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न्यूज क्लिपिंग्स् | गरीबी के कारण छोड़ देते हैं 21 फीसदी बच्चे पढ़ाई

गरीबी के कारण छोड़ देते हैं 21 फीसदी बच्चे पढ़ाई

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published Published on May 19, 2010   modified Modified on May 19, 2010

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। तमाम दावों व वादों के प्रचार-प्रसार से देश में पढ़ाई-लिखाई की तस्वीर भले ही आकर्षक लगने लगी हो, लेकिन जमीनी हकीकत ज्यादा नहीं बदली है। आलम यह है कि सरकार चाहकर भी सभी बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि पैदा करने में नाकाम रही है। तमाम दावों के बीच देश के 21 प्रतिशत बच्चों के बीच में पढ़ाई छोड़ देने की मुख्य वजह अब भी उनकी गरीबी है।

देश में पढ़ाई की इस बदरंग तस्वीर राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन [एनएसएसओ] की ओर कराए गए सर्वे में सामने आई है। बुधवार को जारी रिपोर्ट 'भारत में शिक्षा : भागीदारी एवं खर्च' बताती है कि 20 प्रतिशत बच्चों में पढ़ाई को लेकर कोई रुचि ही नहीं है। नौ प्रतिशत बच्चों के खुद माता-पिता को ही नहीं लगता कि पढ़ाई में कुछ रखा है। इसी क्रम में दस प्रतिशत महज इसलिए छोड़ देते हैं, क्योंकि उन्हें उनके मनमुताबिक पढ़ने का मौका नहीं मिलता। जबकि दस प्रतिशत ऐसे भी हैं जो पढ़ाई के बोझ या फेल होने के डर के कारण बीच में स्कूल जाना छोड़ देते हैं।

सर्वे बताता है कि कक्षा एक से आठ तक की कक्षाओं में राष्ट्रीय स्तर पर सकल उपस्थिति 80 प्रतिशत है। इस मामले में उच्च उपस्थिति वाले राज्यों में हिमाचल प्रदेश 96 प्रतिशत, केरल 94 प्रतिशत और तमिलनाडु 92 प्रतिशत पर हैं। जबकि देश में सबसे खराब उपस्थिति दर्शाने वाले राज्यों में बिहार 74 प्रतिशत, झारखंड 81 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश 83 प्रतिशत तक ही सीमित हैं। जुलाई 2007 से जून 2008 के बीच हुए इस सर्वे में एक सच्चाई यह भी उभरी कि 22 प्रतिशत अभिभावकों ने शिक्षा को जरूरी न मानते हुए अपने बच्चों को स्कूलों में दाखिला ही नहीं दिलाया। च्च्चों को दाखिले से दूर रखने वाले 21 प्रतिशत अभिभावकों ने तो आर्थिक तंगी को मजबूरी बताया, जबकि 33 प्रतिशत मां-बाप की च्च्चों को पढ़ाने में खुद की ही रुचि नहीं थी।

रिपोर्ट बताती है कि शिक्षा के स्तर के लिहाज से ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों में प्रति छात्र सालाना औसत निजी खर्च में भी खासा अंतर है। मसलन, तकनीकी शिक्षा में ग्रामीण क्षेत्र के एक छात्र का सालाना औसत निजी खर्च जहां 27,177 रुपये है, वहीं नगरीय क्षेत्र के एक छात्र का सालाना औसत निजी खर्च 34,822 रुपये है। इसी तरह व्यावसायिक शिक्षा में यह निजी खर्च ग्रामीण छात्र पर जहां 13,699 रुपये तक सीमित है, वहीं नगरीय क्षेत्र का छात्र अपने ऊपर सालाना औसतन 17,016 रुपये खर्च करता है।


http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6425404.html


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