Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | चल नहीं रेंग रहा साक्षरता कार्यक्रम

चल नहीं रेंग रहा साक्षरता कार्यक्रम

Share this article Share this article
published Published on Sep 2, 2013   modified Modified on Sep 2, 2013

हर साल आठ सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस के अवसर पर सरकारी कार्यक्रम का आयोजन होता है. स्कूलों में प्रभात फेरी निकाली जाती है. बच्चों से नारे लगवाये जाते हैं- आधी रोटी खायेंगे फिर भी स्कूल जायेंगे. पत्ता-पत्ता अक्षर होगा हर कोई साक्षर होगा आदि-आदि. इसके बाद प्रखंड, जिला एवं राज्यस्तर पर सम्मेलन होता है. इसमें अफसर एवं नेता आते हैं. भाषण देते हैं. निरक्षरता को मानव समाज के लिए कलंक बताते हैं. लेकिन, इस कलंक को जब धोने की बारी आती है तो सभी जिम्मेदार लोग योजना में अपना नफा-नुकसान देखने लगते हैं. नतीजा काम की गति थम जाती है या धीमी हो जाती है. ऐसे में योजना का क्या हश्र होता है. यह जानने के लिए पढ़िये उमेश यादव की यह रिपोर्ट.

निरक्षरता  कलंक है. यह मानव के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में बाधक है. निरक्षरता के कारण कल्याणकारी राज्य से नागरिकों को मिलने वाला उनका हक बिचौलिया छीन लेता है. इसी को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने वर्ष 1988 में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन का गठन किया. इसके जरिये पूरे देश में संपूर्ण साक्षरता अभियान चलाया गया. यह अभियान 10 वीं पंचवर्षीय योजना की समाप्ति यानी वर्ष 2007 तक पूरे देश में चला. इस दौरान 12 करोड़ 74 लाख 50 हजार व्यक्ति साक्षर हुए. इसमें 60 प्रतिशत महिलाएं थी. साक्षर होने वालों में आदिवासियों की संख्या 12 प्रतिशत और अनुसूचित जाति की संख्या 23 प्रतिशत पायी गयी. लेकिन, राष्ट्रीय स्तर पर समीक्षा के क्रम में इसे अपेक्षित परिणाम नहीं माना गया.

        
इसके बाद 11 वीं पंचवर्षीय योजना के तीसरे साल सरकार ने पुन : साक्षरता अभियान शुरू किया. वर्ष 2009 में अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसकी आधिकारिक घोषणा की. इस बार पुरानी खामियों एवं कमियों को दूर करते हुए योजना का स्वरूप बदला दिया गया. व्यापक जन भागीदारी के लिए ग्राम पंचायत को इकाई माना गया.  नये स्वरूप में योजना का नाम भी बदल कर ‘ साक्षर भारत ’ कर दिया गया. नयी योजना में महिलाओं पर पहले की तुलना में अधिक ध्यान केंद्रित किया गया.  इसके साथ ही पहले जहां जिले एवं प्रखंडों में काम करने वाले कर्मचारियों को पैसे नहीं मिलते थे. वहीं इस बार ग्राम पंचायत स्तर पर भी साक्षरता कर्मियों के लिए एक सम्मानजनक मानदेय की व्यवस्था की गयी. लेकिन, इन सब के बाद भी झारखंड में साक्षर भारत योजना नहीं चल रही है. तो फिर क्या हो रहा है. योजना के कार्यान्वयन की स्थिति से आप कह सकते हैं कि यह रेंग रही है.

        
जिस साल केंद्र सरकार ने योजना शुरू की, यानी वर्ष 2009-10 में झारखंड के चार जिलों का चयन किया गया. इसमें रांची, हजारीबाग, धनबाद एवं दुमका शामिल थे. लेकिन, अफसरों की सुस्ती के कारण इन जिलों में काम शुरू हुआ वर्ष 2010-11 में. इसके बाद दूसरे चरण में और 15 जिले साक्षर भारत योजना में शामिल किये गये. दूसरे चरण के जिले हैं चतरा, पलामू, गढ़वा, लातेहार, पश्चिम सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, पाकुड़, साहिबगंज, देवघर, गोड्डा, गुमला, लोहरदगा, गिरिडीह, बोकारो और कोडरमा. चयन के बाद इन जिलों के लिए वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर निरक्षरों की संख्या का आकलन किया गया. कुल आबादी का 40 प्रतिशत निरक्षर माना गया. इसी आधार पर 19 जिलों के लिए निरक्षरों की संख्या 37 लाख निकाली गयी. इसके बाद केंद्र सरकार ने प्रति निरक्षर 230 रुपये की दर से कुल राशि का 30 प्रतिशत राशि राज्य को आवंटित कर दिया. इस राशि से इन जिलों में निरक्षरों का वास्तविक सर्वेक्षण होना था. इसके बाद सभी को साक्षर बनाने के लिए  विस्तृत कार्य योजना बनाकर केंद्र को भेजनी थी. लोक शिक्षा केंद्र का संचालन करना था. योजना का निर्माण चार स्तर ग्राम पंचायत, प्रखंड, जिला एवं राज्य पर होना था.  लेकिन, अब तक का स्टेटस यह है कि 19 में से 12 जिले ने ही सर्वेक्षण के बाद कार्ययोजना बनायी है. ढाई साल बाद भी सात जिले गुमला, बोकारो, साहिबगंज, पूर्वी सिंहभूम, कोडरमा, पलामू एवं गोड्डा में सर्वेक्षण का काम पूरा नहीं हुआ है. निरक्षरों को साक्षर बनाने की कार्ययोजना नहीं बनायी गयी है.  

बल्कि पलामू जिले में 10 दिन पहले ही काम शुरू हुआ है. इन सात जिलों में काम शुरू नहीं होने के पीछे जो मुख्य वजह सामने आयी है, वह है उपायुक्त की शिथिलता. बताया जाता है कि जब तक पूजा सिंघल पलामू की डीसी रही उन्होंने काम ही शुरू नहीं किया. कोडरमा में सचिव का चयन नहीं होने से काम में विलंब हुआ. जबकि यह काम डीसी करते हैं. इसी तरह पूर्वी सिंहभूम में नये डीसी साक्षरता पर ध्यान नहीं देते हैं. बोकारो में जिला शिक्षा पदाधिकारी की वजह से काम समय पर शुरू नहीं हुआ. गुमला में भी डीसी की रुचि नहीं होने के कारण सर्वे लेट से शुरू हुआ. इन कारणों से अब तक राज्य की कार्ययोजना भी नहीं बनी है.

दो साल में नहीं मिला एक भी पैसा
साक्षर भारत योजना के तहत झारखंड को वित्तीय वर्ष 2009-10 और 2010-11 में ही पैसा मिला है. यह राशि 31 करोड़ 69 लाख रुपये थी.  इसके बाद वित्तीय वर्ष 2011-12 से लेकर अब तक एक भी पैसा नहीं मिला है. इसके पीछे एक मात्र वजह रही समय पर काम शुरू नहीं होना और पूर्व में मिली राशि का खर्च नहीं होना. केंद्र सरकार ने राशि आवंटित करने में यह शर्त्त रखी है कि पूर्व में मिली राशि का 75 प्रतिशत खर्च होने के बाद ही अगली किस्त जारी होगी. 

इसके साथ ही समय पर सर्वेक्षण पूरा नहीं होने और राज्यस्तरीय कार्य योजना नहीं बनने से झारखंड के बाकी पांच जिलों को भी साक्षर भारत योजना में स्वीकृति नहीं मिल रही है. जबकि इन जिलों का प्रस्ताव चार माह पहले ही केंद्र को भेजा जा चुका है. इसमें सरायकेला-खरसावां, सिमडेगा, खूंटी, जामताड़ा एवं रामगढ़ शामिल है. केंद्र सरकार का स्पष्ट कहना है कि पहले जो 19 जिले का काम मिला हुआ है उसे पूरा करें. इसके बाद ही बाकी जिलों को साक्षर भारत योजना में शामिल किया जायेगा.

देर से भी नहीं छपेगी पूरी किताबें
एक प्रचलित कहावत है देर आये दुरुस्त आये. लेकिन, साक्षर भारत योजना में राज्य सरकार देर कर रही है और काम भी दुरुस्त नहीं है. यह किताब छपाई से पता चलता है. राज्य में वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर निरक्षरों की संख्या का अनुमान 37 लाख लगाया है. अभी तक जो वास्तविक सर्वेक्षण हुए हैं उसी में यह संख्या 50 लाख हो गयी है. जबकि अभी पूरा सर्वेक्षण होना बाकी है.  लेकिन, इन निरक्षरों में भी सरकार महज 13 लाख 14 हजार के लिए ही प्रवेशिका किताब छपवा रही है. इस किताब का नाम ‘ पढ़ें - गढ़ें - बढ़ें है. इस मामले में भी पैसे की कमी आड़े आ रही है. राज्य सरकार का मानना है कि जो पैसे अभी तक केंद्र से मिले हैं उससे अभी इतनी किताबें ही प्रकाशित हो सकती हैं. इसमें भी अब तक किताब प्रकाशन का ऑर्डर रिलीज नहीं हुआ है. मामला विभागीय सचिव एवं निदेशक स्तर पर फंसा हुआ है. टेंडर एवं दर निर्धारण की प्रशासनिक स्वीकृति नहीं मिली है.  यानी इस साल के अंत तक ग्राम पंचायतों को किताबें मिल जायेगी, इस पर भी संशय है.

कागजों तक सीमित है लोक शिक्षा केंद्र
साक्षर भारत योजना के नये स्वरूप में पहला काम ग्राम पंचायत स्तर पर लोक शिक्षा केंद्र की स्थापना है. झारखंड के 19 जिलों में ग्राम पंचायतों की कुल संख्या 3983 है. लेकिन, अभी तक सभी ग्राम पंचायतों में यह काम नहीं हुआ है. फिर भी  लोक शिक्षा केंद्र की जो परिकल्पना योजना में की गयी है वह अब तक धरातल पर नहीं उतर पायी है. साक्षर भारत योजना के मुताबिक लोक शिक्षा केंद्र न केवल बुनियादी साक्षरता कार्यक्रम(निरक्षरों को पढ़ाने का काम) का समन्वय केंद्र होगा. बल्कि यह सांस्कृतिक, सूचना एवं चर्चा का भी केंद्र होगा. यानी लोक शिक्षा केंद्र में आकर कोई भी व्यक्ति सभी प्रकार की सरकारी सेवाओं एवं योजनाओं की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. उस पर चर्चा कर सकते हैं.

इसके साथ ही केंद्र पर विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होना है. इसके लिए साक्षर भारत योजना में लोक शिक्षा केंद्र के लिए एक बार 60 हजार और हर साल 75 हजार रुपये की व्यवस्था की गयी है. एक पुस्तकालय की दी गयी है. साक्षरता प्रेरक के रूप में दो कर्मी दिये गये हैं. आधारभूत संरचना के लिए पैसे दिये गये हैं. इसके तहत टेबुल, कुर्सी, दरी, आलमीरा, लाईट आदि की खरीदारी करनी है. साक्षरता प्रेरकों के लिए दो हजार रुपये प्रतिमाह मानदेय का प्रावधान है. वातावरण निर्माण एवं कार्यक्रम संचालन के लिए हर महीने 2250 रुपये का फंड है. इस पैसे से लोक शिक्षा केंद्र में दैनिक समाचार पत्रों एवं विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं की खरीदारी होनी है. लेकिन, सच्चई यह है कि 99 प्रतिशत केंद्रों में यह सब नहीं होता है. पैसे के अभाव में लोक शिक्षा केंद्र कागजों तक ही सीमित है. केंद्रों को कोई आवर्ती फंड नहीं मिल रहा है. 50 प्रतिशत से अधिक केंद्रों का अब तक बैंक खाता तक नहीं खुला है. केंद्र के प्रेरकों को किसी जिले में छह महीने तो किसी जिले में एक साल से पैसे नहीं मिले हैं. इस वजह से प्रेरक भी उदासीन हैं.

पंचायत की जगह जिलों में होता है आन लाइन का काम साक्षर भारत योजना का हर काम ऑनलाइन होना है. इसके लिए हरेक ग्राम पंचायत का यूजर आइडी एवं पासवर्ड दिया गया है. सर्वेक्षण रिपोर्ट एवं हर काम को योजना के वेबसाइट पर लोड किया जाना है. यह काम लोक शिक्षा केंद्र पर ही होना है. लेकिन, झारखंड के एक भी लोक शिक्षा केंद्र पर बिजली एवं इंटरनेट की सुविधा नहीं दी गयी है. इस वजह से डाटा ऑनलाइन का काम जिलास्तर पर विभिन्न गैर सरकारी एजेंसियों के माध्यम से किया जा रहा है.

पंचायत प्रतिनिधियों को नहीं दी गयी जिम्मेदारी
साक्षर भारत योजना में स्थानीय जनप्रतिनिधियों की व्यापक भूमिका दी गयी है. ग्राम पंचायत, पंचायत समिति एवं जिला स्तर पर लोक शिक्षा समिति का स्वरूप तय किया गया है. इसमें क्रमश : ग्राम पंचायत के मुखिया, पंचायत समिति के प्रमुख एवं जिला परिषद के अध्यक्ष को समिति के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी गयी है. कमेटी में 50 प्रतिशत महिलाओं के अलावा सामाजिक कार्यकर्ताओं , स्थानीय सरकारी अधिकारियों एवं साक्षरता कर्मियों को जगह दी गयी है. लेकिन, झारखंड में अब तक यह नियम लागू ही नहीं हुआ है. पंचायत प्रतिनिधियों को जिम्मेदारी नहीं दी गयी है. किसी भी कमेटी के अध्यक्ष पंचायत प्रतिनिधि नहीं बनाये गये हैं. इस वजह से भी साक्षरता के काम में तेजी नहीं आ रही है. जिलों में उपायुक्तों के पास पहले से ही काफी काम है. ऐसे में यदि जिला परिषद की अध्यक्ष को जिला लोक शिक्षा समिति का अध्यक्ष बनाया जाता है तो काम में तेजी आने की संभावना है.

आज भी अधूरा है साक्षर भारत का सपना
शमसुल अंसारी
हर ग्रामीणों को कम से कम साक्षर बनाने के लिए केंद्र सरकार करोड़ों खर्च करती है. इसके तहत गांव से लेकर पंचायत व प्रखंड से लेकर जिला स्तर तक साक्षरता अभियान के तहत समितियां बनी और कार्य भी प्रारंभ हुआ. लेकिन, जमीन पर इस कार्यक्रम का समुचित फलाफल नहीं दिख रहा है. यही वजह है कि आज भी गांव-देहात की आधी आबादी अंगूठा छाप है. इसका प्रत्यक्ष उदाहरण मनरेगा के तहत होने वाले कार्य के मस्टर रोल व जन वितरण प्रणाली में मिलने वाले किरासन व अनाज वितरण की पंजी में साफ नजर आता है. बता दें कि पिछले कई वर्षो से साक्षरता अभियान के तहत जिले में साक्षर बनाने का कार्य चल रहा है. इसके तहत पंचायतों में लोक शिक्षा केंद्र का संचालन हो रहा है.

अभियान को सफल बनाने के लिए प्रेरक-उत्प्रेरक का चयन किया गया है. साक्षर भारत मिशन की सफलता को ले प्रेरकों को कुर्सी-टेबल ही नहीं पुस्तक व बक्शा-लालटेन तक आवंटित किया गया है. इतना ही नहीं, समय पर अभियान की सफलता को ले शिविर व प्रशिक्षण तक का आयोजन किया जाता रहा है. सरकार द्वारा करोड़ों खर्च के बाद भी जिले में साक्षर मिशन का सपना पूर्ण होता नजर नहीं आ रहा है.  योजना में खामियों की वजह से आज भी मजदूर व गरीब तबके के लोग साक्षर होने से ज्यादा तरजीह मजदूरी कर पेट पालने को देते हैं. यही वजह है कि आज भी मस्टर रोल में अधिकांश मजदूर हस्ताक्षर न कर अंगूठे का निशान लगाते हैं. जन वितरण प्रणाली की दुकान में अनाज लेने पहुंचे बीपीएल कार्डधारी भी डीलर के अनाज वितरण पंजी में हस्ताक्षर कम अंगूठे का निशान ज्यादा लगाते हैं.


http://www.prabhatkhabar.com/news/39956-story.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close