Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | चंद्रशेखरन की सफलता के मायने-- आर. सुकुमार

चंद्रशेखरन की सफलता के मायने-- आर. सुकुमार

Share this article Share this article
published Published on Jan 23, 2017   modified Modified on Jan 23, 2017
तकनीकी शिक्षा के मामले में 1980 के दशक का तमिलनाडु अगुवा था। भले ही पठन-पाठन के संदर्भ में वह उतना न हो, मगर माहौल और परिस्थिति के संदर्भ में जरूर था। उस दशक में राज्य सरकार ने निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों को मंजूरी दी थी। हालांकि ऐसा करने वाला एकमात्र राज्य तमिलनाडु नहीं था। लगभग उसी समय कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश ने भी अपने दरवाजे निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों के लिए खोले थे। ऐसा करने के पीछे सबका एक ही उद्देश्य था- मांग व आपूर्ति के बीच के अंतर को पाटना।


अंतर की यह तस्वीर तमिलनाडु में तब ज्यादा ही भयावह थी। सूबे में 69 फीसदी आरक्षण का अर्थ यह था कि कथित अगड़ी जातियों के किसी भी बच्चे को अगर इंजीनियर बनने की इच्छा होती, तो चाहे अपने ज्ञान से या आर्थिक साधन से या फिर दोनों से उसे बेहतरीन इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिला मिल सकता था। इनमें गिण्डि का सेंट्रल इंजीनियरिंग कॉलेज सबसे प्रमुख था, जबकि दाखिला देने में आईआईटी, रुड़की का कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पिलानी का बिड़ला प्रौद्योगिकी व विज्ञान संस्थान और रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज (तिरुचिरापल्लि) भी पीछे नहीं थे।


उस दशक के मध्य तक राज्य में पर्याप्त निजी इंजीनियरिंग कॉलेज खुल चुके थे। तब तक इंजीनियर बनने की चाहत रखने वाले युवा भी सॉफ्टवेयर सर्विस कंपनियों की जांच-पड़ताल शुरू कर चुके थे (या यूं कहें कि सॉफ्टवेयर सर्विस कंपनियों ने ऐसे युवाओं की खोज शुरू कर दी थी)। नतीजतन, इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिला लेने वाले युवाओं में कंप्यूटर साइंस की मांग बढ़ने लगी। बेशक इससे कंप्यूटर विज्ञानियों की संख्या बढ़ी, मगर कई छात्रों की चाहत अब भी पूरी नहीं हो पा रही थीं। तब खासतौर से विज्ञान में स्नातक करने वाले वैसे युवा एनआईआईटी और एप्टेक जैसी कंपनियां में अपना भविष्य देखने लगे, जो कंप्यूटर सीखना चाहते थे, ताकि किसी सॉफ्टवेयर सर्विस कंपनी में नौकरी कर सकें। इसे देखते हुए सरकारी विश्वविद्यालयों और निजी कॉलेजों ने कंप्यूटर एप्लिकेशंस में मास्टर डिग्री की पढ़ाई शुरू करने का फैसला लिया, जिसे एमसीए कहा गया। इसका मुख्य उद्देश्य दूसरे विषयों के उन स्नातक छात्रों को अपनी ओर आकर्षित करना था, जो निजी कंप्यटूर शिक्षण संस्थान के भरोसे थे।


टाटा समूह के नए चैयरपर्सन एन चंद्रशेखरन को भी इसी का फायदा मिला। तिरुचिरापल्लि के रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज (अब एनआईटी) से एमसीए करने के बाद वह टाटा कंसल्टेंसी सर्विस (टीसीएस) में शामिल हुए। यह 1987 का साल था। तब तक चेन्नई टीसीएस के सबसे बड़े डेवलमेंट सेंटर के एक केंद्र के रूप में उभर चुका था। आज भी इसकी एक सड़क कैथेड्रल रोड ही कही जाती है, जबकि राज्य सरकार ने वर्षों पहले उसका नामकरण देश के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन के नाम पर कर रखा है। दिलचस्प यह भी है कि टीसीएस का ऑफिस अमेरिकी वाणिज्य दूतावास के ठीक दाहिने में स्थित था। तब टीसीएस में शामिल होने वाले हर शख्स की यही इच्छा होती थी कि वह किसी-न-किसी असाइनमेंट पर अमेरिका जाए। इसमें कई सफल भी हुए, और चेन्नई ‘अभिभावकों के शहर' के रूप में अपनी राह बखूबी बढ़ चला। मगर यह दूसरी कहानी है, फिर कभी।


चंद्रशेखरन पर लौटते हैं। वह चेन्नई के नहीं हैं। उनकी पैदाइश नामक्कल जिले के मोहनूर में हुई है और उन्होंने 10वीं तक पढ़ाई-लिखाई स्थानीय तमिल माध्यम के स्कूल में की है। बेशक उन्होंने किसी इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला नहीं लिया (उन्होंने कोयंबटूर से एप्लाइड साइंस में स्नातक किया है), मगर वह अपने आसपास के हलचल को बखूबी पढ़ रहे थे। इसमें जाहिर तौर पर उनके दोनों बड़े भाइयों एन श्रीनिवासन और एन गणपति सुब्रमण्यम का भी हाथ था। एमसीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद चंद्रशेखरन टीसीएस के कैथेड्रल रोड ऑफिस में नौकरी करने पहुंचे, जहां उनके भाई एन गणपति सुब्रमण्यम पहले से ही कार्यरत थे। आज भी सुब्रमण्यम टीसीएस से जुड़े हुए हैं।


बेशक चंद्रशेखरन का करियर 1990 के दशक के अंत में तब परवान चढ़ा, जब सीईओ एस रामादुरई के कार्यकारी सहायक के रूप में उन्होंने वर्षों तक काम किया। मगर यह अनुचित होगा कि हम उन कारकों को नजरअंदाज करें, जिन्होंने उनकी सफलता को गढ़ा। जैसे कि उनकी अपनी क्षमताएं, कंप्यूटर साक्षरता को प्रोत्साहित करने वाला माहौल, बेहतर पाठ्यक्रम सुनिश्चित करने वाले कॉलेज और दक्ष लोगों को पहचानने की आईटी उद्योग की पारखी नजर।


इन तमाम कारकों से सिर्फ चंद्रशेखरन लाभान्वित नहीं हुए, और न ही सभी तमिल बाह्मणों को ही इससे फायदा मिला; हालांकि यह ऐसा समुदाय जरूर था, जो भारतीय आईटी प्रोफेशनलों के पश्चिम-पलायन का अगुवा साबित हुआ। 1980 के दशक में चेन्नई के टी. नगर, अडयार और मायलापोर जैसे ब्राह्मण बहुल इलाकों में तो यह चुटकुला काफी प्रसिद्ध था कि हर परिवार को अपना कम से कम एक बच्चा अंकल सैम को देना चाहिए। यह तो भला हो 69 फीसदी आरक्षण और सॉफ्यवेयर इंजीनियरों की जरूरत व आवक में वृद्धि का कि सभी को फायदा मिला। हमें सूचना-प्रौद्योगिकी का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि तमिलनाडु के एक अच्छे कदम ने वाकई काम किया। शायद यह भी एक वजह है कि सामाजिक संकेतकों के मामले में यह राज्य आज बेहतर स्थिति में है।


1980 के दशक के मध्य में तमिलनाडु और चेन्नई (जो अब भी मद्रास है) में यह जगजाहिर था कि अगर कोई नौकरी पाना चाहता है, तो उसे कंप्यूटर सीखना चाहिए। 1990, 2000 और शायद 2010 के दशकों को देखें, तो यह भी साफ है कि आईटी कंपनियां उन कंपनियों में शामिल रही हैं, जो इस देश में बेहतर तरीके से संचालित हो रही थीं। ऐसा होना लाजिमी भी था, क्योंकि आईटी कंपनियों के ग्राहक आमतौर पर पश्चिमी कंपनियां थीं, जिनके मानक काफी ऊंचे थे।


यही कारण है कि मोहनूर का एक युवा, जिसने पहले कंप्यूटर सीखा और फिर आईटी कंपनी में शामिल हुआ, आज देश के एक बड़े औद्योगिक समूह का मुखिया है। चंद्रशेखरन की कामयाबी दरअसल हर भारतीय आईटी प्रोफेशनल की सफलता है।


http://www.livehindustan.com/news/guestcolumn/article1--chandrasekarans-success-counts-675717.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close