Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | खाद्य-सुरक्षा: बदले बदले से सरकार नजर आते हैं- चंदन श्रीवास्तव

खाद्य-सुरक्षा: बदले बदले से सरकार नजर आते हैं- चंदन श्रीवास्तव

Share this article Share this article
published Published on Feb 6, 2015   modified Modified on Feb 6, 2015
शांता कुमार की अगुवाई में बीते अगस्त में बनी उच्चस्तरीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में तीन ऐसी सिफारिशें की हैं, जो सीधे-सीधे खाद्य-सुरक्षा अधिनियम यानी भोजन का अधिकार कानून में प्रदान की गयी हकदारियों पर चोट करती हैं.

केंद्र सरकार सोचती है कि लोक-कल्याण की योजनाओं में भ्रष्टाचार होने से कुछ अच्छा होता है, तो भ्रष्टाचार अच्छा है. योजनाओं में भ्रष्टाचार का होना सरकार को चलती हुई योजनाओं से हाथ खींचने का मौका देता है. ऐसे में वह भ्रष्टाचार रोकने के उपाय करने की बात बता कर आपके अधिकार छीन सकती है, कह सकती है कि लोगों के हक का पैसा गलत हाथों में न पड़े इसके लिए अधिकारों में कटौती जरूरी थी. पहले हर हाथ को रोजगार देने की गारंटी देनेवाले कार्यक्रम मनरेगा के साथ ऐसा ही हुआ और अब बारी राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा अधिनियम यानी भोजन के अधिकार में कटौती की है.

मनरेगा के लिए केंद्र सरकार से दी जानेवाली राशि में कटौती और विलंब का यह आलम है कि साल में सौ दिन गारंटीशुदा रोजगार देने के इस कार्यक्रम में पैसे की कमी के कारण काम मांगनेवालों को इस वित्तवर्ष में महज 34 दिनों का रोजगार दिया जा सका है. 2009-10 में मनरेगा के लिए 52 हजार करोड़ रुपये का बजट था, जो 33 हजार करोड़ पर सिमट आया है. बिहार सरीखे ग्रामीण अर्थव्यवस्था वाले राज्यों के ग्रामीण विकास मंत्री दुखड़ा सुना रहे हैं कि फरवरी की शुरुआत में केंद्र पर मनरेगा के तहत बिहार का कुल बकाया करीब 600 करोड़ रुपये का है. केंद्र सरकार पर इस दुखड़े का शायद ही असर हो, क्योंकि भ्रष्टाचार की आड़ लेकर वह मनरेगा के तहत दिये गये अधिकार को ही सिकोड़ देना चाहती है. नीति आयोग के उपाध्यक्ष पद पर सरकार ने जिन अरविंद पनगढिया को बिठाया है, उन्होंने चंद माह पहले अपने एक लेख में ज्ञान दिया था कि मनरेगा में मजदूरी के रूप में दिये जानेवाले एक रुपये पर पूरे पांच रुपये का खर्च बैठता है, इस कारण यह योजना ‘लचर' है. उनका निदान यह था कि भारत में गवर्नेस कभी सुधर नहीं सकता, इसलिए बेहतर है कि जन-कल्याण का ज्यादातर जिम्मा निजी क्षेत्र के भरोसे छोड़ दिया जाये और लोगों को कल्याण के मद में रोजगार या फिर अनुदानित मूल्य पर अनाज नहीं, बल्कि सीधे-सीधे कैश-ट्रांसफर किया जाये.

इस बात की भी गारंटी नहीं है कि गवर्नेस सुधर जाये तो सरकार लोगों की जीविका से जुड़ी हकदारियों में कटौती नहीं करेगी. इसकी नयी मिसाल शांता कुमार की अगुवाई में बीते अगस्त में बनी उच्चस्तरीय समिति की रिपोर्ट है. समिति ने भारतीय खाद्य-निगम (एफसीआइ) के प्रबंधन में सुधार के बारे में एक रिपोर्ट सौंपी है. समिति का तर्क है कि एफसीआइ के जरिये सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को दिये जा रहे अनाज की चोरबाजारी होती है. इसे रोकने के लिए समिति ने तीन ऐसी सिफारिशें की हैं, जो सीधे-सीधे खाद्य-सुरक्षा अधिनियम यानी भोजन का अधिकार कानून में प्रदान की गयी हकदारियों पर चोट करती हैं. सिफारिशों में कहा गया है कि 40 फीसदी आबादी को प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह 7 किलो खाद्यान्न सस्ते दर पर दिया जाये, जबकि भोजन का अधिकार कानून में 67 फीसदी आबादी को प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह 5 किलो खाद्यान्न अनुदानित मूल्य पर देने की बात थी. लाभार्थियों की संख्या 27 फीसदी घटा कर, अनाज की मात्र में दो किलो की वृद्धि का यह नुस्खा अर्थशास्त्रियों की नजर में मजाक की हद तक नायाब कहलायेगा.

समिति को लगता है कि भोजन का अधिकार कानून के प्रावधानों के अंतर्गत खाद्यान्न पर दी जा रही सब्सिडी बहुत ज्यादा है. इसलिए उसकी सिफारिश है कि पीडीएस के चावल और गेहूं का मूल्य क्रमश: तीन और दो रुपये प्रति किलो से बढ़ा कर उनके न्यूनतम समर्थन मूल्य का आधा कर दिया जाये. सोच यह है कि कीमत ज्यादा होगी तो पीडीएस के तहत खाद्यान्न की बिक्री कम होगी. समिति की तीसरी सिफारिश तो पनगढिया के ही इस तर्क का विस्तार है कि भारत में गवर्नेस कभी सुधर नहीं सकता. सिफारिश है कि जिन राज्यों में पीडीएस के अनाज के उपार्जन से लेकर लाभार्थी के हाथों में सौंपने तक की पूरी प्रक्रिया को कंप्यूटरीकृत नहीं किया गया है, उनमें भोजन का अधिकार कानून देरी से लागू किया जाये.

सोचिये, ये सिफारिशें मान ली जाती हैं तो बिहार जैसे राज्यों में, जहां हाल में चुनावी मजबूरियों के तहत ही सही, पीडीएस को सुधारने के बड़े प्रयास हुए हैं, खाद्य सुरक्षा कानून के क्रियान्वयन का हश्र क्या होगा? अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज की मानें तो बिहार के करीब 75 फीसदी ग्रामीण परिवारों का नया राशनकार्ड या अंत्योदय कार्ड बन चुका है और शोध नतीजे बताते हैं कि नया कार्ड बनवा चुके ज्यादातर लोगों को पीडीएस से अपना अधिकार हासिल हो रहा है. ऐसे में समिति की सिफारिशों को मानने का अर्थ होगा भोजन के अधिकार को लागू करने की राह पर चल रहे एक राज्य में इस कानून का क्रियान्वयन बीच में ही ठप पड़ना.

विपक्ष में रहते भाजपा भोजन का अधिकार कानून को और मजबूत बनाने की बात कहती थी. तो क्या ‘विकास' के नारे को हासिल ‘बहुमत' का बल सरकार को वादों की राह पर उल्टी दिशा में हांक रहा है?


http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/305546.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close