Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | घाटे का सौदा नहीं है जीएसटी - सुषमा रामचंद्रन

घाटे का सौदा नहीं है जीएसटी - सुषमा रामचंद्रन

Share this article Share this article
published Published on May 7, 2015   modified Modified on May 7, 2015
स्टॉक मार्केट में उथलपुथल का माहौल है और विदेशी निवेशकों की अब मोदी सरकार से ये उम्मीदें टूटने लगी हैं कि वह भारत में बहुप्रतीक्षित आर्थिक सुधारों का पथ प्रशस्त कर पाएगी। पिछले साल नरेंद्र मोदी द्वारा लोकसभा चुनाव जीतने के बाद से जिन विदेशी निवेशकों ने स्टॉक मार्केट में भरपूर पूंजी लगाना शुरू किया था, अब वे अपना पैसा वापस खींच रहे हैं। वे अतीत की तारीखों से लागू किए जाने वाले करों को लेकर भयभीत हैं। भारतीय मुद्रा कमजोर हो रही है और इस साल फिर औसत मानसून की आशंका जताई गई है। ऐसे में यूपीए सरकार के नीतिगत पंगुपन से छुटकारा दिलाने का वादा कर सत्ता में आने वाली मोदी सरकार के लिए तस्वीर बहुत उजली नजर नहीं आती। सरकार द्वारा लोकसभा में जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के लिए 122वें संविधान संशोधन विधेयक को पास कराने की कोशिशों को इसी पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए। जीएसटी उन बड़े आर्थिक सुधारों में से है, जो सालों से लंबित है और जिसे लागू किए जाने से आर्थिक विकास दर में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी दर्ज की जा सकती है। इससे घरेलू और विदेशी निवेशकों की सरकार के प्रति अनेक शिकायतें भी दूर हो जाएंगी।

वैसे भी देश पहले ही इस नवोन्मेषी कर प्रणाली का बहुत इंतजार कर चुका है। जीएसटी की रूपरेखा आज से 14 वर्ष पहले बनना शुरू हुई थी, जब अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे। तब से लगभग हर वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में जीएसटी को लागू करने के लक्ष्यों का उल्लेख किया है। लेकिन अब जब विधेयक प्रस्तुत किया गया है तो एम्पॉवर्ड कमेटी के प्रमुख और केरल के वित्त मंत्री केएम मणि का कहना है कि इस विधेयक पर सर्वसम्मति नहीं है। और विपक्षी दलों ने भी संकेत दे दिए हैं कि वे इसे आसानी से पास नहीं होने देंगे। लिहाजा, अब भी इसके पास होने में कई अड़चनें हैं। अव्वल तो यही कि विधेयक का संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित होना जरूरी है और राज्यसभा में सरकार की गाड़ी हर बार की तरह इस बार भी अटकना तय है। दूसरी यह कि इसकी राज्यों के 50 प्रतिशत विधायकों द्वारा पुष्टि करना आवश्यक है। और तीसरी यह कि इसे देशभर में लागू करने से पहले सूचना प्रौद्योगिकी का एक राष्ट्रव्यापी बुनियादी ढांचा स्थापित करना होगा।

लेकिन आखिरकार जीएसटी है क्या? यह देश की कर-प्रणाली में व्याप्त एकरूपता के अभाव को समाप्त करते हुए ऑक्ट्राई, सेंट्रल एक्साइज, मनोरंजन कर की रेलमपेल का अंत करना है। इसे वस्तुओं और सेवाओं दोनों पर लगाया जाएगा। इसके तहत वस्तुओं के फैक्टरी से उत्पादित होने के बिंदु पर कर लगाए जाने के बजाय उनके विक्रय या आपूर्ति के बिंदु पर वैल्यू-एडेड कर लगाया जाता है, जिससे आपूर्ति की श्रृंखला के विभिन्न् स्तरों पर कराधान के विभिन्न् बिंदुओं पर होने वाले भ्रष्टाचार और कर-अपवंचन की गुंजाइश समाप्त हो जाती है। दुनिया के कोई 140 देशों ने जीएसटी प्रणाली को अपनाया है। इनमें से अधिकांश में जीएसटी के कारण कर-संग्रह की दशा में नाटकीय सुधार हुआ है और इससे जीडीपी विकास-दर बढ़ी है। नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च का कहना है कि अकेले जीएसटी को लागू करने भर से ही देश की जीडीपी विकास दर 0.9 से 1.7 प्रतिशत तक बढ़ सकती है!

भारत में जीएसटी का प्रस्ताव रखे जाने के पूर्व राज्यों से रायशुमारी की एक लंबी प्रक्रिया चली थी, क्योंकि राज्य इस बात को लेकर चिंतित थे कि वस्तुओं के अंतरराज्यीय परिवहन पर लगाए जाने वाले ऑक्ट्राई जैसे प्रादेशिक करों के समाप्त होने से उन्हें राजस्व की हानि होगी। इसी का परिणाम है कि अब जीएसटी में संशोधन किया जा रहा है, ताकि राज्यों की चिंताओं का हल किया जा सके। राज्यों द्वारा मांग की जा रही है कि एक केंद्रीय जीएसटी हो और एक राज्यों का जीएसटी हो। कुछ वस्तुओं को जीएसटी के दायरे से बाहर कर दिया जाए, क्योंकि उनसे बड़ी मात्रा में राजस्व की प्राप्ति होती है। इनमें अल्कोहल और पेट्रोलियम उत्पाद शामिल हैं। तीसरी बात, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे उत्पादक राज्यों ने अपने यहां उत्पादित होने वाली वस्तुओं पर अतिरिक्त एक प्रतिशत जीएसटी लगाने की बात कही है। और सबसे अंत में, अंतरराज्यीय करों को समाप्त करने से पैदा होने वाली समस्याओं के निदान के लिए आईजीएसटी नामक एक एकरूप कर लगाया जाए। राज्यों की इन तमाम गैर-व्यावहारिक मांगों के चलते कराधान का अंतिम स्तर अनुमानित रूप से पांच फीसद तक बढ़ जाएगा।

निश्चित ही, कर-विशेषज्ञों द्वारा राज्यों के इन सुझावों की आलोचना की जा रही है और उनका कहना है कि इससे तो हालात मौजूदा कर-प्रणाली की तुलना में भी बदतर हो जाएंगे। लेकिन सच्चाई यही है कि भारत जैसी संघीय-प्रणाली में अगर सरकार को आर्थिक विकास की डगर पर आगे बढ़ना है तो उसे कुछ समझौते करने ही होंगे। इसमें कोई शक नहीं कि जीएसटी एक 'बिग बैंग" आर्थिक सुधार है। इसके मूल प्रारूप में तमाम बदलाव किए जाने के बावजूद वह मौजूदा कर-प्रणाली से बेहतर ही साबित होगा। केंद्र को उम्मीद है कि जब जीएसटी से बेहतर राजस्व की प्राप्ति होगी तो राज्य सरकारें भी देर-सबेर जीएसटी के प्रति आकर्षित होंगी और निकट भविष्य में इसका एक अधिक सर्वस्वीकृत स्वरूप उभरकर सामने आएगा।

मौजूदा वित्त-वर्ष में सरकार ने जीएसटी लागू करने के बाद होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए राज्य सरकारों को 11 हजार करोड़ रुपए देने का वादा किया है। राज्य सरकारों को जीएसटी से होने वाले कुल नुकसान का आकलन लगभग 34 हजार करोड़ रुपए किया गया है। प्रस्तावित संशोधन विधेयक के अनुसार सरकार राज्यों को पांच साल तक इस तरह के नुकसानों के लिए हर्जाना देगी। उम्मीद की जा रही है कि इस समयावधि में जीएसटी के कारण राज्यों में कर-संग्रह इतना अधिक हो जाएगा कि उन्हें पहले से भी अधिक लाभ होने लगेगा।

नए जीएसटी के निर्माण की प्रक्रिया अंतिम दौर में है। यह तो साफ है कि केवल एक बहुमत प्राप्त सरकार ही इस तरह के आर्थिक सुधार को लागू कर सकती है। निश्चित ही, सरकार का अंतिम लक्ष्य तो यही होना चाहिए कि वह एक ऐसी कर-प्रणाली बनाए, जो कि अपने मूल लक्ष्यों को अर्जित करने में कामयाब रहे। लेकिन संशोधित जीएसटी को लागू करना भी घाटे का सौदा नहीं रहेगा।

(लेखिका आर्थिक मामलों की वरिष्ठ विश्लेषक हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

 


http://naidunia.jagran.com/editorial/expert-comment-gst-is-not-a-bad-deal-359184


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close