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न्यूज क्लिपिंग्स् | छत्‍तीसगढ़ : अकाल मौतों के साए में धन का अकाल

छत्‍तीसगढ़ : अकाल मौतों के साए में धन का अकाल

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published Published on Nov 13, 2014   modified Modified on Nov 13, 2014
आवेश तिवारी, नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ में नसबंदी के दौरान होने वाली मौतों के पीछे वजह जो भी हो ,लेकिन यह सच है कि राज्य में नसबंदी का कार्यक्रम भारी धनाभाव में चलाया जा रहा है । नईदुनिया ने अपनी पड़ताल में पाया कि 2013-14के दौरान छत्तीसगढ़ ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन से 720 कैम्पों के लिए प्रति कैम्प 15 हजार रूपए की दर से 1 करोड़ 8 लाख रूपए की मांग की थी ,लेकिन उसके बदले में उन्हें केवल 54 लाख रूपए दिए गए, यानि की प्रति कैम्प केवल 7.5हजार रूपए ।

वहीं खराब पड़ी 20 लेप्रोस्कोपिक मशीनों की मरम्मत के लिए प्रति मशीन एक लाख रुपए की मांग की गई थी । लेकिन इसके बदले में उन्हें केवल 25 हजार रूपए प्रति मशीन ही मिल पाए।आश्चर्यजनक यह है कि धन के भारी अभाव के बीच 2017 तक नसबंदी की दर को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया था ।स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले वित्तीय वर्ष के लिए परिवार नियोजन हेतु कुल 17करोड़ 21 लाख रुपयों की मांग की थी ,लेकिन इसके बदले में राज्य को केवल 4 करोड़ रूपए ही मिल पाए ।

छत्तीसगढ़ में नसबंदी से हुई अकाल मौतो की लौमहर्षक कहानी की कुछ परतें और भी हैं । स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में व्यावसायिक लक्ष्य की तरह आबादी कम करने की कोशिशें की गई । दरअसल केंद्र सरकार द्वारा नसबंदी का जो लक्ष्य रखा गया था वो अप्रैल से लेकर सितम्बर माह की तुलना में अक्टूबर से मार्च के बीच लगभग तीन गुना था।गौरतलब है कि यह वक्त जाड़े का होता है ।जानकारी मिली है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने 25 लेप्रोस्कोपिक मशीनों की खरीद के लिए लगभग डेढ़ करोड़ रूपए की मांग की थी ,जिसे मंजूर कर लिया गया था ।

स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के एक अधिकारी ने बताया कि छत्तीसगढ़ में वर्ष 2013-14 में चार-चार डाक्टरों के समूह को 6बैचों में नसबंदी हेतु प्रशिक्षित किये जाने की योजना थी ,जिसके लिए लगभग 6 लाख का बजट बनाया गया था ,जिसके एवज में उन्हें लगभग 4लाख 27 हजार रूपए दिए भी गए थे। सूत्रों कि माने तो मुश्किल ये थी कि 12 दिनों के लिए प्रस्तावित इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल होने वाले चिकित्सकों की संख्या बेहद कम थी क्योंकि अगर इस कार्यक्रम में दूर-दराज के स्वास्थ्य केन्द्रों के डाक्टरों को शामिल करना होता तो अस्पताल खाली रह जाते।

छत्तीसगढ़ सरकार ने केंद्र से नसबंदी की विफलता और उसकी प्रगति रिपोर्ट की समीक्षा करने हेतु 20 बैठकों के लिए खर्चे की मांग की थी ।मगर राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन द्वारा केवल 6 बैठको के लिए धन दिया गया और उसमे केवल नसबंदी की गुणवत्ता को लेकर ही बैठकें करने की इजाजत दी गई। जब हमने धनाभाव को लेकर राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के मिशन निदेशक छत्तीसगढ़ डॉ अय्याज फकीरभाई तम्बोली से बात की तो उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में अलग अलग मदों में आवंटित धन पूरे देश में एक जैसा है।


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