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न्यूज क्लिपिंग्स् | गांवों से जुड़ें अधिकारी-- प्रभात कुमार

गांवों से जुड़ें अधिकारी-- प्रभात कुमार

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published Published on Mar 14, 2018   modified Modified on Mar 14, 2018
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते शनिवार को कहा था कि देश के पिछड़े जिलों में युवा अधिकारियों की तैनाती हो, तो इससे उन जिलों का विकास संभव हो सकेगा. देश के 115 पिछड़े जिलों में अगर विकास को बढ़ावा मिले, तो देश का विकास स्वयं ही हो सकेगा. हमारे प्रधानमंत्री का यह विचार अति उत्तम है.

इसमें कोई संदेह नहीं है, इसलिए इसकी सराहना होनी चाहिए. यदि युवा अधिकारी पिछड़े क्षेत्रों में तैनात किये जायेंगे, तो निश्चय ही वे वहां अच्छा काम करेंगे, क्योंकि युवा अधिकारी ज्यादा ऊर्जावान होते हैं. इसमें भी कोई शक नहीं कि इस समय ऐसे युवा अधिकारियों- चाहे वे आईएएस हों या आईपीएस हों, या फिर प्रादेशिक सेवा के हों- की कोई कमी नहीं है. इस संदर्भ में मैं यहां कुछ बातें कहना चाहूंगा.

प्रधानमंत्री की बातों को जमीन पर उतारने में प्रदेश सरकारों का सहयोग बहुत जरूरी है, क्योंकि जिलाधिकारियों की नियुक्ति प्रदेश सरकारें ही करती हैं.

सभी मुख्यमंत्रियों, विशेषकर जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं, उनको प्रधानमंत्री इस बात को सार्थक बनाने की सलाह दे सकते हैं कि वे अपने-अपने राज्यों के पिछड़े जिलों में होनहार युवा अधिकारियों की पोस्टिंग करें. यह कोई मुश्किल काम भी नहीं है. इसके लिए अगर एक ठोस प्रक्रिया बनायी जाये, तो बहुत ही आसानी से यह काम हो सकता है.

इस प्रक्रिया के लिए दो बातें बहुत जरूरी हैं. एक तो यह कि ऐसे युवा अधिकारियों का चयन हो, जिनमें कुछ कर गुजरने का जज्बा हो. इसमें सिर्फ उम्र को ही आधार नहीं बनाया जाना चाहिए. मैं समझता हूं कि इस चयन में कोई बड़ी कठिनाई नहीं है. यह चयन वहां से भी हो सकता है, जहां उनकी ट्रेनिंग होती है और ट्रेनिंग के दौरान उनके हुनर का अच्छे से पता चल जाता है.

चयन के जरिये ही उनकी क्षमता और हुनर के एतबार से पिछड़े जिलों में उनकी पोस्टिंग की व्यवस्था होनी चाहिए, तभी प्रधानमंत्री की बातें सार्थक सिद्ध होंगी कि पिछड़े जिलों के विकास से देश का विकास स्वयं हो सकेगा.

दूसरी बात यह है कि ट्रेनिंग के अलावा ऐसे अधिकारियों के बारे में जानकारियां जुटायी जाएं, जिन्होंने अपने जिले में अपने ज्ञान और हुनर का शानदार इस्तेमाल करते हुए उत्कृष्ट कार्य किये हों और उन कार्यों से वहां के स्थानीय निवासियों को बहुत लाभ मिला हो. समाज में उनके ऐसे महत्वपूर्ण योगदानों के लिए लोग उनकी प्रशंसा करते हों. ऐसे अधिकारियों को पिछड़े जिलों में पोस्टिंग देकर उस क्षेत्र के विकास को सुनिश्चित किया जा सकता है.

मैंने अक्सर अखबारों में देखा है कि फलां जिले के अधिकारी ने समाज के लिए कोई उत्कृष्ट काम करके समाज में एक मिसाल कायम की है. ऐसे अधिकारियों को अलग से ट्रेनिंग देने की भी जरूरत नहीं है. मेरे पास ऐसे बहुत उदाहरण हैं.

केरल के कोझिकोड में एक अधिकारी थे 28-30 साल के प्रशांत नायर, जिनका स्थानांतरणशायद कुछ महीने पहले ही भारत सरकार में हुआ है, उन्होंने दृढ़ निश्चय किया था कि उनके जिले में कोई भी खाली पेट नहीं सोयेगा.

यानी कोई भी भूखा नहीं रहेगा. इसके लिए उन्होंने एक बजट बनाया था, जिसे ऑपरेशन सुलेमान नाम दिया गया. इसके तहत एक भूखा कोझिकोड के किसी भी सरकारी दफ्तर में जाकर एक कूपन ले सकता है और उस कूपन से वहां के किसी भी होटल में खाना खा सकता है.
इस ऑपरेशन को चलाने के लिए प्रशांत ने कोई सरकारी मदद नहीं ली, बल्कि लोक-सहयोग को सुनिश्चित किया था. इस ऑपरेशन से यही समझ में आता है कि एक जिलाधिकारी किस तरह से समाज को आपस में जोड़ सकता है और एक बड़ी समस्या को चुटकियों में हल कर सकता है. मेरी नजर में यह एक प्रकार का शानदार सामाजिक विकास ही है.

एक और उदाहरण मुझे याद आ रहा है. मणिपुर के एक युवा अधिकारी हैं आर्मस्ट्रांग पामे. मणिपुर में एक ऐसा गांव था, जो पहाड़ी क्षेत्र में पड़ता था और वहां के लोगों को शहर आने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता था.

करीब सौ किलोमीटर की कठिनतम दूरी तय करके शहर जाना पड़ता था. पामे ने सिर्फ श्रमदान (स्थानीय लोगों की मेहनत) के सहारे ही बिना किसी सरकारी सहयोग से वहां एक शानदार सड़क का निर्माण करवाया. इस काम में लोगों ने बढ़-चढ़कर आर्थिक दान भी दिया और पामे की योजना को कामयाब बनाया. यह भी एक मिसाल है, जिसमें किसी सरकारी फंड की जरूरत नहीं पड़ी.

इन दो उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि हर प्रदेश में ऐसे युवा और होनहार अधिकारी हैं. और सिर्फ जिलाधिकारी ही नहीं हैं, बल्कि अगर खोजा जाये, तो अन्य अधिकारी भी मिलेंगे, जिन्होंने अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट काम किये हों.

एक जिले में कई तरह के अधिकारी होते हैं, उनमें प्रादेशिक स्तर के भी अधिकारी होते हैं, इन सबको ट्रेनिंग और एक्सपोजर देकर हम पिछड़े जिलों की दशा और दिशा बदल सकते हैं. लेकिन हां, यह सिर्फ कहने-सुनने की बात नहीं है, इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की बहुत ज्यादा जरूरत है, क्याेंकि सरकारें ही इस काम को कर सकती हैं.

इसके लिए न तो किसी फंड की जरूरत है, और न ही किसी बड़ी प्रक्रिया के क्रियान्वयन की. बस जरा सी इच्छाशक्ति के चलते ऐसे युवा अधिकारियों का चयन करके समाज में विकास की एक नयी कहानी लिखी जा सकती है.

https://www.prabhatkhabar.com/news/columns/villages-affiliate-officers/1132995.html


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