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न्यूज क्लिपिंग्स् | गांव की सेहत का पहिया है सहिया दीदी

गांव की सेहत का पहिया है सहिया दीदी

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published Published on Oct 16, 2013   modified Modified on Oct 16, 2013

झारखंड जैसे पिछड़े राज्य के गांवों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति अब भी काफी खराब है. गांव में समय पर स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिलने के कारण ही यहां गर्भवती महिलाओं व नवजात बच्चों की असमय मौत हो जाती है. भारत सरकार ने इस समस्या को समझते हुए हर गांव में महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता तैनात किया है. देश के दूसरे राज्यों में इन्हें आशा कहा जाता है, जबकि झारखंड में इन्हें सहिया या सम्मान से सहिया दीदी भी कहा जाता है. इसकी शुरुआत 2007 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के जरिये की गयी. महत्वपूर्ण बात यह कि झारखंड में इनकी प्रति हजार आबादी पर औसत उपलब्धता देश के आंकड़े से अधिक है. यहां प्रति 650 आबादी पर एक सहिया है. राज्य में कुल 40, 964 सहिया हैं. सहिया को अपने गांव में स्वास्थ्य से जुड़े हर एक कार्य के लिए उस काम के अनुरूप तय पैसे दिये जाते हैं. काम के आधार पर पैसा उसे इसलिए दिया जाता है ताकि वह काम में रुचि ले और लापरवाही नहीं करे. अधिक पैसे कमाने के लिए अधिक से अधिक सक्रियता से लोगों के लिए कार्य करे. झारखंड के सुदूर ग्रामीण इलाकों में खराब स्वास्थ्य ढांचे के बीच ये बेहतर काम कर रही हैं और सबसे बड़ी बात यह कि ये लोगों को स्वास्थ्य को लेकर जागरूक कर रही हैं. आइए जानें क्या है इनकी भूमिका और जिम्मेवारी :

परिवार नियोजन एवं महिला नसबंदी
सहिया की यह जिम्मेवारी है कि वह अपने गांव या कार्यक्षेत्र में परिवार नियोजन एवं महिला नसबंदी को बढ़ावा दे. ताकि जनसंख्या नियंत्रण हो व बेवजह गर्भपात कराने की स्थिति उत्पन्न नहीं हो. परिवार नियोजन के लिए महिला की नसबंदी कराने के बाद सहिया की जिम्मेवारी होती है कि वह अगले 48 घंटे तक उक्त महिला की देखरेख करे. इसके लिए उसे सरकार की ओर से तय मेहनताना दिया जाता है. उसकी जिम्मेवारी होती है कि वह अपने इलाके में महिलाओं को परिवार नियोजन के फायदे समझाये और सरकार के इस कार्यक्रम का लाभ उठाने के लिए प्रेरित करे.

राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम
राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम में यह व्यवस्था बनायी गयी है कि जब गांव में डाट्स प्रोवाइडर के द्वारा टीबी की दवा का वितरण किया जाना हो, तो आशा(सहिया) भी डाट्स प्रोवाइडर के रूप में चिह्न्ति की जायें. रोगी को दवा देने व उसका इलाज किये जाने के बाद डाट्स सुपरवाइजर के सत्यापन के आधार पर उन्हें मेहनताना भी दिया जाना चाहिए. इस तरह आशा या सहिया गांव में व्याप्त टीबी जैसी गंभीर समस्या से निबटने में भी मददगार साबित होती हैं.

मातृ एवं शिशु कल्याण कार्यक्रम
सहिया की जिम्मेवारी है कि वह प्रसव के बाद महिला व उसके बच्चे का ख्याल रखे. प्रसव के बाद एक सप्ताह के अंदर उसे कम से कम दो बार उस महिला की देखरेख करनी होती है. गर्भवती की देखभाल एवं प्रसव के अगले एक घंटे के अंदर बच्चे को मां का स्तनपान कराने के लिए उसे अलग से प्रोत्साहन राशि दी जाती है. सहिया को इस कार्य के लिए इसलिए प्रोत्साहित किया जाता है, क्योंकि मां का पहला गाढ़ा दूध बच्चे के लिए अमृत समान होता होगा. आप अखबार-टीवी में ऐसे विज्ञापन देखते होंगे व रेडियो में सुनते होंगे. दरअसल, मां का पहला गाढ़ा दूध बच्चे के शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत करता है और उसे अधिक स्वस्थ बनाता है व रोगों से बचाता है. लेकिन इस महत्वपूर्ण बात को लेकर अभी गांवों में जागरूकता का अभाव है. किसी गर्भवती महिला को कोई परेशानी उत्पन्न होने या नवजात बच्चे को कोई परेशानी होने पर अस्पताल तक पहुंचाने के लिए भी उसे प्रोत्साहन राशि दी जाती है, ताकि उनके स्वास्थ्य की देखभाल करते हुए जिंदगी बचायी जा सके. स्थानीय अस्पताल के स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा प्रमाणित करने के बाद उसे यह धनराशि दी जाती है. झारखंड के ग्रामीण अंचलों में इस प्रयोग के अच्छे नतीजे देखने को मिल रहे हैं. इससे महिलाओं की जागरूकता भी बढ़ी है.

स्वच्छता के लिए जागरूकता लाना
किसी भी आशा कार्यकर्ता की यह जिम्मेवारी होती है कि वह अपने कार्यक्षेत्र में स्वच्छता को लेकर लोगों में जागरूकता लाये. क्योंकि स्वच्छता ही स्वास्थ्य का आधार होती है. जहां सफाई होती है, वहां के लोग कम बीमार पड़ते हैं और गंदी जगह के लोग अधिक बीमार पड़ते हैं. यह भी महत्वपूर्ण है कि वह लोगों को खुले में शौच करने से होने वाले नुकसान को लेकर जागरूक करे व लोगों को घर में शौचालय निर्माण के लिए प्रेरित करे. गांव में बीमारियों से बचाव के लिए दवाओं के छिड़काव, स्वच्छ जल के महत्व आदि के बारे में लोगों को बताये. स्वच्छता को लेकर लोग जितने सचेत होंगे, बीमारियों का खतरा उतना कम होगा.

गांव में समूह बैठकें
गांव में ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली सेवाओं के प्रचार-प्रसार एवं स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए आशा द्वारा प्रति माह दो बैठकें आयोजित की जानी है, जिसमें एक बैठक महिलाओं के लिए और एक बैठक किशोर-किशोरियों के लिए आयोजित की जानी है. बैठक में ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली सेवाओं की जानकारी और स्थानीय स्तर पर आवश्यक स्वास्थ्य संबंधी सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जायेगा. इस तरह की बैठक का आयोजन करने के लिए उन्हें पैसे दिये जाने का प्रावधान है. हालांकि इसके लिए उसे बैठक में भाग लेने वाले किशोर-किशोरियों की सूची व वार्ता के विषय की जानकारी प्रस्तुत करनी होगी. मुखिया को भी इस तरह की बैठक को लेकर गंभीर रहना चाहिए.

मुखिया जी लें रुचि
मुखिया जी की अपने पंचायत में वही हैसियत है, जो देश में प्रधानमंत्री व राज्य में मुख्यमंत्री की है. लेकिन ज्यादातर मुखिया इस बात को समझ नहीं पा रहे हैं. मुखिया जी अपने पंचायत क्षेत्र की प्रत्येक गतिविधि पर निगाह रखें. अगर वे सहिया व सरकारी स्वास्थ्य कर्मियों के कामकाज पर निगाह रखेंगे तो उनके पंचायत के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिलेगी. स्वास्थ्य व स्वच्छता के प्रति जागरूकता लाने से बीमारी भी कम फैलेगी.

राष्ट्रीय अंधता निवारण कार्यक्रम
सहिया की मदद राष्ट्रीय अंधता निवारण कार्यक्रम में भी लिये जाने का प्रावधान है. 15 साल तक की उम्र के बच्चों की निगाह की जांच स्वास्थ्य इकाई से करवाने व आवश्यकतानुसार चश्मा लगाने के लिए प्रेरित करने की भी उस पर जिम्मेवारी है. इसके लिए भी उसे पैसे दिये जाने का प्रावधान है. मोतियाबिंद के रोगी को ऑपरेशन करवाने, चश्मा दिलवाने व रोगी का फॉलोअप करने के लिए भी उसे पैसे दिये जाते हैं. इस तरह के अभियान से उसे जोड़ने का उद्देश्य है कि गांव में वह लोगों को आंख के स्वास्थ्य को लेकर जागरूक करे व उन्हें दृष्टिहीनता से बचाने में मदद करे.

राष्ट्रीय कुष्ठ नियंत्रण कार्यक्रम
आशा की मदद राष्ट्रीय कुष्ठ नियंत्रण कार्यक्रम के लिए भी लिये जाने का प्रावधान है. कुष्ठ पीड़ित रोगी की पहचान, उसे दवा दिलवाने व एक नियमित समय अवधि तक उसकी देखभाल करने के लिए उसे पैसे दिये जाने का प्रावधान है. यह व्यवस्था उन्हें काम के प्रति अधिक गंभीर बनाने के लिए है. ऐसे अभियान से उसे जोड़ने से कुष्ठ को लेकर स्वास्थ्य जागरूकता आने में मदद मिलती है. अपने यहां अब भी कुष्ठ एक बड़ी समस्या है. सहिया या आशा की सक्रियता से लोगों के इस समझाने में मदद मिलती है कि कुष्ठ दैवीय प्रकोप या किसी पाप का परिणाम नहीं है, बल्कि रोग है.

नियमित टीकाकरण कार्यक्रम
अपने इलाके में सहिया एक वर्ष तक के बच्चे को पोलियो, डीपीटी के तीन टीके, खसरे का एक टीका, विटामिन ए की प्रथम खुराक पिलवा देती है, तो समय से पूर्व बच्चे के प्रतिरक्षा के लिए उसे मेहनताना दिया जाता है. पल्स पोलियो अभियान के दौरान टीम के साथ घर-घर टीकाकरण करने के लिए जाने पर भी उसे पैसे दिये जाते हैं. उसकी सक्रियता से बेहतर नतीजे मिलते हैं, क्योंकि वह सबों को निजी तौर पर पहचानती है. जब आपके गांव में कोई विशेष टीकाकरण अभियान चलता हो तो लोगों को गतिशील करने की उस पर जिम्मेवारी होती है, ताकि अधिक से अधिक परिवार वाले अपने बच्चों को टीका दिलवायें और बच्चे का जीवन सुरक्षित करने की दिशा में कदम बढ़ायें. आम लोगों पर भी यह जिम्मेवारी है  कि वह सहिया का सहयोग करें.

जन्म-मृत्यु पंजीकरण
सहिया की जिम्मेवारी है कि वह अपने कार्यक्षेत्र में हर जन्म लेने वाले बच्चे व मरने वाले व्यक्ति का पंजीकरण कराये. इसके लिए भी प्रति पंजीकरण के हिसाब से उसे भुगतान किया जाता है. इस कार्य से सहिया को जोड़ने का उद्देश्य है कि सरकार को गांव-गांव में होने वाले जन्म व मौत की अद्यतन जानकारी मिल सके. ताकि उसके अनुरूप स्वास्थ्य कार्यक्रम, विकास योजनाएं बनाने में उसे मदद मिले. जन्म-मृत्यु के पंजीयन से यह भी पता चल जाता है कि मौत किस कारण से हुई. किस तरह की बीमारी से लोगों की मौत होती है या फिर गांव की जनसंख्या दर भी पता चलती है. सरकार के लिए अपने किसी भी बड़ी योजना को कार्यरूप देने के लिए प्रमाणिक आंकड़ों का संकलन बेहद जरूरी होता है.

ग्रामीण स्वास्थ्य योजना
ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं की अद्यतन स्थिति की जानकारी के लिए तथा गांव की कार्ययोजना बनाने में उपयोगी सूचना का संज्ञान लेने के लिए सहिया या आशा को एक विलेज हेल्थ रजिस्टर उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान है, जिसमें उसके द्वारा सूचनाएं भरी जायेंगी. रजिस्टर को पूरा करने के लिए व उसे अपडेट करने के लिए भी उसे वित्तीय वर्ष के अंत में (31 मार्च) एक तय धनराशि दिये जाने का प्रावधान है. इसके लिए आशा को रजिस्टर पूर्ण करना होगा. अगर अपने कामकाज के दौरान उसे भरने में वह कोई परेशानी महसूस हो, तो स्थानीय चिकित्सा पदाधिकारी, एएनएम रजिस्टर भरने में सहायता करेंगे. रजस्टिर में प्रमाणिक सूचनाएं ही भरी जानी चाहिए.

कौन बन सकती है सहिया

गांव की कोई ऐसी महिला जिसकी उम्र 25 वर्ष से 45 वर्ष के बीच हो वह सहिया या आशा कार्यकर्ता बन सकती है. इसके लिए जरूरी है कि वह महिला उसी गांव की विवाहिता, विधवा या तलाकशुदा हो.
सहिया बनने के लिए दावेदार महिला कम से कम आठवीं कक्षा तक पढ़ी होनी चाहिए. इससे कम योग्यताधारी महिला को तभी सहिया चुना जा सकता है, जब उस गांव में कोई आठवीं पास महिला नहीं मिले. उसके चयन में यह ध्यान रखना चाहिए कि वह अपने काम में रुचि ले व हमेशा बेहतर करने की कोशिश करे.
सहिया के चयन में जिला नोडल ऑफिसर, ब्लॉक नोडल ऑफिसर, ग्राम स्वास्थ्य समिति, ग्रामसभा, आंगनबाड़ी केंद्र, एसएचजी की भूमिका होती है.
सहिया दीदी हैं आपके लिए मददगार
सहिया की जिम्मेवारी है कि वह उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं, उसके उपयोग व उपलब्धता के बारे में आपको जागरूक करे.
महिला गर्भावस्था में देखभाल, गर्भनिरोध, प्रजनन तंत्र के संक्रमण और शिशु की देखभाल के लिए उनसे मदद ले सकती हैं.
गांव में जन्म-मृत्यु, स्वास्थ्य संबंधी असामान्य घटनाओं जैसे महामारी आदि की सूचना स्वास्थ्य प्रदाता सहिया से लेते हैं.
स्वास्थ्य के मुद्दों पर समुदाय को संगठित करने व गांव में स्वास्थ्य योजना को बनाने में ग्राम स्वास्थ्य समिति को सहिया सहायता करती है.
ग्राम स्वास्थ्य एवं स्वच्छता संबंधी सेवाओं की उपलब्धता एवं गुणवत्ता के बारे में सहिया समुदाय को संगठित करती है.
सहिया नवजात की देखभाल और बच्चों की बीमारी के संबंध में गांव में प्रबंधन का कार्य करेगी.
सहिया घरेलू शौचालय निर्माण, संस्थागत प्रसव एवं परिवार नियोजन कराने के लिए आपको प्रोत्साहित करने का कार्य करेगी.
समुदाय की आवश्यकता के अनुसार सहिया सामान्य दवाएं गांव में उपलब्ध करायेगी.
सहिया के पास एक किट होना चाहिए, जिसमें आवश्यक दवाएं होनी चाहिए. उसे स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां दी जाती है, ताकि आवश्यकता पड़ने पर वह किसी व्यक्ति को प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करवा सके.
सहिया स्वास्थ्य संबंधी अच्छी आदतों के लिए प्रोत्साहित करे.

ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता एवं पोषण समिति की जिम्मेवारी
ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण समिति की जिम्मेवारी है कि गांव के लोगों के स्वास्थ्य की स्थिति की जानकारी रखे, यह देखे कि कोई बीमारी या महामारी तो उसके यहां नहीं फैलने वाली है. अगर आसपास कहीं महामारी या बीमारी फैली है तो उससे अपने गांव को बचाने के उपाय ढूंढे. लोगों को जागरूक करे व आवश्यक दवाओं का छिड़काव व वितरण करे. इस समिति का नियंत्रण अपने गांव की सहिया या आशा कार्यकर्ता पर भी होता है. उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसके गांव की सहिया ठीक से कार्य करे व लोगों को आवश्यक व प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराये. अगर कहीं ऐसा लगता है कि सहिया अपनी जिम्मेवारियों का उचित ढंग से निर्वहन नहीं कर रही है, तो उसे बदलने की दिशा में भी आवश्यक पहल करे.

ग्राम स्वास्थ्य समिति के कुछ प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं :
सहिया का चयन और उसके कार्यो के सही संपादन के लिए सहयोग एवं पर्यवेक्षण करना.
समुदाय की स्वास्थ्य जरूरतों की पहचान और उन विषयों पर जागरूकता पैदा करना.
स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करानेवाले सरकारी एवं गैर सरकारी व्यक्ति, सहिया, समुदाय के सदस्य व अन्य पक्षों के बीच स्वास्थ्य की जरूरतों और सेवाओं का सामंजस्य स्थापित करना.
एएनएम, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, सहिया और समुदाय के साथ मिलकर ग्राम स्वास्थ्य योजना को तैयार करना और इस योजना को नियत समय पर कार्यान्वयन सुनिश्चित करना तथा ग्राम स्वास्थ्य कोष एवं मुक्त राशि को संचालित करती है.
लोगों के जीवन स्तर में सुधार के लिए स्वास्थ्य सेवा की निगरानी एवं सुधार के लिए अनुशंसा करती है.


http://www.prabhatkhabar.com/news/53301-story.html


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