से उन्होंने यह समझ लिया था कि इन फसलों से उनके लिए नकद आमदनी के दरवाजे खुल सकते हैं। खेती के तौर-तरीकों को बदलकर ‘क्रॉप इनोवेशन' (फसलों में नवाचार) करना हमेशा से सुख-समृद्धि और जीवन स्तर में बेहतरी सुनिश्चित करता है। राम सरन के इनोवेशन ने भी उत्तर प्रदेश के बाराबंकी, लखीमपुर खीरी, सीतापुर और सुल्तानपुर के किसानों को काफी फायदा पहुंचाया।

 

राम सरन की ‘केला क्रांति' इतनी सफल रही है कि अब कौशांबी तक आपको ऐसे कई किसान दिख जाएंगे, जो केले की खेती करते हैं। केले में शुद्ध लाभ प्रति एकड़ चार लाख रुपये है। केले की बागवानी इसलिए मुनाफे का सौदा बन सकी, क्योंकि फसल चक्र व खेती के ‘टिशू कल्चर' को अपनाया गया। ‘रैटूनिंग' (पौधों के ऊपरी हिस्से को काटना और जड़ को जमीन में ही छोड़ देना) का इस्तेमाल करके उन्होंने फसल की अवधि कम की और एक नियमित फसल चक्र सुनिश्चित किया। इस खेती के तहत एक एकड़ में कतारों के बीच छह फीट की दूरी रखते हुए केले के 3,000 बिरवे रोपे जाते हैं। इसके बाद, पहली फसल के पौधों को गरदन की ऊंचाई तक काट दिया जाता है, जिससे खाद का इस्तेमाल घटकर आधा हो जाता है। राम सरन ने ही अन्य किसानों को इस तकनीक का प्रशिक्षण दिया है। वह गर्व के साथ बताते हैं, ‘हमें बाजार जाने की जरूरत नहीं होती, बाजार हमारे दरवाजे तक आता है'। वाकई सच यही है। खरीदार उनके बागों तक खुद आते हैं। राम सरन यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी किसानों को अच्छा मुनाफा मिले।

 

सफलता की यही कहानी टमाटर, आलू और मेंथा की खेती में भी दोहराई गई है, जिससे किसानों की जीवनशैली में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। लखनऊ मैनेजमेंट एसोसिएशन के साथ इंस्टीट्यूट ऑफ को-ऑपरेटिव मैनेजमेंट रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग ने एक अध्ययन किया था, जिसके नतीजे उत्साहित करने वाले हैं। निष्कर्ष के मुताबिक, 40.9 फीसदी किसानों ने घर के मालिक बनने की बात कही। 19.6 फीसदी सीमांत व 27.3 फीसदी छोटे किसानों ने खेती के लिए जमीन खरीदी। कुल 27.7 फीसदी किसानों ने कृषि भूमि खरीदी। 27.7 फीसदी सीमांत और 36.4 फीसदी छोटे किसान पट्टे पर जमीन लेने लगे। साफ है, इन किसानों के लिए खेती फायदे का सौदा साबित हुई है।

 

इतना ही नहीं, 27.7 फीसदी सीमांत, 36.4 फीसदी छोटे और 66.7 फीसदी मध्यम किसानों ने अपने परिवार के लिए नए घर बनवाए। कुल मिलाकर, 84.8 फीसदी किसानों ने अपने जीवन स्तर में उन्नति की। ज्यादातर किसानों का कहना था कि वे अब बेहतर पेयजल सुविधा का इस्तेमाल करने लगे हैं। 84.8 फीसदी किसानों ने बताया कि उनके परिवार का शैक्षणिक स्तर बढ़ा है। 78 फीसदी सीमांत और 72.7 फीसदी छोटे व मध्यम किसानों की पहुंच बेहतर चिकित्सा सुविधा तक होने लगी है। 68.2 फीसदी किसानों के घरों में गैस पहुंच चुकी है। 70 फीसदी के करीब किसानों ने कहा कि आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से न सिर्फ उन्हें अधिक सामाजिक पहचान मिली, बल्कि शहरों के साथ उनका जुड़ाव भी बढ़ा। नतीजतन, दौलतपुर गांव विश्व स्तर पर पहचाना जाने लगा है। कृषि में जीवन-यापन के बेहतर अवसर मिलने के कारण इन इलाकों के खेतिहर मजदूरों ने भी शहरों का पलायन बंद कर दिया है।

 

यह एक मूक क्रांति है, जिसका दायरा अब नजदीकी इलाकों में बढ़ चला है। राम सरन ने इसकी पहल की और दो दशक में अपने इलाके की आर्थिक तस्वीर बदलकर रख दी। यह चमत्कार तकनीक, बेहतर कृषि तरीकों का चयन, इनोवेशन, आत्म विश्वास, बागवानी फसलों की खेती, फसल चक्र और पट्टे पर जमीन लेने से संभव हो सका। यह उदाहरण बताता है कि संभावनाओं का दायरा कितना बड़ा है। राम सरन सरकार को भी ऐसा करने को प्रेरित करते हैं। खेती का यह मॉडल सिर्फ खेती-किसानी को फायदेमंद नहीं बनाता, बल्कि किसानों को वह सम्मान भी देता है, जिसके वे हकदार हैं। जाहिर है, इसी तरह के बदलाव अन्नदाताओं की आमदनी दोगुनी करने का सपना साकार कर सकते हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)


https://www.livehindustan.com/blog/story-alok-ranjan-article-in-hindustan-on-12-march-1845322.html


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