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न्यूज क्लिपिंग्स् | गैर आदिवासियों को जमीन न बेच पाने के कानून से परेशान हो रहे आदिवासी

गैर आदिवासियों को जमीन न बेच पाने के कानून से परेशान हो रहे आदिवासी

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published Published on Apr 2, 2018   modified Modified on Apr 2, 2018
रायपुर। आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए बने कानून अब उनके लिए परेशानी का सबब बन रहे हैं। 1959 में भू-राजस्व संहिता लागू हुई तो प्रावधान किए गए कि आदिवासी की जमीन कोई गैर आदिवासी नहीं ले सकता।

यह भी कानून बनाया गया कि अगर किसी आदिवासी के पास पांच एकड़ से कम भूमि है तो वह आदिवासी को भी अपनी भूमि बिना कलेक्टर की अनुमति के नहीं बेच सकता।

अब इन कानूनों में संशोधन की मांग उठ रही है। हालांकि सर्व आदिवासी समाज का कहना है कि कलेक्टर की अनुमति से जमीन गैर आदिवासी को भी बेची जा सकती है इसलिए कानून में बदलाव करना उचित नहीं होगा।

नईदुनिया की पड़ताल में कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें आदिवासियों ने जायज कारणों का हवाला देकर जमीन बेचने की अनुमति मांगी लेकिन कलेक्टरों ने अनुमति नहीं दी। ऐसे मामले मंत्रालय में रोज आ रहे हैं। कांकेर जिले के एक आदिवासी छात्र ने एमबीबीएस की फीस भरने के लिए जमीन बेचने की अनुमति मांगी लेकिन उसे अनुमति नहीं मिल पाई।

ऐसे लोगों का कहना है कि जब कानून बना था तब समाज में जागरूकता नहीं थी। लेकिन अब जबकि आदिवासी समाज के लोग शिक्षित हैं इसलिए यह कानून बदल देना चाहिए। अभी भू-राजस्व संहिता की धारा 165 (6) के तहत ऐसे मामलों में कलेक्टर की अनुमति अनिवार्य है।

ऐसे-ऐसे मामले

केस-1

भिलाई निवासी संतोष कुमार एक व्यवसायी हैं। वे अपने व्यवसाय का विस्तार करने के लिए राजनांदगांव जिले के मलईडबरी में स्थित अपनी 1.40 एकड़ जमीन गैर आदिवासी को बेचना चाहते हैं। उन्होंने 2013 से आवेदन लगाया है लेकिन अनुमति नहीं मिल पाई। अब उन्होंने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर इस कानून में संशोधन की मांग की है।

केस-2

जांजगीर-चांपा जिले के भुवन सिंह कंवर बीमार हैं। उनके इलाज में सात लाख का खर्च आएगा। इससे पहले माता-पिता के उपचार और उनकी मृत्यु के बाद सामाजिक कार्य के लिए उन्हें कर्ज लेना पड़ा था। उनके पास पामगढ़ के ग्राम बंदेला में 3.13 एकड़ जमीन है जिसमें से एक एकड़ वे गैर आदिवासी को बेचना चाहते हैं। उन्हें कोई आदिवासी खरीददार नहीं मिल रहा।

समाज के पास लाएं मामले

सर्व आदिवासी समाज के सचिव बीएस रावटे का कहना है कि सही कारण हो तो कलेक्टर अनुमति देते हैं। झूठ बोलकर जमीन बेचने से ही दिक्कत होगी। प्रकरण सर्व आदिवासी समाज में लेकर आएं। कोई न कोई खरीददार समाज से ही मिल जाएगा। यह कहना उचित नहीं कि समाज में जमीन बेचने से सही दाम नहीं मिलता।

कानून में अपील का प्रावधान है

राजस्व विभाग के सचिव एनके खाखा का कहना है कि अनुसूचित क्षेत्रों में बिना कलेक्टर की अनुमति के जमीन नहीं बेची जा सकती। अगर जायज कारण है और कलेक्टर अनुमति नहीं दे रहे कमिश्नर के पास अपील करें। यह कानून जरूरी है। कई गरीब किसान साहूकारों के चंगुल में फंसकर जमीन बेचने को मजबूर होते हैं। इसीलिए कलेक्टर पहले परीक्षण कराते हैं फिर अनुमति देते हैं।


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